Max अस्पताल में इलाज कराना अब मुश्किल! कई बीमा कंपनियों ने बंद की कैशलेस सुविधा
Max Cashless Facility: देश के प्रमुख निजी अस्पतालों में शुमार मैक्स हॉस्पिटल में अब कैशलेस इलाज कराना कई मरीजों के लिए मुश्किल हो गया है। बड़ी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों जैसे निवा बुपा, स्टार हेल्थ और केयर हेल्थ इंश्योरेंस ने मैक्स अस्पताल की सभी शाखाओं में कैशलेस ट्रीटमेंट देना बंद कर दिया है।
Max Cashless Facility: अब मरीजों को मिलेगा केवल रीइंबर्समेंट का विकल्प
इन कंपनियों ने साफ किया है कि अब मैक्स हॉस्पिटल में इलाज कराने पर मरीजों को पहले अपनी जेब से भुगतान करना होगा, फिर बीमा कंपनी से रीइंबर्समेंट (खर्च वापसी) का दावा करना पड़ेगा। रीइंबर्समेंट क्लेम के लिए जरूरी दस्तावेज़ों में शामिल हैं:
- हॉस्पिटल से मिली डिस्चार्ज समरी
- सभी मेडिकल रिपोर्ट्स और प्रिस्क्रिप्शन
- डॉक्टर के नोट्स
- सभी बिल
- आधार कार्ड, पैन कार्ड और कैंसिल चेक
- बजाज आलियांज पर पहले ही रोक लग चुकी है
इससे पहले मैक्स हॉस्पिटल ने बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस की भी कैशलेस सुविधा बंद कर दी थी। अब यह सूची और लंबी होती जा रही है।
देशभर के 20,000 से अधिक अस्पतालों का समर्थन
AHPI (Association of Healthcare Providers India), जो देशभर के 20,000 से ज्यादा अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है, उसने अपने सदस्य अस्पतालों से 1 सितंबर 2025 से बजाज आलियांज की कैशलेस सुविधा बंद करने को कहा है। इसके अलावा, CARE Health Insurance को भी नोटिस भेजा गया है और 31 अगस्त तक जवाब मांगा गया है। यदि संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, तो केयर हेल्थ की भी सुविधा बंद हो सकती है।

Cashless Facility: क्यों उठाया गया ये कदम?
AHPI के प्रमुख डॉ. गिर्धर ग्यानी ने कहा कि देश में हेल्थकेयर का खर्च हर साल 7-8% तक बढ़ रहा है। इसमें स्टाफ की सैलरी, दवाएं, उपकरण, बिजली और अन्य खर्च शामिल हैं।
उनके अनुसार बीमा कंपनियां इलाज की दरें समय के साथ बढ़ाने को तैयार नहीं होतीं, जबकि लागत लगातार बढ़ रही है। यही नहीं, बजाज आलियांज पर यह भी आरोप है कि वह क्लेम सेटलमेंट में देरी करता है और मरीजों को डिस्चार्ज में परेशानी होती है।

Max Hospital: मरीजों पर क्या असर पड़ेगा?
अब यदि कोई मरीज मैक्स अस्पताल में इलाज करवाना चाहता है और उसका बीमा निवा बुपा, स्टार हेल्थ, केयर हेल्थ या बजाज आलियांज से है, तो उसे पहले इलाज का पूरा खर्च खुद उठाना होगा। इसके बाद वह कंपनी से रीइंबर्समेंट के लिए आवेदन कर सकता है। यह प्रक्रिया समय लेने वाली होती है और हर किसी के लिए आसान नहीं होती।
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