मध्य पूर्व : युद्ध या शान्ति
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की है कि ईरान और इजराइल में युद्ध विराम हो गया है, पर अभी तो दोनों देश एक-दूसरे पर मिसाइलें दाग रहे हैं। मध्य पूर्व का इतिहास बताता है कि यहां शान्ति वार्ता नाज़ुक रहती है। युद्ध शुरू करना आसान है, खत्म करना मुश्किल। ईरान ने कतर में अमेरिका के सैनिक अड्डे पर 12 मिसाइलें दागी थीं, पर अमेरिका को पहले बता दिया गया था। यह संकेत है कि पर्दे के पीछे कुछ पक चुका है। अगर यह सही है तो ट्रम्प अपने से पहले कई अमेरिकी राष्ट्रपति के भाग्य से बच गए लगते हैं। अभी तक मध्य पूर्व कई अमेरिका के राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा का कब्रिस्तान रहा है। पर यह मालूम नहीं कि इज़राइल के शैतान प्रधानमंत्री नेतन्याहू अब शरारत से बाज आएंगे या नहीं ? ट्रम्प ने भी कहा है कि वह नेतन्याहू से ‘बहुत ‘अप्रसन्न’ हैं।
इज़राइली पत्रकार एटिला सोमफालवी ने भी सवाल किया है कि “क्या ट्रम्प नेतन्याहू को सीधा कर सकेंगे?” वह आगे टिप्पणी करते हैं कि “युद्ध विराम कायम रहता है या नहीं और पश्चिमी एशिया कम फंसादी बनता है या नहीं, यह अमेरिका के राष्ट्रपति की योग्यता पर निर्भर करता है कि वह नेतन्याहू को युद्ध को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने से रोक सकते हैं या नहीं?” मध्य पूर्व में शान्ति अब एक व्यक्ति की राजनीतिक जरूरत पर निर्भर करती है। ट्रम्प तभी नेतन्याहू से नाराज हैं, पर आशा है कि उन्होंने सबक सीख लिया होगा कि ईरान के साथ पंगा लेना आसान नहीं। ईरान कोई मामूली देश नहीं है। पुरानी सभ्यता है। ईरान को भी समझ आ गई होगी कि संकट के समय कोई देश उनके साथ नहीं था। न रूस आया, न चीन और उनका परमाणु ठिकाना ध्वस्त हो गया है। वह शायद अपना परमाणु मैटीरियल बचाने में सफल रहे हैं, पर पूरे परमाणु कार्यक्रम को बहुत धक्का पहुंचा है जिसको फिर से खड़ा करना आसान नहीं होगा। अयातुल्ला खामेनेई के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े होंगे कि आख़िर में युद्ध विराम मानने पर मजबूर हो गए। उनकी पकड़ कमजोर होगी।
ट्रम्प ने ईरान और इजराइल के नेतृत्व की “सहनशक्ति,साहस और बुद्धिमता’ की तारीफ की है, पर अगर युद्ध विराम टिक जाता है तो यह ट्रम्प के नेतृत्व की कामयाबी है। यह अमेरिका की कठोर शक्ति का नंगा प्रदर्शन भी है। कोई देश अमेरिका की बराबरी नहीं कर सकता। अमेरिका बता रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून वह है जो अमेरिका कहता है। वह किसी भी देश में घुसकर बमबारी कर सकते हैं कोई पूछने वाला नहीं। वह अपने बी-2 विमान भेज कर कहीं भी अपने 30,000 पौंड के बंकर बस्टर बम 300 फुट की गहराई तक मार कर सकते हैं। अमेरिका इत्मिनान से किसी भी देश की प्रभुसत्ता का उल्लंघन कर सकता है, कोई आपति नहीं कर सकता। अमेरिका की एकतरफा कार्यवाही का निहितार्थ सब समझ गए होंगे। यह आज और भी चिन्ताजनक है क्योंकि वाशिंगटन में व्हाइट हाउस में वह शख्स रह रहे हैं जिन पर कोई नियम नहीं लगता। डोनाल्ड ट्रम्प को कोई पूछने वाला नहीं है। पश्चिम के देशों की यह पुरानी परम्परा है कि वह विवाद घड़ लेते हैं और बाद में उसका औचित्य निकालते हैं, लेकिन अब अगर युद्ध वास्तव में रुक जाता है तो दुनिया चैन की सांस लेगी। मध्य पूर्व में अगर आग लग जाती तो बहुत तबाही होती।
पहले ही दुनिया दो युद्ध, गाजा में और युक्रेन के युद्ध से निपट रही है। तीसरा युद्ध वह बर्दाश्त नहीं कर सकती और यह युद्ध पहले दो युद्धों से कहीं अधिक खतरनाक साबित हो सकता था क्योंकि ईरान गाजा नहीं है जिसे इजराइल मटियामेट कर सके। यह क्षेत्र बड़ा तेल उत्पादक क्षेत्र है। केवल ईरान के पास दुनिया के तेल का 10 प्रतिशत और गैस का 15 प्रतिशत है। सऊदी अरब, कतर, यूएई, बहरीन जैसे देश बड़े तेल उत्पादक देश हैं। ईरान के पास से होमुर्ज का जल गलियारा निकलता है जहां से 20 लाख बैरल तेल रोज़ाना गुजरता है। ईरान या उसके हूती जैसे संगठन इसे बाधित कर सकते थे। इससे दुनियाभर में तेल की क़ीमतें बढ़ जाती और भारत जैसे देश बुरे प्रभावित होते। डोनाल्ड ट्रम्प की शुरूआत शान्ति कायम करने वाले नेता के रूप में हुई थी, पर इन्हीं डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों, फोर्डो, नतांज और इस्फ़हान पर बमबारी करवा दी। फोर्डो पर हमला महत्वपूर्ण है, क्योंकि ईरान की एक पहाड़ी में 295 की गहराई पर ईरान का एनरिचमेंट प्लांट है। इजराइल ने इसे तबाह करने कोशिश की थी, पर इतनी अंदर तक मार करने की क्षमता केवल अमेरिका के पास ही है।
ट्रम्प का दावा है कि ईरान के इन तीनों संस्थानों को मिटा दिया गया है। ईरान पर यह हमला क्यों किया गया? नेतन्याहू का कहना है किस मकसद ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना है। वह नाटकीय भाषा में कहते हैं कि, “दुनिया के सबसे खतरनाक शासन को दुनिया के सबसे खतरनाक हथियार रखने से रोकने के लिए यह कदम उठाया गया”। पर क्या ईरान के पास बम है?1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नेतन्याहू ने कहा था कि ईरान परमाणु बम बना रहा है। तीन दशक के बाद वह वही बात दोहरा रहे हैं। अमेरिका की नैशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर तुलसी गबार्ड ने उनकी संसद के सामने गवाही दी है कि ईरान बम नहीं बना रहा। इस पर ट्रम्प उनसे खफा हो गए थे और तुलसी गबार्ड ने संशोधित करते हुए कहा है कि “ईरान कुछ सप्ताह में” परमाणु हथियार बना सकता है। अर्थात अभी भी अमेरिका की खुफिया एजेंसी की प्रमुख यह मानने को तैयार नहीं कि ईरान के पास बम है। फिर हमला क्यों किया गया? इसका जवाब नेतन्याहू देते हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से इजराइल के अस्तित्व को खतरा है। पर गाजा के पास तो परमाणु हथियारों नहीं थे फिर वहां इतनी तबाही क्यों की गई कि लोग पानी तक के लिए तरस रहे हैं। बच्चे भूखे मर रहे हैं ? राहत सामग्री के अंदर आने पर बार-बार रुकावटें खड़ी की जाती हैं।
हमास ने 7 अक्तूबर 2023 को हमला कर 1200 इजराइली नागरिक मार दिए थे। दुनियाभर में इस घटना की निंदा हुई थी। पर बदला लेने के लिए तब से लेकर अब तक इजराइल वहां बम बरसा रहा है। 55000 फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें अधिकतर बच्चे हैं। स्कूलों, अस्पतालों पर बमों से हमले हो चुके हैं। इन लोगों की अंतरात्मा नहीं है? कोई इतना जालिम कैसे हो सकता है?जब सद्दाम हुसैन को ख़त्म किया गया तब कहा गया कि इराक के पास ‘सामूहिक विनाश के हथियार हैं’। जब आख़िर में बंकर में छिपे भयभीत सद्दाम हुसैन को पकड़ा गया तब तक युद्ध के आठ वर्ष बीत चुके थे। हज़ारों मारे गए और हज़ारों घायल हुए। पर अंत में अमेरिका के राष्ट्रपति बुश को मानना पड़ा कि इराक के पास सामूहिक विनाश के हथियार नहीं हैं। अर्थात सारा युद्ध ही फ़िज़ूल लड़ा गया। क्या इस बार भी काल्पनिक खतरे को लेकर तबाही मचाई जा रही है?
नेतन्याहू तो युद्धोन्मादी है, पर उन्होंने भी देख लिया होगा कि अगर तेहरान तबाह हो रहा था तो तेलअवीव भी बचा नहीं था।
तेल अवीव से पत्रकार बता रहे थे कि ईरान की मिसाइलों के सामने इजराइल का आयरन डोम फेल हो रहा था। दुनिया का दुर्भाग्य है कि नेतन्याहू इजराइल के प्रधानमंत्री हैं। अपनी कुर्सी कायम रखने के लिए वह कोई न को संकट खड़ा रखते हैं। वह समस्या हैं समाधान नहीं। वह ईरान में सत्ता पलटने की भी मांग कर रहे हैं। 86 वर्षीय अयातुल्ला खामेनेई 1989 में ईरान के राजनीतिक और आध्यात्मिक सुप्रीम लीडर बन गए थे। तब से लेकर अब तक वह वहां एक कट्टर और सख्त धार्मिक शासन चला रहे हैं। पश्चिम के देश इन्हें हटाना चाहते हैं, पर यह मामला तो ईरान के लोगों का है। नेतन्याहू का यह कहना कि ‘खामेनेई का अस्तित्व समाप्त हो जाना चाहिए’ तो असभ्यता की पराकाष्ठा है। इजराइल के प्रधानमंत्री ईरान के नेता की हत्या की मांग कर रहे हैं।
हमारे बहुत हित इस क्षेत्र से जुड़े हैं। ईरान पुराना मित्र है। चाहबाहार बंदरगाह का इस्तेमाल हम अफगानिस्तान और केन्द्रीय एशिया के देशों तक पहुंचने के लिए करना चाहते हैं। पश्चिम एशिया में हमारे लगभग 80 लाख लोग रहते हैं जो वार्षिक 30 अरब डालर घर भेजते हैं। हम नहीं चाहते कि इस क्षेत्र में अस्थिरता आए। दूसरी तरफ इजराइल एकमात्र वह देश है जिसने आपरेशन सिंदूर के समय हमारी मदद की है। इसलिए हमने किसी की भी आलोचना नहीं की और अगर युद्ध विराम हो जाता है तो भारत चैन की सांस लेगा। ईरान की कमजोरी है कि कोई भी बड़ा देश उसके साथ उस तरह नहीं खड़ा जैसे अमेरिका इजराइल के साथ खड़ा है। पुतिन का कहना है कि वह युद्ध से दूर रहना चाहते हैं क्योंकि इजराइल में 20 लाख रूसी मूल के लोग रहते हैं। चीन तो वैसे ही ऐसे झंझटों से दूर रहता है। उसका ध्यान अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने पर है, जबकि अमेरिका को कोई न कोई देश चाहिए जिसे वह खलनायक करार कर अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सके, पर अगर अब शान्ति हो जाती है और ट्रम्प अपने से पहले राष्ट्रपतियों के ‘विदेशी मूर्खतापूर्ण युद्धों’ से बच जाते हैं तो उनकी प्रशंसा ज़रूर की जानी चाहिए। वह एक बच्चे की तरह जो आईसक्रीम के लिए ज़िद करता है नोबेल सम्मान प्राप्त करने की रट लगा रहे हैं, अगर युद्ध विराम स्थाई रहता है तो हो सकता है कि नोबेल समिति अब देने को तैयार हो जाए।