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आस्था से खिलवाड़

03:45 AM Sep 22, 2024 IST | Aditya Chopra

आस्था पर जितनी चोट होनी थी हो चुकी। तिरुमला तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलने वाले लड्डुओं में शुद्ध घी की बजाय जानवरों की चर्बी वाला घी इस्तेमाल किए जाने की खबरों से हर आस्थावान व्यक्ति आहत हैं। विवाद बढ़ने पर केन्द्र सरकार ने आंध्र प्रदेश से रिपोर्ट मांग ली है और पूरे मामले की जांच फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया से कराने की घोषणा कर दी है। कई राजनीतिक दलों ने इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग भी कर दी है। सत्तारूढ़ तेलगूदेशम पार्टी के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू ने दावा किया है कि पूर्ववर्ती वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी की सरकार के दौरान तिरुपत लड्डू बनाने में पशु चर्बी से बना घी इस्तेमाल किया गया और उन्होंने अपने दावे के समर्थन में एक लैब रिपोर्ट भी पेश की। लैब रिपोर्ट में नमूने लेने की तारीख 9 जुलाई, 2024 और लैब रिपोर्ट 16 जुलाई की बताई जा रही है। इन आरोपों के बाद राज्य में सियासी घमासान शुरू हो गया है और उन्होंने भी अपनी सफाई तो पेश की ही साथ ही मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू पर अपनी राजनीति चमकाने के लिए भगवान का इस्तेमाल करने के आरोप लगाए हैं।
वाईएसआर नेता और तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट के चेयरमैन रहे वाईवी सुब्बा रेड्डी ने भी चन्द्रबाबू नायडू पर मंदिर की पवित्रता को नुक्सान पहुंचा कर और करोड़ों हिन्दुओं की आस्था को नुक्सान पहुंचा कर महापाप करने के आरोप जड़ दिए। मामला बहुत संवेदनशील है। इस खबर के बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन अवसर पर प्रसाद के रूप में बांटने के लिए लाखों लड्डू तिरुपति से मंगाए गए थे, सुनकर अयोध्या में श्रीराम लला के दर्शन करने गए लाखों श्रद्धालु आहत हो चुके हैं। आहत श्रद्धालु कह रहे हैं कि इससे अधिक अनैतिक और आघातकारी और कुछ नहीं हो सकता। तिरुपति मंदिर में लड्डूओं के भोग को लेकर मान्यता यह है कि जो भक्त अपनी मुराद लेकर जाते हैं वे कभी खाली हाथ नहीं लौटते। जिन भक्तों की मुराद पूरी हो जाती है तो वो सोना-चांदी, पैसा, फल और भी कई चीजों का दान करते हैं। तिरुपति मंदिर में भगवान वैंक्टेश्वर को लड्डुओं के प्रसाद को प्रभु की कृपा के रूप में देखा जाता है और इन लड्डुओं को आध्यात्म आैर श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।
आस्था और तर्क का एक साथ चल पाना मुश्किल होता है। जहां तर्क पर बहस की हमेशा सम्भावना होती है वहीं आस्था जैसे बेहद संवेदनशील विषय के साथ छेड़छाड़ की गुंजाइश कम ही होती है। अगर भगवान के प्रसाद में ही पशुओं की चर्बी और मछली के तेल के इस्तेमाल की रिपोर्ट सत्य है तो फिर तर्क पर बहस होनी ही चाहिए। क्या तिरुपति प्रसादम बनाने के तार किसी घोटाले के साथ तो नहीं जुड़े या फिर लड्डू बनाने के लिए घी या सामग्री सप्लाई करने वाली कम्पनियों ने कोई घपला किया है। तिरुपति प्रसादम को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठ चुुके हैं। बहुत साल पहले बैंगलुरु के आरटीआई कार्यकर्ता टी. नरसिम्हा मूर्ति ने प्रसाद की सफाई और सुरक्षा को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर एफएसएसएआई ने राज्य के खाद्य सुरक्षा आयोग को उचित कार्रवाई के निर्देश दिए थे। तब तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ने अड़ियल रुख दिखाते हुए कहा था कि लड्डू एक पवित्र वस्तु है जिसे खाने की वस्तु नहीं माना जा सकता। मंदिर में प्रसाद पारम्परिक तरीकों से बनाया जाता है और इससे किसी भी तरह की छेड़छाड़ हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगी। मंदिर का प्रसाद लोगों को सब्सिडाइज्ड मूल्य पर मिलता है, इस​िलए इसे बेचने की वस्तु नहीं माना जा सकता।
एफएसएसएआई ने खाद्य सुरक्षा से जुड़े मानकों को सभी धर्मस्थानों पर लागू करने की पहल की थी। तब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस पहल का स्वागत किया था। विदेशों में धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुअाें के लिए लंगर बनाने में खाद्य सुरक्षा मानकों का पूरी तरह से इस्तेमाल किया जाता है। लंगर में इस्तेमाल सामग्री सेहत की दृष्टि से सुरक्षित है, यह सुनिश्चित करने के लिए लगातार टेस्ट किए जाते हंै लेकिन भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यह भी तथ्य है कि भारत में दूध की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। डेयरी कम्पनियां देसी घी 600 से 800 रुपए प्रति किलो बेचती हैं। ऐसे में कोई कम्पनी ढाई-तीन सौ या चार सौ में शुद्ध देसी घर कैसे उपलब्ध करा सकती है। इस​िलए तिरुपति प्रसादम के ​िलए इस्तेमाल किए जाने वाले घी की शुद्धता को लेकर संदेह पैदा होता है। हिन्दुआें की आस्था से खिलवाड़ करने वाले इस मामले की निष्पक्ष जांच बहुत जरूरी है और यह भी जरूरी है कि धा​िर्मक स्थलों पर खाद्य सुरक्षा मानकों को पूरी तरह से लागू किया जाए। अगर अन्य समुदाय अपने धार्मिक स्थलों में खाद्य सुरक्षा मानकों को लागू कर प्रसाद और लंगर की व्यवस्था कर सकते हैं तो हिन्दू समाज क्यों नहीं कर सकता। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक स्थिति ​शक्तिपीठों आैर धार्मिक स्थलों के प्रबंधन चाहे वह सरकारी नियंत्रण में हाे, प्रसाद की गुणवत्ता पर ध्यान दें तो यह एक बेहतर पहल होगी।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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