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मोदी का शांति-वार्ता संदेश

ईरान-इजराइल युद्ध पर भारत की चिंता…

06:00 AM Jun 24, 2025 IST | Aditya Chopra

ईरान-इजराइल युद्ध पर भारत की चिंता…

एक तरफ जब अमेरिका इजराइल-ईरान युद्ध में कूद चुका है तो भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने शान्ति व वार्ता का सन्देश दिया है और कहा है कि केवल कूटनीति और संवाद के जरिये ही विश्व की किसी भी समस्या का हल किया जा सकता है। अमेरिका के युद्ध में कूदने के बाद ईरान के राष्ट्रपति श्री मसूद पेजेश्कियान ने श्री मोदी से फोन पर वार्ता की जिसमें श्री मोदी ने कहा कि क्षेत्रीय शान्ति व स्थिरता के लिए जरूरी है कि वार्ताओं और संवाद के माध्यम से समस्या का हल किया जाये और हर स्तर पर शान्ति का वातावरण बना कर रखा जाये। भारत का मानना रहा है कि युद्ध से केवल विनाश ही होता है और वार्ता से ही विध्वंस के रास्ते का अंत किया जा सकता है। जहां तक ईरान व इजराइल का सम्बन्ध है तो भारत के दोनों देशों के साथ ही मधुर सम्बन्ध हैं।

ईरान के साथ भी इसका गहरा नाता नागरिक से लेकर आपसी तकनीकी व कूटनीतिक सहयोग में रहा है और इजराइल के साथ भी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उसका सहयोग है परन्तु आज ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर इजराइल व अमेरिका जो हाय-तौबा मचा रहे हैं उसके बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि ईरान परमाणु अप्रसार सन्धि (एनपीटी) पर पहले से हस्ताक्षर करने वाला देश है जबकि इजराइल के पास भी परमाणु शक्ति है परन्तु इसने एनपीटी पर दस्तखत नहीं किये हैं। इस मामले में देखा जाये तो ईरान का पलड़ा भारी है मगर इजराइल, अमेरिका व कुछ पश्चिमी देश इस तर्क को मानने के लिए राजी नहीं हैं और उनका कहना है कि ईरान परमाणु बम बनाने की तरफ अग्रसर है और इस सम्बन्ध में अपने देश के परमाणु ठिकानों पर यूरेनियम का परिशोधन कर रहा है।

ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शान्ति पूर्ण उद्देश्यों के लिए है और उसका इरादा परमाणु शक्ति हथियाने का बिल्कुल नहीं है। इस सन्दर्भ में भारत की भूमिका इतनी है कि वह दुनिया को समझाये कि ऐसी जटिल समस्या का हल आपस में बातचीत करके भी खोजा जा सकता है इसके लिए पूर्ण युद्ध जरूरी नहीं है। श्री मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति के साथ हुई अपनी बातचीत में स्पष्ट रूप से इजराइल-ईरान युद्ध के आगे बढ़ने पर गहरी चिन्ता प्रकट की। उन्होंने कहा कि भारत शान्ति और मानवता के पक्ष में खड़ा है। अतः सर्वप्रथम युद्ध बढ़ने के आसार कम किये जाने चाहिए। यह कार्य वार्ता और कूटनीति के जरिये ही हो सकता है। उन्होंने साफ कहा कि भारत क्षेत्रीय स्थिरता व शान्ति का समर्थन करता है।

जाहिर है कि भारत का मत अमेरिका द्वारा युद्ध को भड़काने के पक्ष में नहीं है और वह ईरान के भी ऐसे प्रयासों का भी समर्थन नहीं करता क्योंकि 2005 में भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के विरुद्ध भी मतदान किया था। उस समय केन्द्र में डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार थी। अतः आज यदि कांग्रेस यह कर रही है कि मोदी सरकार को आंखें मींच कर ईरान का समर्थन करना चाहिए तो उसे सबसे पहले अपने इतिहास को ही ध्यान से पढ़ना चाहिए। श्री मोदी का रुख पूरी तरह राष्ट्रीय हित में है क्योंकि ईरान से हमारे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं और दोनों देशों के लोगों के बीच भी दोस्ताना ताल्लुकात रहे हैं। जिस तरह ईरान में हाल के युद्ध में हजारों नागरिक फंसे हुए हैं उन्हें भारत भेजने में भी ईरान की सरकार भारत सरकार से पूरा सहयोग कर रही है। इस बात के लिए श्री मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति को धन्यवाद भी दिया।

ईरान के साथ भारत के आर्थिक व वाणिज्यिक सम्बन्ध भी बहुत गहरे हैं जिसका प्रमाण इसका चाबहार बन्दरगाह है जो भारत के सहयोग से बना है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में बने ग्वादर बन्दरगाह का यह माकूल जवाब है जिसका इस्तेमाल चीन बखूबी करता है। अतः ईरान रणनीतिक तौर पर भी भारत का सहयोगी है। इसके साथ ही ईरान ने कश्मीर के मुद्दे पर भी कई बार भारत का समर्थन किया है। जहां तक इजराइल का सम्बन्ध है तो इसने हाल की पहलगाम घटना के बाद भारत को पूरा समर्थन दिया। मगर ईरान को पश्चिम एशियाई क्षेत्र में आतंकवादी संगठनों को समर्थन देना भी बन्द करना होगा क्योंकि इजराइल व अमेरिका का यही कहना है कि ईरान हमास, हिज्बुल्लाह व हूती जैसे संगठनों का खुला समर्थन करता है।

इनका मानना है कि यदि ईरान परमाणु बम बना लेता है तो क्षेत्र की आतंकवादी शक्तियां इसका अधिग्रहण कर सकती हैं परन्तु ईरान के परमाणु कार्यक्रम में रूस सहयोग कर रहा है और इसका कहना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शान्ति पूर्ण है। कुल मिलाकर स्थिति इतनी जटिल हो चुकी है कि इसका समाधान केवल श्री मोदी के वार्ता व संवाद के फार्मूले से ही निकल सकता है। इजराइल- ईरान युद्ध में अमेरिका जिस तरह कूदा है उसे लेकर भी खुद अमेरिका में ही कई सवाल खड़े किये जा रहे हैं और इस बारे में राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद की बैठक भी बुलाई जा रही है। सुरक्षा परिषद क्या हल दे पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

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