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मोदी और शाह बने भारत के नए पटेल

इसमें कोई शक नहीं कि हमने सीमांत राज्य जम्मू-कश्मीर में जितना दर्द सहन किया है वह हमारी सहन शक्ति से बाहर था।

03:13 AM Aug 11, 2019 IST | Aditya Chopra

इसमें कोई शक नहीं कि हमने सीमांत राज्य जम्मू-कश्मीर में जितना दर्द सहन किया है वह हमारी सहन शक्ति से बाहर था।

इसमें कोई शक नहीं कि हमने सीमांत राज्य जम्मू-कश्मीर में  जितना दर्द सहन किया है वह हमारी सहन शक्ति से बाहर था। अकेले एक बेहद ढीठ और गंदे पड़ोसी पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंक का ऐसा खूनी खेल खेला कि जिसका जवाब भारतीय फौज ने, बीएसएफ ने, सीआरपीएफ ने और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने समय-समय पर दिया। पाकिस्तानी आतंक के आका जम्मू-कश्मीर घाटी में लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे थे। आर्टिकल 370 जो कि जम्मू-कश्मीर को एक अलग और विशेष राज्य का दर्जा दे रहा था, उसकी आड़ लेकर जहां घाटी में पाकिस्तान ने अपना गंदा खेल खेल रखा था वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नए गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी पूरी तरह से मुस्तैद थी और इसे लेकर कुछ करने की योजना बना रही थी। 
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उनकी टीम में एनएसए अजित डोभाल की भूमिका महत्वपूर्ण थी। यह बात अलग है कि विदेश मंत्री के रूप में एस. जय शंकर और रक्षा मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह भी प्रधानमंत्री के आदेश पर घाटी के लिए पूरी योजना को अंजाम तक पहुंचा रहे थे। आखिरकार 5 अगस्त को कश्मीर में इतिहास रचा गया और धारा 370 खत्म कर दी गई जिसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में 72 साल बाद एक नई सुबह का उदय हुआ। जिसमें जम्मू-कश्मीर एक अलग राज्य तथा लद्दाख एक यूटी के रूप में स्थापित कर दिया गया। यह बाद अलग है कि दोनों का स्वरूप एक राज्य की तरह होगा लेकिन पूरा देश धारा 370 की आड़ में कश्मीर की लोगों की मानसिकता को बदलने की मांग कर रहा था जो पत्थरबाजों की समर्थक बन चुकी थी। 
पीडीपी नेता महबूबा और नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला और लोन खुद को जम्मू-कश्मीर के ठेकेदार मानते थे। इस बार अमित शाह जिन्हें सरकार ने गृह मंत्री का चार्ज दिया था भाजपा के उस एजेंटे के प्रति भी गंभीर थे। जिसमें यह बात कही गई थी कि भाजपा के घोषणा पत्र में 370 हटाने की बात पर जोर दिया गया था। अमित शाह यही चाहते थे कि देश में एक तिरंगा हो, एक ही विधान हो, लेकिन वहां की राजनीतिक पार्टियों विशेष रूप से पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस केवल यही चाहती थीं कि बस किसी तरह सत्ता मिल जाए और हम वहां आतंकवादियों को अपना बनाए।  इसीलिए पीडीपी ने भाजपा की बैशाखियों से जब सत्ता संभाली तो महबूबा ने जब वही काम किए जो जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी चाहते थे तथा इसके लिए पाकिस्तान के आतंकी आका उन्हें निर्देश दे रहे थे।
अजित डोभाल की टीम ने सेना के साथ और अर्द्ध सैन्य बलों के साथ पूरा तालमेल बना रखा था। सबसे बड़ी चुनौती लोगों की सुरक्षा को लेकर थी और यह इसलिए और भी गंभीर हो चुकी थी क्योंकि पवित्र अमरनाथ यात्रा चल रही थी जो कि 15 अगस्त रक्षा बंधन पर समाप्त होनी थी। अमित शाह बराबर पीएम मोदी से जुड़े हुए थे और वहां धीरे-धीरे योजनाबद्ध तरीके से सेना के जवान भेजे जाने लगे तो पाकिस्तान के आतंकी आकाओं ने अमरनाथ यात्रा के मार्ग पर माइंस बिछा दी और एक बड़ी आटोमैटिक रायफल छिपा कर रख दी जिसे सेना ने ढूंढ निकाला। धीरे-धीरे सरकार ने सब कुछ अपने नियंत्रण में ले लिया और जो बराबर इंतजार हो रहा था कि कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है, आखिरकार 370 के खात्मे के रूप में हमारे सामने आया। 
अब सब कुछ तेजी से सामान्य हो रहा है तथा 31 अक्तूबर को यूटी के रूप में अस्तित्व में आ जाएंगे। विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो चुका है जम्मू कश्मीर पुनर्गठन बिल संसद में पास हो चुका है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो चुके हैं लिहाजा अब भारत के नक्शे पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख यूटी के रूप में शामिल हो जाएंगे। पाकिस्तान और चीन बुरी तरह बौखला चुके हैं। खुद अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप कश्मीर को लेकर दिए गए बयान के मामले में हंसी का पात्र बन गए हैं लेकिन अमित शाह का यह कहना कि अब पीओके तथा अक्साई चिन्ह को लेकर हमारा दावा और भी मजबूत हो गया है तथा हम अपनी जान गंवा कर भी इसे हासिल करके रहेंगे। 
राज्यसभा और लोकसभा में अमित शाह ने विपक्ष के सवालों और उनकी शंकाओं को जड़ से उखाड़ दिया तो वहीं पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोेधन में जम्मू-कश्मीर के प्रति जो आचरण और चरित्र दिखाया और पूरा देश उन्हें नमन करता है तथा इन दोनों को एक नये सरदार पटेल के रूप में देख रहा है। भारत के इन सच्चे सपूतों को हमारा कोटि-कोटि नमन और यह लेखनी शैल्यूट साथ ही पिछले 30 वर्ष की इस जंग में 42 हजार लोगों के अलावा हजारों सैनिकों के बलिदान को भी हम भूल नहीं पायेंगे जिन्होंने अपनी शहादत देकर जम्मू-कश्मीर को भारत को अभिन्न अंग बनाए रखा।
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