Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कूड़े में तब्दील होते महानगर

NULL

11:48 PM Sep 02, 2017 IST | Desk Team

NULL

वैसे तो भारत कई मोर्चों पर लड़ रहा है, उनमें प्रदूषण और स्वच्छता के मोर्चे भी शामिल हैं। पिछले दो दशकों में भारतीयों की जीवन शैली में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। लोग पहले से कहीं अधिक सुविधाभोगी जीवन व्यतीत करने लगे हैं लेकिन वे प्रदूषण और स्वच्छता की तरफ अधिक ध्यान नहीं देते। परिणामस्वरूप शहरों का कूड़ा बढ़ रहा है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के एक शोध के मुताबिक भारत में कूड़ा प्रबन्धन अर्पाप्त है। कूड़े के निपटान की कारगर व्यवस्था दिल्ली ही नहीं बल्कि अन्य शहरों और महानगरों में भी नहीं है। दिल्ली में तो चारों दिशाओं में लैंडफिल साइट्स हैं, इनमें से तीन की अवधि और क्षमता समाप्त हो चुकी है लेकिन फिर भी उनमें कूड़ा डाला जाता है। लिहाजा इन तीनों सैनेटरी लैंडफिल में कूड़े के पहाड़ लग चुके हैं।

एकीकृत नगर निगम के जमाने में दिल्ली में कूड़ा डालने के लिये करीब तीन दशकों पहले गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में सैनेटरी लैंडफिल बनाये गये थे। तब यह अनुमान लगाया गया था कि सैनेटरी लैंडफिल 2008 तक कूड़े से पट जायेंगे मगर ये तीनों लैंडफिल तय अवधि से करीब 5 वर्ष पहले ही कूड़े से भर गये। गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ गिर जाने से दो लोगों की मौत और कुछ लोगों के घायल होने का हादसा दिल्ली नगर निगम के लिये ही नहीं बल्कि देश के लिये भी एक शर्मनाक घटना है। यह तो हादसा रहा लेकिन कूड़े से 22 तरह की बीमारियां फैलती हैं जिनसे हजारों लोग प्रभावित होते हैं और सैकड़ों की जान भी चली जाती है। केन्द्र, राज्य सरकार, नगर निगम को यह देखना होगा कि उनकी नाक के नीचे स्वच्छ भारत अभियान की कैसी दुर्दशा हो रही है। यह सही है कि कूड़े की समस्या मानव सभ्यता के साथ-साथ आई है। दिन-प्रतिदिन बढ़ती आबादी के चलते कूड़ा बढ़ता ही गया।

मानव ऐसा कूड़ा छोड़ रहा है जो प्राकृतिक तरीके से समाप्त नहीं होता। राजधानी में कभी कूड़े से बिजली बनाने की परियोजना की शुरूआत की गई। कभी उर्वरक बनाने की बात कही गई लेकिन सारी की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं। देश में 15 हजार टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है जिसमें से केवल 6 हजार टन ही उठाया जाता है और बाकी ऐसे ही बिखरा रहता है। इस कूड़े में प्लास्टिक की बोतलें, पालिथिन और हर तरह का इलैक्ट्रोनिक्स का कबाड़ होता है। हजारों टन ठोस कूड़ा डम्पिंग साइट्स में दबा दिया जाता है जो जमीन के भीतर जमीन की उर्वरा शक्ति को प्रभावित कर उसे प्रदूषित करता है। शहरों की बात छोडि़ए, ग्रामीण इलाकों में भी ठोस और तरल कूड़े के लिये कोई कारगर व्यवस्था नहीं है। देश का काफी प्रतिशत कूड़ा तो नदियों, तालाबों और झीलों में बहा दिया जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आते ही स्वच्छता अभियान चलाया और लोगों को अपने घरों में शौचालय बनाने की अपील की। उनका यह अभियान स्वच्छता अभियान का पहला चरण था। जब तक कूड़े और मल का उचित प्रबन्धन नहीं होता तब तक भारत स्वच्छ नहीं रह सकता। दिल्ली में बने कूड़े के पहाड़ हवा को विषाक्त बना रहे हैं। ई-कचरा और ई-वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो प्रगति का सूचक तो है लेकिन इसका दूसरा पहलू पर्यावरण की बर्बादी है। देश में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का लगभग 70 प्रतिशत केवल दस राज्यों और लगभग 60 प्रतिशत कुल 65 शहरों से आता है। ई-कचरे के उत्पादन में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगर अव्वल हैं।

हर वर्ष नगर प्रतिनिधि चाहे वे महापौर, पार्षद हों या विधायक, स्वच्छता और कूड़ा प्रबन्धन देखने विदेशों का दौरा करते हैं। कोई सिंगापुर जाता है तो कोई ब्राजील या फिर किसी अन्य देश में। अफसोस तो इस बात का है कि नगर प्रतिनिधि सैर-सपाटा तो कर आते हैं लेकिन यहां आकर कोई नहीं सोचता कि क्या आवासीय क्षेत्र में लैंडफिल साइट्स होनी चाहिए? जलाया जा रहा कूड़ा भी कुशल प्रबन्धन में नहीं जलता बल्कि यह सुलगता और विषाक्त धुआं छोडऩा रहता है। कूड़ा निपटान संयंत्रों की इतनी क्षमता नहीं कि पूरे कूड़े का निपटान कर सकें। दिल्ली, नोएडा, कोलकाता, मुम्बई में काफी लोग त्वचा, पेट, फेफड़ों के रोग से पीडि़त हैं।

कूड़े के केंद्रीयकृत निपटान की बजाय छोटे-छोटे इलाकों में ठोस वेस्ट मेनेजमेंट करना होगा। लोग अगर घरों में जैविक और अजैविक कचरे को अलग-अलग इका करें तो कचरा काफी हद तक कम हो सकता है। काफी कूड़ा तो किसी न किसी तरीके से रीसाइकिल हो सकता है। एक ओर हम स्वच्छता को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाने के लिये प्रयासरत हैं वहीं नगर नियोजन से हमारा कोई विशेष सम्बन्ध नहीं बन पा रहा। इस परिप्रेक्ष्य में लगभग हर शहर की कहानी एक सी है। ठोस कदम नहीं उठाये गये तो महानगर कूड़े में तब्दील हो जायेंगे।

Advertisement
Advertisement
Next Article