मोदी ने जिनपिंग को शीशे में उतारा
अब जबकि चीन के राष्ट्रपति पिछले दिनों भारत की धरती पर अगर आए तो इसका श्रेय यकीनन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए।
05:27 AM Oct 13, 2019 IST | Aditya Chopra
Advertisement
अब जबकि चीन के राष्ट्रपति पिछले दिनों भारत की धरती पर अगर आए तो इसका श्रेय यकीनन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए। 57 वर्ष पहले हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा 1962 में देकर चीन ने हमसे हमारी जमीन का एक बड़ा हिस्सा छीन लिया था। आज कहा जाने लगा है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अगर कोई शीशे में उतार सकता है तो वह प्रधानमंत्री मोदी ही हैं क्योंकि अभी दो साल पहले ही यही जिनपिंग जो अपनी ऐंठ के लिए मशहूर रहे हैं को मोदी ही अहमदाबाद लाए और फिर मोदी ने उनसे मुलाकातों का दौर ऐसा शुरू किया कि दुनिया आज कहने लगी है कि भारत आज चीन से ज्यादा पावरफुल है।
Advertisement
ममल्लापुरम में शी जिनपिंग से मोदी की महा बैठक इस बात का संकेत है कि आतंक के खात्मे के लिए दोनों देश साथ-साथ हैं। यह चीनी-भारतीय संकल्प आतंकवाद के साथ-साथ पाकिस्तान पर भी प्रहार है। सच बात यह है कि मोदी जी के बारे में भले ही कुछ लोग उनके विदेशी दौरों को लेकर टिप्पणियां करते रहते हैं परंतु हमारा मानना है कि किसी के बारे में भी जुबान खोल देना बड़ा आसान है लेकिन मोदी जी ने इन सबसे ऊपर उठकर किसी की परवाह न करते हुए भारत को दुनिया के नक्शे पर उस जगह पहुंचाया जिसका नाम बुलंदी तो है ही लेकिन बड़ी बात यह है कि हर कोई स्वीकार करता है कि मोदी इज ग्रेट।
Advertisement
कल तक भारत ने पाकिस्तान के मामले में उसे दुनिया के सामने बेनकाब किया तो पाकिस्तान को शह देने वाला कोई देश था तो वह चीन था। लेकिन भारत ने पाकिस्तान के पैरोकार ड्रेगन को खुला छोड़े रखा और पाकिस्तान को इस कदर अधमरा कर दिया कि खुद चीन हैरान रह गया। अरुणाचल में बगैर मतलब के भारतीय फौज के खिलाफ ऐंठ दिखाने वाले ड्रेगन को मोदी जी ने अपनी फौज को फ्री हैंड देकर ऐसा सबक सिखाया कि अब डोकलाम में चीन हमेशा दो कदम पीछे ही रहता है। मोदी जी समझते हैं कि आर्थिक मामलों में अगर एशियाई महाद्वीप में भारत और चीन दोनों की उसके माल को लेकर धाक है तो क्यों न मिलजुल कर चला जाए।
आज हमारे यहां चीनी माल बिकता है तो वहीं हमारा माल भी चीन में बहुत बिकता है। साथ ही भारत ने क्वालिटी को लेकर कोरियाई देश और जापान को भी अपने यहां उनके इलैक्ट्रोनिक गुड्स के लिए तवज्जो दी। शी जिनपिंग को महाबलीपुरम में बातचीत का मौका देकर मोदी ने एक राजनीतिक कार्ड भी खेला है। जिस भाजपा को एक हिंदी पार्टी या उत्तर भारत से जोड़कर देखने वाले विश्लेषकों के दिमाग की नसें खोलते हुए मोदी जी ने तमिलनाडु में भी पार्टी को इस मंच से एक बड़ी सफलता दिलाने की ठान ली है। हो सकता है आने वाले विधानसभा चुनावों में वहां पार्टी ऐसा करिश्मा कर जाए जिसकी किसी ने कल्पना न की हो।
मोदी है तो मुमकिन है यह बात अब शी जिनपिंग को समझ आ गई है इसीलिए पाकिस्तान के साथ कश्मीर मामले पर और 370 के खात्मे को लेकर चीन के तेवर ढीले हैं। मोदी और जिनपिंग के संबंध दो देशों के रिश्ते हैं जिन्हें दुनिया कूटनीतिक चश्मे से देख रही है। यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि आतंक के मामले पर चीन अगर कल तक पाकिस्तान को प्रमोट करता था तो उसे भी आतंक के खिलाफ मोदी जी के दुनिया को एकजुट होने के आह्वान के समक्ष सरेंडर करना पड़ा क्योंकि मोदी ने नापाक आतंकियों को ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित करवाकर ही दम लिया। चीन और भारत के बीच व्यापार भी बड़ी चीज है मोदी जी इसे समझते हैं लेकिन यह भी सच है कि आपसी संबंधों की मजबूती ही व्यापार क्षेत्र में सफलता की गारंटी होती है।
इसके बावजूद दलाईलामा को जिस तरह से भारत में शरण मिली हुई है और सारा मामला चीन को कठघरे में खड़ा करता है परंतु यह सच है फिर भी चीन को सारे मामले पर मनमर्जी की इजाजत मोदी सरकार ने कभी नहीं दी। हां कम्युनिस्ट विचारधारा चीन का अपना मामला है लेकिन उसकी मानसिकता भी अपनी किस्म की है परंतु फिर भी हम यही कहना चाहेंगे कि हमें 1962 का वह धोखा याद रखना चाहिए जब चीन ने हमारी 40 हजार वर्ग किमी. से ज्यादा जमीन कब्जा ली थी। आज भारत यकीनन अलर्ट है क्योंकि इस ड्रेगन से जितना संभलकर रहो उतना ही अच्छा है।
हिंद महासागर से दक्षिणी चीन महासागर में चीन के जंगी बेड़े तैनात हैं और वह पाकिस्तान का समर्थन करते ही रहते हैं लेकिन मोदी जी ने सब कुछ कूटनीतिक तरीके से सैट कर रखा है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्लेषक जब यह कहते हैं कि चीन से सावधान और उस पर भरोसा इतनी जल्दी न किया जाए तो यह बात भी नजरअंदाज नहीं की जा सकती।
Advertisement

Join Channel