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मोदी मंत्र : रुक जाना नहीं कहीं हार के...

प्रधानमंत्री मोदी का रूप पानी जैसा है कि अपने को किसी भी सांचे में ढाल लेते हैं…

10:18 AM Feb 11, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed

प्रधानमंत्री मोदी का रूप पानी जैसा है कि अपने को किसी भी सांचे में ढाल लेते हैं…

मोदी मंत्र   रुक जाना नहीं कहीं हार के

प्रधानमंत्री मोदी का रूप पानी जैसा है कि अपने को किसी भी सांचे में ढाल लेते हैं। दिल्ली में देशभर से आए बच्चों से उन्होंने उस विषय पर बात करी, जिसको लेकर बच्चों में बड़ी ​चिन्ता बनी रहती है, अर्थात परीक्षा। उनका कोई भी कार्यक्रम हो, जैसे ‘परीक्षा पे चर्चा’, ‘मन की बात’, ‘थाली और ताली’ आदि, सभी ज़बरदस्त होता है। ‘परीक्षा पे चर्चा’ के अध्याय के पिछले आठ संस्करणों को मॉडर्न स्कूल दिल्ली ने बड़े सूक्ष्म और सटीक ढंग से अपना कर देश और दुनिया को अत्यंत प्रतिभाशाली विद्यार्थी दिए हैं और प्रधानमंत्री मोदी को बतौर गुरु वे सुपर से भी ऊपर मानते हैं।

शुरुआत उन्होंने इस प्रकार से की कि बच्चों को अपने में पूर्ण विश्वास होना चाहिए और बजाय किसी प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करने के, ख़ुद से द्वंद करना चाहिए क्योंकि जब तक “आप अपने ऊपर जीत नहीं अर्जित कर लेते, आप दुनिया जीत ही नहीं सकते। सबसे बड़ा द्वंद खुद से ही करना पड़ता है।” पीएम मोदी ने परीक्षा पे चर्चा में शामिल हुए छात्रों के साथ भारत मंडपम के पास सुंदर नर्सरी में पेड़ भी लगाया। पीएम मोदी ने कहा जैसे ये पेड़ लगाए हैं, पानी पिलाने का उपाय क्या है ? उन्होंने आगे बताया कि पेड़ के बगल में एक मिट्टी का मटका लगा देना चाहिए और उसमें एक महीने में पानी डालना चाहिए। इससे पेड़ का ग्रोथ कम पानी से भी होगा।

जब-जब प्रधानमंत्री बच्चों के बीच होते हैं, वे स्वयं बच्चा बन कर बच्चों का ज्ञान वर्धन करने के साथ-साथ उनके मनोरंजन का साधन बन जाते हैं और बच्चे उनके मनोरंजन का साधन। यह विशेषता है प्रधानमंत्री की कि जब वे दावोस में पर्यावरण पर बोलते हैं, तो लगता है कि वे पर्यावरणविद् हैं, जब चीन को ललकारते हैं तो लगता है फ़ौजी हैं और जब परीक्षा पे चर्चा करते हैं तो लगता है कि कोई दक्ष अध्यापक व प्रधानाचार्य हैं। ऐसी विशेषता बड़े कम लोगों में होती है।

विफलता के डर से जब त्रिपुरा से आए एक बच्चे ने सलाह मांगी तो मोदीजी ने बताया कि हमें अपनी जिंदगी में निरंतर प्रयास करना चाहिए, लगातार कोशिश करते रहना चाहिए, जैसा कि एक पुराने गीत की पंक्ति है, ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के,!’ पीएम मोदी ने खिलाडि़यों का उदाहरण देते हुए बताया, ‘हमारे जो खिलाड़ी होते हैं, वे हमेशा मैच खत्म होने के बाद उसकी रिकॉर्डिंग देखते हैं, देखते हैं कि उन्होंने खेलते समय कहां गलती की, जिससे वो आउट हुए। हमें भी ऐसे ही अपनी विफलताओं को टीचर बनाना चाहिए, उनसे सीखना चाहिए।’

बच्चों से बातें करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वे न केवल उनके अध्यापक या प्रिंसिपल हैं, बल्कि अभिभावक और मित्र भी हैं। और हां। जो-जो प्रश्न बच्चे मोदी जी से पूछ रहे थे, एक मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ की भांति बच्चों को समझा रहे थे और यह तो पक्की बात है कि जिन बच्चों के अतिरिक्त इस कार्यक्रम को अध्यापक व अभिभावक गण भी देख रहे होंगे, उनका अपने बच्चों के प्रति सही मार्गदर्शन किया जाएगा, क्योंकि इस प्रकार का गाइडेंस एक मोदी ही प्रदान कर सकता है।

उदाहरण के तौर पर एक बच्चे ने उनसे पूछा कि जब उनके अभिभावक उनसे उनकी इच्छा के खिलाफ़ अपनी बात मनवाना चाहें तो क्या किया जाए? इस पर बड़ा सटीक उत्तर देते हुए मोदी जी ने कहा कि उनकी बात मानें भी और मनवाएं भी। सरदार पटेल विद्यालय के एक बच्चे सिद्धार्थ ने पूछा कि उसके माता-पिता सदैव ही उस पर इस बात का जोर डालते हैं कि वह सर्व प्रथम रहे। इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा हो तो अच्छा है, मगर इसके लिए बच्चों पर हरगिज़ किसी भी प्रकार का दबाव डालना बिलकुल अनुचित है, क्योंकि हर बच्चा अपने में युकिन अर्थात सब से भिन्न और विलक्षण होता है और अभिभावकों को सब कुछ छोड़ कर बस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह खुश रहे। वास्तव में बच्चों के प्रति प्रधानमंत्री उस तथ्य को भली- भांति समझते हैं जो बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक भी नहीं समझ पाते हैं।

मणिपुर से आए एक छात्र ने जब मोदीजी से टेक्नोलॉजी के संबंध में पूछा तो उन्होंने बताया कि किसी भी देश की उन्नति के लिए विज्ञान रीढ़ की हड्डी की भांति है। टेक्नोलॉजी के सही उपयोग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि टैक्नोलॉजी कोई खतरनाक तूफान नहीं है जो उनको गिरा देगा। इनोवेशन उनकी भलाई के लिए हैं। वे टेक्नोलॉजी का सही तरीके से इस्तेमाल करें और अपने समय को बर्बाद करने वाली गतिविधियों से बचें।

केरल के एक सरकारी स्कूल से आई बच्ची आकांक्षा ने जो कविता मोदीजी पर पढ़ी, उसको सुनकर तो प्रधानमंत्री जी गद-गद हो गए, जिसका सार था, नरेंद्र मोदीजी जैसा दमदार, दिलदार, जानदार, शानदार, वफादार, कामदार, वज़ादार, सेवादार और सबसे महत्त्वपूर्ण, ईमानदार प्रधानमंत्री, न तो अब तक आया है और न ही आने की संभावना है। ऐसे ही चेन्नई से पधारी एक बच्ची फातिमा ने मौजूदा दौर के वातावरण को लेकर बड़ी प्यारी कविता कही, जिस पर उसे ख़ूब शाबाशी मिली। ऐसे ही एक बच्चे, वैभव ने पढ़ाई से वैमनस्य के बारे में पूछा तो प्रधानमंत्री ने कहा कि उसके लिए पहले तो उसी विषय से जूझो, लड़ो कुश्ती करो और उसे यह कह कर पटक दो कि क्या तू मुझ से ताक़तवर है, यह ले।

जब पश्चिमी बंगाल की साक्षी ने सवाल किया कि परीक्षा के समय टाइम मैनेजमेंट कैसे किया जाए तो इस पर प्रधानमंत्री ने बड़ा ही प्रशंसनीय जवाब दिया कि बच्चों को काम पूर्ण करने की एक लिस्ट बनानी चाहिए। अपनी जरूरत और महत्त्व के अनुसार बच्चों को लिस्ट में लिखे काम करते रहने चाहिए और टिक लगाते रहने चाहिए कि फलां काम हो चुका है। यदि कोई काम न हुआ हो उसे पूरा करके ही अगला काम। किया जाए। यही कारण है कि भारत के बच्चे, अपने विलक्षण गुरुओं के आशीर्वाद से दिन दूनी, रात चौगुनी प्रशस्ति कर रहे हैं।

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Firoj Bakht Ahmed

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