मौद्रिक और राजकोषीय उपाय
लगभग 5 साल के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए…
लगभग 5 साल के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सर्वसम्मति से रेपो दर को 6.50 फीसदी से घटाकर 6.25 फीसदी करने का निर्णय लिया है। इससे पहले आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 12 लाख पर कोई टैक्स नहीं लगने का ऐलान किया था। इससे वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए 75 हजार रुपए के स्टैंडर्ड डिडक्शन के साथ कुुल टैक्स छूट 12 लाख 75 हजार रुपए हो जाती है। यह वित्तीय फैसले महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक हैं। आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपनी पहली नीतिगत समीक्षा में वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से पैदा हुई चुनौतियों का उल्लेख भी िकया। इन चुनौतियों में अमेरिका में दरों में कटौती की कम होती सम्भावनाओं और मजबूत डॉलर के कारण उभरते बाजारों आैर रुपए सहित उनकी मुद्राओं पर दबाव शामिल है। यद्यपि मुद्रास्फीति चिंता का एक बड़ा कारण है। आरबीआई का बजट के बाद नीतिगत रुख राजकोषीय नीति के साथ तालमेल का संकेत देता है। मौद्रिक और राजकोषीय उपायों का उद्देश्य उपभोक्ता की मांग बढ़ाना आैर निजी निवेश को आकर्षित करना और िवकस को बढ़ावा देना है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उम्मीद व्यक्त की है िक इन उपायों से उपभोग बढ़ेगा आैर िनजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि कई कारोबारी नेताओं ने अप्रैल, जून के लिए उपभोक्ता सामान के ऑर्डर पहले ही बुक कर लिए हैं और उद्योग को स्पष्ट रूप से खपत में सम्भावित सुधार के संकेत मिल रहे हैं। खपत बढ़ने से उत्पादन बढ़ेगा और उससे निवेश बढ़ेगा।
सबसे चिंता की बात पिछले कुछ समय से विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट बनी हुई थी। जिस विनिर्माण क्षेत्र के बल पर सकल घरेलू उत्पादन ऊंचा बना हुआ था, वह मांग घटने की वजह से तीन फीसद के आसपास सिमट गया है। तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद की बिक्री पर भी बुरा असर देखा जाने लगा है। ऐसे में रेपो दर में कटौती का कुछ अच्छा असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ने की उम्मीद है। मगर बाजार में छाई सुस्ती और मांग में कमी आने की वजह केवल ऊंची रेपो दर नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी है। कोरोना की बंदी के बाद बाजार तेजी से पटरी पर तो लौटा, मगर लोगों की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हो पाई। कई मामलों में प्रति व्यक्ति आय घटी है, जबकि उसकी तुलना में महंगाई काफी बढ़ गई है। इसलिए लोगों ने अपने दैनिक उपभोग में कटौती की है। रेपो दर में कटौती से जरूर लोगों की जेब पर पड़ने वाला बोझ कुछ कम होगा, मगर पच्चीस आधार अंक की कटौती इतनी मामूली है कि वह लोगों के उपभोग व्यय के रूप में रूपांतरित हो पाएगी, कहना मुश्किल है।
जितनी जल्दी बैंक रेपो दर में हुई कटौती का लाभ अपने ग्राहकों को देना शुरू कर देंगे, उसके बाद ही वाहनों आैर घरों की खरीद बढ़ेगी। ऑटोे और होम लोन महंगे होने के कारण लोग अभी खरीदारी में परहेज कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अधिक ब्याज चुकाना पड़ रहा है। जहां तक महंगाई का सवाल है, रिजर्व बैंक का लक्ष्य महंगाई को 4 फीसदी के आसपास समेट देने का है। सरकार और रिजर्व बैंक सभी मोर्चों पर मिलकर काम कर रहे हैं। अब नया आयकर िवधेयक संसद में पेश किए जाने वाला है। वित्त मंत्री ने बजट में रैंट से होने वाली इन्कम पर टीडीएस छूट दोगुणी की है। वरिष्ठ नागरिकों को ब्याज की आय पर छूट दोगुणी की है। उम्मीद की जाती है कि इन उपायों से उपभोक्ता मांग बढ़ेगी। वित्तीय और राजकोषीय सुधार लगातार होते रहने चाहिए।
रिजर्व बैंक ने यह संकेत भी दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो इकोनॉमी में और लिक्विडिटी बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। इसका मतलब यह है कि रिजर्व बैंक मार्केट में कैश फ्लो बढ़ाने की कोशिश करेगा। रिजर्व बैंक की ओर से मॉनीटरी पॉलिसी का फ्लो बनाए रखने के कदमों की भी जानकारी दी गई। मीडिया से बात करते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने आगे साफ किया कि बेसिक कस्टम ड्यूटी में बदलाव के पीछे कोई ग्लोबल फैक्टर नहीं है। पिछले दो साल से इस पर काम चल रहा था। उन्होंने कहा कि हम इंडस्ट्री की जरूरत के अनुसार टैरिफ प्रोटेक्शन देंगे। इंडस्ट्री लीडर से इस बारे में बात चलती रहती है। अर्थव्यवस्था का चक्र तेजी से चलाने के लिए फार्मूला यही होता है कि आम आदमी की जेब में पैसा बचे और वह खरीदारी के िलए बाजार में निकले। देखना होगा कि इन उपायों का कितना फायदा होता है।