अस्पतालों में मौत के सौदागरों की सेंध
नकली दवाइयां पकड़ी नहीं जातीं और सरकारी अस्पतालों में इनकी खरीदी भी हो जाती है…
नकली दवाइयां जमाने से चल रही हैं लेकिन आज बेहतर तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में यदि नकली दवाइयां पकड़ी नहीं जातीं और सरकारी अस्पतालों में इनकी खरीदी भी हो जाती है तो मतलब साफ है कि मिलीभगत है। नकली दवाइयां बेचने वाले मौत के सौदागर सरकारी अस्पतालों में सेंध लगाने में सफल हो गए तो यह अत्यंत गंभीर स्थिति है। महाराष्ट्र के चिकित्सा शिक्षा मंत्री हसन मुश्रीफ को मैं बधाई दूंगा कि उन्होंने इस कड़वी सच्चाई को छिपाया नहीं बल्कि विधानसभा में स्वीकार किया। विधायक मोहन मते के एक सवाल के लिखित जवाब में उन्होंने कहा कि कुछ सरकारी अस्पतालों में नकली दवाइयां खरीदी गईं।
स्वाभाविक रूप से हर किसी के मन में यह सवाल पैदा हो रहा है कि यह कैसे संभव है कि सरकारी अस्पताल नकली दवाइयां खरीद लें? वहां तो सरकार द्वारा निर्धारित पूरा सिस्टम काम करता है जिसके लिए यह पता लगा पाना कोई कठिन काम नहीं है कि अस्पताल के लिए जो दवाइयां खरीदी जा रही हैं वह असली हैं या नहीं? खासकर ऐसे माहौल में, जब पूरी दुनिया को पता है कि नकली दवाइयों का बाजार लगातार फलता-फूलता जा रहा है, सतर्कता की बहुत जरूरत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकड़ा कहता है कि दुनिया में नकली दवाइयों का बाजार करीब 200 बिलियन डॉलर यानी मौजूदा हिसाब से 17 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है।
भारत में यह कारोबार कितना है, यह कह पाना बड़ा मुश्किल काम है क्योंकि यही पता नहीं है कि कहां-कहां नकली दवाइयां बन रही हैं और बिक रही हैं लेकिन जो मामले सामने आते रहे हैं वे चौंकाने वाले हैं और भयावह हालात की ओर संकेत करते हैं। एसोसिएटेड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया की एक अध्ययन रिपोर्ट में भी आशंका व्यक्त की जा चुकी है कि भारत नकली दवाइयों का बड़ा बाजार बन चुका है। पिछले साल दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दिल्ली-एनसीआर में नकली दवाइयों के एक बड़े सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया था। गाजियाबाद में नकली दवाओं का गोदाम मिला और जांच-पड़ताल में पता चला कि ये सभी नकली दवाइयां सोनीपत की एक फैक्टरी में तैयार की गई थीं, न केवल भारत बल्कि अमेरिका, इंग्लैंड, बंगलादेश और श्रीलंका की 7 बड़ी कंपनियों के 20 से ज्यादा ब्रांड की नकली दवाइयां वहां बनाई जा रही थीं। दुर्भाग्य यह था कि इस सिंडिकेट का मास्टरमाइंड एक डॉक्टर था।
पिछले साल ही तेलंगाना में जब नकली दवाइयों के मामले सामने आए तो तेलंगाना के ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन ने गहराई से पड़ताल की, पता चला कि नकली दवाइयां उत्तराखंड में बन रही थीं। उत्तर प्रदेश में भी पिछले साल ही 80 करोड़ रुपए मूल्य की नकली दवाइयां पकड़ी गई थीं। पश्चिम बंगाल में भी नकली दवाइयों की बड़ी खेप पकड़ी गई थी। इन सभी मामलों में पैकिंग इतनी सफाई से की गई थी कि पता ही न चल पाए कि माल नकली है। जब जांच हुई तो पता चला कि कैप्सूल्स में चाक पाउडर और स्टार्च भरा था। ऐसा माना जाता है कि 60 प्रतिशत नकली दवाइयों का कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता है लेकिन 40 प्रतिशत नकली दवाइयां मरीज की सेहत पर बुरा असर डालती हैं लेकिन जिन नकली दवाइयों को घातक नहीं माना जाता है वास्तव में वह भी उतनी ही घातक हैं। जो मरीज इस तरह की नकली दवाई खा रहा है उसका मर्ज तो बढ़ता ही जाएगा क्योंकि उसे असली दवाई तो मिल नहीं रही है।
जब मर्ज खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा तब क्या होगा? कई गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली दवाइयों के भी नकली स्वरूप पकड़े जा चुके हैं। यह तथ्य सामने आ चुका है कि नकली इंजेक्शन बनाने वाले लोग कैंसर के उपचार के लिए उपयोग की जाने वाले असली इंजेक्शन की खाली शीशी पांच हजार रुपए में खरीदते थे और सौ रुपए मूल्य की एंटीफंगल दवाई भर कर उसे एक से तीन लाख रुपए में बेच देते थे। मौत के सौदागरों ने कोविड-19 के दौरान नकली रेमडेसिवीर इंजेक्शन भी बेचे। इतनी सारी जानकारी होने के बावजूद महाराष्ट्र के कुछ अस्पतालों में नकली दवाइयां खरीदी गई हैं तो इसे केवल व्यवस्था में महज एक चूक या जिम्मेदार अधिकारियों या कर्मचारियों की लापरवाही कह कर नहीं बचा जा सकता। यह जिंदगी और मौत से जुड़ा मामला है, इसकी गंभीर पड़ताल होनी चाहिए और दोषी लोगों को हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोपी बना कर उसी रूप में सजा देनी चाहिए।
नकली दवाई से किसी की मौत होती है तो आजीवन कारावास का प्रावधान है लेकिन यह साबित करना क्या आसान काम है? और नकली दवाई बनाने वाले को केवल पांच साल की सजा का ही प्रावधान है। जब तक सख्त सजा नहीं देंगे तब तक इस तरह के अपराध रुकने वाले नहीं हैं। ऐसे अपराध के लिए जीरो टॉलरेंस नीति चाहिए। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एक बेहद संवेदनशील इंसान हैं, उन्होंने प्रशासन पर नकेल कसना शुरू कर दिया है, इसलिए मैं उम्मीद कर रहा हूं कि इस मामले में वे गहराई तक जाएंगे। वे केंद्र तक भी मामला पहुंचाएंगे ताकि सभी राज्य मौत के सौदागरों के खिलाफ एकजुट हों। इसके साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि अस्पतालों में या मेडिकल कॉलेज में जरूरी दवाइयां उपलब्ध क्यों नहीं होती हैं?
मेरे पास कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति आया, उसने बताया कि एम्स के डॉक्टर ने सवा लाख रुपए मूल्य का इंजेक्शन लिखा है, कई इंजेक्शन लगाने होंगे। क्या कोई सामान्य परिवार यह खर्च वहन कर सकता है? स्वास्थ्य अत्यंत गंभीर विषय है और सरकार को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि स्थितियां कैसे बदली जाएं। फिलहाल सतर्क रहिए कि कहीं आप नकली दवाई तो नहीं खा रहे हैं? कंपनियां अब बारकोड डालने लगी हैं। एक बार बारकोड को स्कैन जरूर कीजिए, शायद आप नकली दवाइयों से बच पाएं। वैसे नकली दवाइयां ही क्या, नकली चावल, नकली दाल, नकली खोया, नकली पनीर, नकली घी, हर चीज नकली… नकली…नकली…! हम क्या करें सरकार?