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मोदी-शाह : जोड़ी है कमाल की

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह 1987 से एक-दूसरे के साथ हैं। इसके बावजूद दोनों के रिश्तों में एक तरह की अनौपचारिकता साफ दिखती है। इसे हम इनका प्रोफैशनलिज्म कह सकते हैं

02:46 AM Mar 08, 2020 IST | Aditya Chopra

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह 1987 से एक-दूसरे के साथ हैं। इसके बावजूद दोनों के रिश्तों में एक तरह की अनौपचारिकता साफ दिखती है। इसे हम इनका प्रोफैशनलिज्म कह सकते हैं

1951 में जब भाजपा ने भारतीय जनसंघ के नाम से अपना सफर शुरू किया था तो तब किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि यह पार्टी कभी अपना राष्ट्रपति, अपना प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, दर्जनों राज्यपाल, मुख्यमंत्री बना पाएगी। राजनीतिक विश्लेषकों ने भी कभी नहीं कहा था कि बार-बार पराजय का मुंह देखने के बाद कभी यह पार्टी राष्ट्रीय फलक पर छा जाएगी। लगभग 6 दशक तक भाजपा ने भी कई उतार-चढ़ाव देखे। पांडवों की भांति कई बार कौरवों के चक्रव्यूह में फंसी और बाहर भी निकली। फिर अटल जी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भी बहुत उथल-पुथल देखी। 
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अटल जी के नेतृत्व में जब एनडीए की सरकार पूरे पांच वर्ष के लिए बनी तो भाजपा को इस बात का मलाल रहा कि गठबंधन सरकार की मजबूरियों के चलते भाजपा का अपना एजैंडा तो गायब हो गया था सिर्फ रहा तो एनडीए का डंडा यानी सरकार के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम। सरकार में अटल जी के साथ उनके राजनीतिक सफर के साथी लालकृष्ण अडवानी भी गृहमंत्री के तौर पर साथ थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सफर में पार्टी के चुनावी एजैंडे में तीन बातें मुख्य तौर पर शामिल थीं।
-जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करना।
-श्रीराम मंदिर का ​निर्माण।
-समान आचार संहिता  लागू करना।
गठबंधन की विवशताओं के चलते अटल-अडवानी की जोड़ी भी अपने एजैंडे पर काम नहीं कर सकी। पार्टी के भीतर महत्वाकांक्षाओं के ‘युद्ध’ के चलते पार्टी के भीतर से उठे स्वरों ने भाजपा की छवि को धूमिल कर दिया। इंडिया शाइनिंग के नारे पर लड़े गए चुनाव में भाजपा पराजित हो गई। अटल जी एकांतवास में चले गए। भाजपा में चिंतन मंथन होता रहा। दो बार लोकसभा चुनाव हारने पर पार्टी में छटपटाहट थी। पार्टी कैडर हताश हो चुका था। तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच 9 जून, 2013 को गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नरेन्द्र मोदी को लोकसभा के गठित प्रचार समिति का अध्यक्ष नामित किया गया था।
लालकृष्ण अडवानी के विरोध के बावजूद सितम्बर माह में भाजपा संसदीय बोर्ड ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। 2014 में मोदी आंधी में कांग्रेस समेत कई दल उखड़ गए। इसके साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में अमित शाह का पदार्पण हुआ और भाजपा अध्यक्ष के रूप में पार्टी का विस्तार देशभर में हुआ। 2019 के चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के राजनीतिक कौशल से भाजपा विजयी होकर ​निकली। इस बात पर गौर करना चाहिए कि इतिहास भी स्वयं महान परिवर्तन के लिए उत्सुक था। भारत की चेतना शक्ति देख रही थी ​कि भारत यूपीए शासनकाल में जड़ता की ओर बढ़ रहा था। यदि यह जड़ता नहीं टूटती तो देश भीषण विप्लव की ओर बढ़ जाता।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह 1987 से एक-दूसरे के साथ हैं। इसके बावजूद दोनों के रिश्तों में एक तरह की अनौपचारिकता साफ दिखती है। इसे हम इनका प्रोफैशनलिज्म कह सकते हैं। प्रधानमंत्री को जितना भरोसा अमित शाह पर उतना ही भरोसा अमित शाह को उन पर है। दोनों ही अपने लक्ष्य को साध कर निशाना लगाते हैं। 2019 का चुनाव जीतने के बाद अमित शाह को गृहमंत्री का पद दिया गया। इसका अर्थ यही था कि प्रधानमंत्री को अमित शाह पर भरोसा था कि संवेदनशील कश्मीर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर डाल दी। दोनों की जोड़ी इसलिए भी खास है क्योंकि दोनों के बीच कभी मतभेद दिखाई नहीं दिए। दोनों ने एक-दूसरे की बात को कभी काटा भी नहीं और न ही कभी एक-दूसरे के रास्ते में आए। दोनों ही दोस्त होने के बावजूद राजनीतिक शिष्टाचार और मर्यादाओं का पालन करते दिखाई देते हैं।
इस जोड़ी ने देश में नए आयाम स्थापित किए हैं। एक ही झटके में अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर पूरे देश को हैरत में डाल दिया था। खास बात यह रही कि इसके बाद कश्मीर में एक भी गोली नहीं चली। अब तो जम्मू-कश्मीर में सोशल मीडिया भी खोल दिया गया है। स्थितियां सामान्य हो रही हैं। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में वहां सियासी गतिविधियां भी शुरू हो जाएंगी क्योंकि वहां का अवाम इस बात को समझ रहा है कि अनुच्छेद 370 लाश बन चुका था।
जहां तक राम मंदिर निर्माण का संबंध है, भाजपा की पुरानी चिंता दूर हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद देश ने इस फैसले को स्वीकार कर ​लिया और देश के मुस्लिमों ने भी फैसले को स्वीकार किया। एक-दो अपवादों को छोड़कर कहीं से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। जहां तक समान नागरिक संहिता का सवाल है, सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति इसी दिशा में बढ़ा कदम था।
जहां तक भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा का सवाल है, इस मामले में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समन्वय से काम कर रहे हैं। पुलवामा के बाद बालकोट एयर स्ट्राइक से लेकर आज तक भारतीय सेना पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रही है। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी धुंध अब छंटने लगी क्योंकि इसका विरोध केवल भ्रम के कारण ही किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था को लेकर चुनौतियां जरूर हैं लेकिन यह चुनौतियां वैश्विक भी हैं, इससे भारत अछूता नहीं रह सकता। देश को उम्मीद है कि मोदी सरकार इन चुनौतियों से भी उबर जाएगी। इस जोड़ी पर लोगों का भरोसा कायम है। दोनों ही जनता से सीधा संवाद स्थापित करने और राष्ट्रवादी विचारधारा के ​िवस्तृत स्वरूप को राजनीतिक कैनवस पर उतारकर उसे जन-जन की धारणा बनाने में सफल रहे हैं। एक भारत सर्वश्रेष्ठ भारत बनाने के ​लिए यह जोड़ी तो कमाल की है।
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