मोदी का ‘लोकनायक’ चेहरा
प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी आजाद भारत के ऐसे लोकनायक हैं…
अब यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी आजाद भारत के ऐसे लोकनायक हैं जिनकी राजनीति ‘भारत सर्व प्रथम’ के इर्द-गिर्द ही घूमती है। एक अन्तर्राष्ट्रीय साक्षात्कारकर्ता लेक्स फ्रिडमैन को दिये गये लम्बे साक्षात्कार में श्री मोदी ने स्पष्ट किया कि अमेरिका के नये राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प के साथ उनके दोस्ताना सम्बन्ध इसी घेरे में घूमते हैं जबकि श्री ट्रम्प के सामने भी ‘अमेरिका सर्वप्रथम’ का लक्ष्य रहता है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है क्योंकि भारत- अमेरिका सम्बन्धों को यदि हम इसी दायरे में रख कर देखें तो दोनों देशों के नेताओं के बीच आपसी सम्बन्धों की मिठास कहीं गहरी है जो दोनों नेताओं को अपने-अपने राष्ट्रीय हित साधते हुए एक-दूसरे के करीब लाती है। मगर राष्ट्रीय मोर्चे पर श्री मोदी की पकड़ बहुत गहरी है जो उनके चीन के बारे में कहे गये उद्गारों से प्रकट होती है। श्री मोदी ने स्पष्ट किया कि दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध ऐतिहासिक रूप से बहुत आत्मीय रहे हैं।
दोनों देशों की पुरातन संस्कृतियां एक-दूसरे से इस तरह बावस्ता रही हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर इन दोनों के आपसी सहयोग का रास्ता मौजूदा सदी में भी खुलता है। श्री मोदी ने चीन के बारे में फैले भ्रम को छांटते हुए साफ किया कि मौजूदा 21वीं सदी को एशिया की सदी माना जा रहा है जिसके अंतर्गत भारत व चीन का आपसी सहयोग महत्वपूर्ण है। इन दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों पर असहमति हो सकती है परन्तु इसे विवाद में नहीं बदला जाना चाहिए। जहां तक चीन से प्रतियोगिता का सवाल है तो यह विवादरहित रह कर एक-दूसरे के साथ सहकार की भावना से भी संचालित हो सकती है। प्रधानमन्त्री चाहते हैं कि मतभिन्नता का मतलब केवल विवाद नहीं हो सकता। इसके साथ ही श्री मोदी ने चीन को चेताया भी है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद आपसी सहयोग व वार्तालाप से ही निपटाया जाना चाहिए ।
इस सन्दर्भ में उन्होंने भारत व चीन के बीच 2020 से पहले की स्थितियों की बहाली की वकालत की है और साफ किया है कि सीमा पर शान्ति व सौहार्द को बनाये रखते हुए यह कार्य किया जाना चाहिए। इस साक्षात्कार के बाद दुनिया के लोगों को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि भारत की विदेश नीति हर मोर्चे पर समरसता की है जिसमें भारतीय हित सर्वप्रथम रहते हैं। चीन के बारे में श्री मोदी ने बहुत ही स्पष्टवादिता का परिचय देते हुए कहा कि इतिहास में इस बात के प्रमाण मिलते हैं किसी समय में भारत और चीन का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में हिस्सा 50 प्रतिशत से भी अधिक था। यह इसी बात का प्रमाण है कि श्री मोदी चीन के साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध चाहते हैं। वैसे भी भारत-चीन के सम्बन्ध पंचशील के सिद्धान्त पर टिके हुए हैं। इसके साथ ही श्री मोदी ने रूस व यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को भी समाप्त करने की इच्छा जाहिर की है।
उनका यह कहना कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ दुनिया के कई देश हो सकते हैं परन्तु अन्तिम हल रण क्षेत्र से नहीं निकलेगा बल्कि यह बातचीत की मेज पर ही निकलेगा। इस सन्दर्भ में उन्होंने जो भारतीय विदेश नीति की व्याख्या की है वह बेजोड़ है और बताती है कि चीन के साथ भारत के सम्बन्धों की पृष्ठ भूमि इन्हीं तेवरों के साथ आख्यायित की जानी चाहिए।
जाहिर है कि 1962 में भारत पर आक्रमण करके चीन ने न केवल भारत को हैरान किया था, बल्कि पूरी दुनिया इस पर हैरान थी कि दोनों देशों के बीच खिंची हुई मैकमोहन रेखा को स्वीकार न करने वाले चीन ने यह आक्रमण अपनी सैनिक मानसिकता के चलते ही किया था। वर्तमान दौर किसी भी हालत में युद्धों का दौर नहीं है, बल्कि यह आर्थिक ताकत संवारते हुए आपसी बातचीत द्वारा समस्याओं को हल करने का दौर है। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो श्री मोदी ने बेबाक तरीके से इस्लामाबाद को पैगाम दिया है कि वह आतंकवाद को पाल-पोसने की जगह शान्ति व सौहार्द के रास्ते पर चले। श्री मोदी का यह कहना कि भारत की तरफ से शान्ति के हर प्रस्ताव का जवाब पाकिस्तान ने दुर्भावना व विश्वासघात से दिया, बताता है कि भारत की तरफ से हर मौके पर जब भी पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों को मधुर बनाने की कोशिश की गई तो उसे जवाब में कड़वाहट ही मिली।
मगर पाकिस्तान अपनी दहशतगर्द कार्रवाइयों की वजह से पूरी दुनिया में अवांछित होता जा रहा है क्योंकि पूरे विश्व में जहां-जहां भी आतंकवादी कार्रवाई होती है तो किसी न किसी रूप में उसके तार पाकिस्तान से ही जुड़े मिलते हैं। जबकि श्री मोदी ने कूटनीतिक रास्तों से ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी पाकिस्तान के साथ सौहार्द कायम करने हेतु हर संभव प्रयास किया।
अपने प्रधानमन्त्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में श्री मोदी ने पाकिस्तान समेत सभी दक्षेस देशों के राज्य प्रमुखों को नई दिल्ली आमन्त्रित किया था। यह सदाशयता इसीलिए दिखाई गई थी जिससे पाकिस्तान सबक लेकर भारत के प्रति अपने नजरिये को बदले। जहां तक घरेलू मोर्चे का सवाल है तो 2014 में अपने पद पर बैठने के बाद ही श्री मोदी ने राजनीति के मानकों को बदल दिया था और सिद्ध किया था कि जिस विचारधारा को पहले की सरकारों की पार्टियों ने अस्पृश्य बना रखा था, उसमें इतनी ताकत है कि वह केन्द्र में बैठकर इस हिन्दोस्तान की निगेहबानी कर सके। निश्चित रूप से यह राष्ट्रवादी विचारधारा है जो हर जाति व वर्ण और वर्ग के लोगों को आपस में जोड़ती है। अतः श्री मोदी की पार्टी भाजपा को दो बार लोकसभा चुनावों में अपने बूते पर पूर्ण बहुमत मिलना इस बात का सबूत था कि भारत के लोग राष्ट्रवादी विचारधारा के उस प्रयोग को सफल देखना चाहते हैं जिसे कभी 1951 में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विवेचित किया था। निश्चित रूप से यह हिन्दू महासभा की विचारधारा नहीं थी बल्कि भारत की जमीन में फैली वह बेल थी जिसे हरा- भरा करने की जिम्मेदारी समय ने श्री नरेन्द्र मोदी पर छोड़ी थी। मोदी अपने इस कार्य में सफल हुए हैं तभी केन्द्र में इस बार 240 सीटें पाने के बावजूद कुछ क्षेत्रीय दलों ने मोदी सरकार में शामिल होने का निर्णय किया।