For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

बेतरतीब हो गए हैं महानगर

देश  के प्रमुख शहर दिल्ली, मुम्बई हो या चेन्नई और दक्षिण भारत के अन्य शहर बदहाली से मुक्त नहीं हो रहे तो फिर इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है​ कि अन्य शहर कचरे, गंदगी, बारिश से होने वाले जलभराव, बाढ़ और सड़क जाम आदि का सही तरह का सामना कर पाने में सक्षम होंगे।

02:29 AM Apr 27, 2022 IST | Aditya Chopra

देश  के प्रमुख शहर दिल्ली, मुम्बई हो या चेन्नई और दक्षिण भारत के अन्य शहर बदहाली से मुक्त नहीं हो रहे तो फिर इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है​ कि अन्य शहर कचरे, गंदगी, बारिश से होने वाले जलभराव, बाढ़ और सड़क जाम आदि का सही तरह का सामना कर पाने में सक्षम होंगे।

बेतरतीब हो गए हैं महानगर
देश  के प्रमुख शहर दिल्ली, मुम्बई हो या चेन्नई और दक्षिण भारत के अन्य शहर बदहाली से मुक्त नहीं हो रहे तो फिर इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है​ कि अन्य शहर कचरे, गंदगी, बारिश से होने वाले जलभराव, बाढ़ और सड़क जाम आदि का सही तरह का सामना कर पाने में सक्षम होंगे। अब इस बात लेकर भी कोई हैरानी नहीं होती कि जानलेवा प्रदूषण से जूझते शहरों की संख्या बढ़ती जा रही है। स्थानीय नगर निकाय, राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार शहरी विकास को लेकर कितने ही दावे क्यों न करें, वास्त​विकता यह है कि देश के शहर अवैध और अनियोजित विकास का पर्याय और बदहाली का गड्ढा बनते जा रहे हैं। अनियोजित विकास की घातक अनदेखी के चलते देश के महानगर और बड़े शहर रहने लायक नहीं रहे। यह किसी त्रासदी से कम नहीं कि समय के साथ-साथ शहरों की समस्याएं बढ़  रही हैं और उन्हें ठीक करने के दावे जुमले सा​बित हो रहे हैं।
Advertisement
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह अवैध कालोनियों के निर्माण को शहरी विकास के लिए बड़ी समस्या बताते हुए कहा है कि इन अवैध बसावटों को बनने से रोकने के लिए  राज्य सरकारों को व्याप्त कार्य योजना बनानी होगी। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में एक वरिष्ठ अधिवक्ता को न्याय मित्र नियुक्त किया है और उनसे यह सुझाने को कहा गया है कि अवैध कालोनियों के निर्माण को रोकने के लिए सरकार क्या कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद और केरल की बाढ़ का उल्लेख करते हुए इसके लिए अनियमित कालोनियों को जिम्मेदार ठहराया और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि न्याय मित्र को समस्त रिकार्ड जमा कराएं जो दो सप्ताह में अपने सुुझाव देंगे।
अवैध कालोनियों की समस्या केवल दिल्ली की ही नहीं बल्कि हर शहर की हो चुकी है। बरसों से भूमाफिया राजनीतिज्ञों और अफसरशाहों की सांठगांठ से अवैध कालोनियां बनाते आ रहे हैं। दिल्ली के साथ सटे पड़ोसी राज्यों के शहरों में आज भी ऐसा हो रहा है। भूमाफिया ने अरावली की पर्वत शृंखला को भी नहीं छोड़ा। पहाड़ी राज्यों में अतिक्रमण और अवैध निर्माण भयंकर हादसों का शिकार हो रहे हैं। अपने देश में अवैध कालोनियों को नियमित करने के फैसले नए नहीं हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें भी रह-रहकर इस तरह के फैसले लेती रहती हैं। ऐसा करके वे अपने राजनीतिक हित साधती हैं। अनियमित कालोनियों को नियमित करने का मतलब है समस्या को समाधान के तौर पर स्वीकार करना। इसमें कोई संदेह नहीं कि इससे लाखों लोगों को राहत मिलती है लेकिन यह वास्तविकता है कि सरकारें शहरों को व्यवस्थित करने और खासतौर पर उनसे बढ़ती आबादी को तमाम सुविधा उपलब्ध कराने में नाकाम है। इस नाकामी के चलते ही हमारे शहर समस्याओं से घिरते नजर आ रहे हैं और शहरों की खूबसूरती भी नष्ट होती जा रही है।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखंड सरकारें ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल सरकारें भी अवैध निर्माण से जूझ रही हैं। जब अवैध निर्माण और अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाए जाते हैं तो जनता आक्रोशित हो जाती है। अवैध कालोनियों को नियमित करने के राज्य सरकारों के फैसले से सरकारी जमीनों पर कब्जा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अवैध कालोनियों में रहने वाले लोगों को न तो बेहतर माहौल मिलता है और न ही स्वच्छ पर्यावरण। तेज शहरीकरण की आपा-धापी में इंसान उन बुनियादी बातों को भूल चुका है जो प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की हदों से वास्ता रखती हैं। शहरों से जुड़े गांवों को भी कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जा चुका है। शहरों में कचरे के ढेर बढ़ रहे हैं। राजधानी दिल्ली का तो हाल यह है कि राजधानी की चारों दिशाओं में डंपिंग यार्ड में कचरे के ढेर कुतुबमीनार की ऊंचाई को छू चुके हैं और उनमें लगातार आग लगी रहती है। इस आग से शहरी इलाकों में भयंकर प्रदूषण फैल रहा है और स्थानीय निकाय के पास कचरे को कारगर ढंग से निपटाने की कोई योजना नहीं है। बढ़ती आबादी के बोझ तले शहरों का बुनियादी ढांचा चरमरा चुका है। अब तो सर्विस लेन पर भी ट्रैफिक जाम रहता है। अवैध कालोनियों में अतिक्रमण के चलते गलियां संकरी हो चुकी हैं। फ्लाईओवरों का निर्माण, मैट्रो परियोजनाओं का निर्माण तो हो रहा है लेकिन जाम का झाम खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। मुम्बई, हैदराबाद, चेन्नई में हर साल आने वाली बाढ़ इस बात का प्रमाण है कि इन महानगरों में सीवर और जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं बची है।
Advertisement
दरअसल शहरी नियोजन को लेकर हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। सभी नागरिकों के जीवन को आसान बनाने के लिए सुधारों की बहुत जरूरत है। शहरी बुनियादी ढांचे में सुधार, जल आपूर्ति प्रणालियों को कुशल बनाना और स्वास्थ्य सेवा को अधिक प्रभावी बनाना कुछ ऐसे तौर-तरीके हैं जिनके जरिये एक औसत भारतीय के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकते हैं। स्थानीय निकायों और  जनप्रतिनिधियों को नागरिकों को साथ लेकर शहरी जीवन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण बनाने की जरूरत है। आज नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और कुशल प्रबंधन की जरूरत है। दूरगामी सोच नहीं अपनाई गई तो बुनियादी ढांचा ही क्षत-विपक्ष हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×