मोहम्मद यूनुस का गेम ओवर?
बंगलादेश में मोहम्मद यूनुस की सत्ता का संकट गहराया…
क्या बंगलादेश में 9 महीने में ही अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस का गेम ओवर हो चुका है? बंगलादेश की अंतरिम सरकार चारों तरफ से घिर चुकी है। उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दल उनके विरोध में सड़कों पर आ चुके हैं। यहां तक कि जिस सेना की सहमति से वे अंतरिम सरकार के प्रमुख बने थे वह सेना भी खुलेआम उनके विरोध में उतर चुकी है। केवल छात्र और कुछ कट्टरपंथी ताकतें उनके समर्थन में खड़ी दिखाई देती हैं। पहले उन्होंने इस्तीफा देने की धमकी दी। अब खबर यह आ रही है कि वह 30 जून के बाद पद पर नहीं रहेंगे। मोहम्मद यूनुस ने यह स्पष्ट किया कि चुनाव 2025 से जून 2026 के बीच में होंगे और वह जून के बाद पद पर नहीं रहेंगे। इस समूचे घटनाक्रम ने बंगलादेश में अंतरिम सरकार व राजनीतिक दलों के बीच मतभेदों को पूरी तरह से उजागर कर दिया है। देश में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। अर्थव्यवस्था दिन-प्रतिदिन कंगाल होती जा रही है। हालात इस कदर खराब हैं कि मोहम्मद यूनुस ने घुटने टेक दिए हैं।
दरअसल मोहम्मद यूनुस अब राजनेता बनने की महत्वकांक्षा पाल रहे थे और इसी के चलते उन्होंने भारत को आंखें दिखानी शुरू कर दी थी। वह चीन की गोद में बैठकर मोदी सरकार को धमकियां दे रहे थे लेकिन जब भारत ने एक के बाद एक कदम उठाकर बंगलादेश की कमर तोड़ दी तो यूनुस अपनों से ही घिर गए। बंगलादेश की पूर्व प्रधानमंत्री जो भारत में ही रह रही है, ने कुछ दिन पहले यह आरोप लगाया था कि यूनुस ने बंगलादेश अमेरिका के हाथों बेच दिया है और उन्होंने आतंकवादियों की मदद से सत्ता हथियाई है। इनमें से कई आतंकी संगठन ऐसे हैं जिन पर अंतर्राष्ट्रीय बैन लगा हुआ है। अब बंगलादेश की सभी जेलें खाली हैं और सत्ता पर आतंकवादियों का ही राज है। इसमें कोई संदेह नहीं कि नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अमेरिका ने ही अंतरिम सरकार का मुखिया बनाने में मदद की लेकिन अब अस्थिरता इतनी फैल चुकी है कि अमेरिका और चीन भी उन्हें बचा नहीं पाएंगे। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी चुनावों की मांग कर रही है। शेख हसीना की पार्टी बंगलादेश आवामी लीग पर भले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है लेकिन उसके कार्यकर्ता भी पूरी ताकत के साथ चुनावों की मांग कर रहे हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि सेना प्रमुख वकार-उज-जमान और मोहम्मद यूनुस में रखाईन कॉरिडोर को लेकर तीव्र मतभेद पैदा हो गए हैं। यह कॉरिडोर बंगलादेश को म्यांमार के रखाईन राज्य से जोड़ेगा। अमेरिका चाहता है कि चटगांव-रखाईन कॉरिडोर के जरिए रोहिंग्याओं तक मानवीय सहायता पहुंचाई जाए। मोहम्मद यूनुस ने इस कॉरिडोर पर सहमति दे दी। यह सहमति सेना को नकारने जैसी थी। सेना का कहना है कि यह गलियारा उसकी संप्रभुता पर असर डाल सकता है। बंगलादेश में आम धारणा यह है कि अमेरिका अपने सामरिक और भू-रणनीतिक फायदे के लिए इस कॉरिडोर योजना को आगे बढ़ा रहा है। बंगलादेश सेना प्रमुख ने इस गलियारे को खूनी गलियारा करार दिया है। बंगलादेश के सुरक्षा विशेषज्ञों ने रखाईन गलियारे पर चिंता जताई है। सुरक्षा विशेषज्ञों को चिंता है कि रखाईन क्षेत्र में अराकान आर्मी जैसे विद्रोही समूहों की बढ़ती गतिविधियां और म्यांमार की सीमा पर उनके नियंत्रण से बंगलादेश में अस्थिरता फैल सकती है। उदाहरण के लिए, अराकान आर्मी ने हाल ही में बंगलादेश-म्यांमार सीमा पर कई चौकियों पर कब्जा कर लिया है जिससे सीमा पार से हथियारों, आतंकवादी गतिविधियां और घुसपैठ का जोखिम बढ़ गया है।
दूसरा डर रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर है। सुरक्षा विशेषज्ञों को डर है कि रखाईल गलियारा रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति को और जटिल कर सकता है। बंगलादेश में पहले से ही 10 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी मौजूद हैं और गलियारे के खुलने से म्यांमार से और अधिक शरणार्थी बंगलादेश में प्रवेश कर सकते हैं। इस गलियारे को लेकर बंगलादेश की इस तरह की व्याख्या की जा रही है कि यूनुस और उनके वफादार चुनाव के बिना सत्ता में बने रहने की अमेरिकी मांग के आगे झुक रहे हैं लेकिन बंगलादेश की आर्मी ने इस कॉरिडोर को अंतरिम सरकार द्वारा रेड लाइन क्रॉस करना समझा और इसका प्रत्यक्ष, स्पष्ट और मुखर विरोध किया। बुधवार को यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को चेतावनी देते हुए आर्मी चीफ वकार-उज-जमान ने कहा, “बंगलादेश की सेना कभी भी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगी जो संप्रभुता के लिए हानिकारक हो। न ही किसी को ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी।” यद्यपि मोहम्मद यूनुस भारत पर राजनीतिक अस्थिरता फैलाने के आरोप लगा रहे हैं लेकिन यह साफ है कि वे जनता की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे। देश की अर्थव्यवस्था मंदी में है। विश्व बैंक ने अपने आर्थिक विकास के पूर्वानुमान को घटा दिया है।
भारत के साथ बंगलादेश के अलगाव के चलते व्यापार ठप्प है। भारत के कड़े एक्शन के बाद उसने कई अच्छे अवसर खो दिए हैं। यूनुस ने अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए भारत विरोध का सहारा लिया और चीन का साथ लेकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़े चिकन नैक कॉरिडोर के निकट एयरबेस बनाने की अनुमति दे दी लेकिन अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन चुका है। जिस तरह की स्थितियां हैं वह दक्षिण एशियाई देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। अगर मोहम्मद यूनुस ने चुनाव टालने की कोशिशें की तो एक बार फिर वहां तख्ता पलट हो सकता है। भारत की स्थिति पर सतर्क नजर है। यह तय है कि मोहम्मद यूनुस को एक न एक दिन सत्ता छोड़नी हो होगी अन्यथा सेना सत्ता संघर्ष की एक प्रमुख घटक बनेगी।