For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

माँ बेटी का अपमान

भारत में इंटरनेट के माध्यम से जो लोग मुस्लिम महिलाओं को बाजारू वस्तु बना कर अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं वे किसी भी नजरिये से न तो हिन्दू हो सकते हैं और न भारतीय हो सकते हैं क्योंकि उनकी रोगी मानसिकता भारतीय संस्कृति के सबसे उज्ज्वल पक्ष को कलंकित करने का काम करती है जिसमें नारी के सम्मान को सबसे ऊंचे पायदान पर रखा गया है।

03:24 AM Jan 05, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत में इंटरनेट के माध्यम से जो लोग मुस्लिम महिलाओं को बाजारू वस्तु बना कर अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं वे किसी भी नजरिये से न तो हिन्दू हो सकते हैं और न भारतीय हो सकते हैं क्योंकि उनकी रोगी मानसिकता भारतीय संस्कृति के सबसे उज्ज्वल पक्ष को कलंकित करने का काम करती है जिसमें नारी के सम्मान को सबसे ऊंचे पायदान पर रखा गया है।

माँ बेटी का अपमान
भारत में इंटरनेट के माध्यम से जो लोग मुस्लिम महिलाओं को बाजारू वस्तु बना कर अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं वे किसी भी नजरिये से न तो हिन्दू हो सकते हैं और न भारतीय हो सकते हैं क्योंकि उनकी रोगी मानसिकता भारतीय संस्कृति के सबसे उज्ज्वल पक्ष को कलंकित करने का काम करती है जिसमें नारी के सम्मान को सबसे ऊंचे पायदान पर रखा गया है। यह केवल लिखने-पढ़ने के लिए नहीं है कि ‘जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है’  बल्कि व्यावहारिक जीवन में उतारने के लिए है क्योंकि हिन्दुओं के सबसे बड़े त्यौहार दीपावली पर मूल रूप से ‘गृहलक्ष्मी’ का ही दैनिक जीवन में महत्व स्थापित किया जाता है। इस बारे में दीपावली के अवसर पर घर-घर में पूजा के समय कही जाने वाली कहानियां प्रमाण हैं। बेशक ये लोक कथाएं या किंवदन्तियां ही हैं मगर इनकी महत्ता का आभास हमें अपने व्यावहारिक जीवन में कराया जाता है। इसके साथ किसी भी देश के विकास और प्रगति का पैमाना उस देश के समाज में स्त्री को मिले सम्मान से तय होता है। अतः बहुत स्वाभाविक है कि हम मुस्लिम स्त्रियों का अपमान करने वाले लोगों को बिना समय गंवाए कानून की जद में लायें और भारतीय दंड संहिता व साइबर कानून की ऐसी  धाराओं में जकड़ें जिससे आने वाले समय में किसी को भी ऐसी हरकत करने का साहस न हो पाये।
Advertisement
बेशक यह हकीकत है कि जिस ‘गिटहब’ इंटरनेट प्लेटफार्म से ‘बुल्ली बाई’ जैसी वेबसाइट बना कर कम से कम 100 भारतीय मुस्लिम महिलाओं की नीलामी करने जैसी घृष्टता की गई है उसका भारत में कोई पता नहीं है मगर हमारे देश की साइबर क्राइम को खोजने वाली पुलिस की इकाई इतनी सक्षम है कि विभिन्न सूत्रों को पकड़ कर उनका पता लगा सके। आखिरकार ऐसे  लोगों की मंशा क्या हो सकती है?  सिवाये इसके कि वे भारत के बहुधर्मी और विविध मत-मतान्तरों वाले समाज में मुस्लिम समुदाय को हतोत्साहित करें और उन्हें भारत के  नागरिक अधिकारों की श्रेणी में निरीह साबित करें। किसी भी सभ्य समाज में यह संभव नहीं है क्योंकि नारी स्वयं में नागरिक अधिकारों से लैस होती है। भारत के सन्दर्भ में तो यह पूरी तरह स्पष्ट है कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकार स्त्री-पुरुष देख कर तय नहीं किये गये हैं। जिस देश की प्रधानमन्त्री तक एक महिला इन्दिरा गांधी रहीं हों उस देश की मिट्टी की तासीर का हमें अन्दाजा बहुत आसानी से हो सकता है। मगर इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसी लानत से छुटकारा दिलाने के लिए इस देश की संसद ने कानून बनाया हो और मुस्लिम उलेमाओं के विरोध के बावजूद बनाया हो तो हमें नारी के सम्मान के मामले में भारत के लोगों को ऊंचे पायदान पर रख कर देखना चाहिए।
यह 21वीं सदी चल रही है और महिलाएं हर क्षेत्र में आगे कदम आगे बढ़ा रही हैं। इसमें हिन्दू-मुस्लिम सभी महिलाएं शामिल हैं। अतः धर्म के आधार पर उनके बीच भेदभाव करके हम नारी जाति का अपमान नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा  करते ही हम मातृत्व शक्ति का तिरस्कार करते हैं और स्वयं को ‘नराधम’ की श्रेणी में खड़ा कर देते हैं। नराधम का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि वह अपने सभ्य मानव होने का भाव खो देता है। मगर क्या सितम है कि पायलट से लेकर पत्रकार व लेखक और राजनीतिज्ञ मुस्लिम महिलाओं के वेबसाइट पर चित्र छाप कर उनके नाम के साथ अभद्र शब्दावली का प्रयोग करके उनके बाजार भाव तय करने की हिमाकत की जा रही है और यह काम दूसरी बार हो रहा है। पिछले साल जून महीने में भी इंटरनेट पर ऐसा  किया गया था जिसके विरुद्ध बहुत सी महिलाओं ने पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी मगर कानूनी स्तर कोई कार्रवाई नहीं हुई जिससे ऐसे  शरारतियों के हौंसले बढे़ और उन्होंने पुनः ऐसी हरकत कर डाली। ऐसा  करके हम भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि खराब कर रहे हैं और दुनिया को बता रहे हैं कि भारत आज भी सातवीं सदी में जीता है।
पिछले सदियों के इतिहास की घटनाओं को प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग करके हम जमाने की रफ्तार को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकते हैं और समाज को दरिन्दगी में नहीं धकेल सकते हैं। यह रोगी मानसिकता होती है जो सभ्यता के विकास को नकारने का काम करती है जबकि नारी ही किसी भी सभ्यता के विकास का प्रमुख इंजन होता है। उसे भरे बाजार बेइज्जत करके हम अपने असभ्य और जंगली होने का ऐलान कर रहे हैं जिसके लिए 21वीं सदी में कोई जगह नहीं हो सकती। हालांकि पूर्व में भारत में मुस्लिम बेगमों की हुकूमतें भी रही हैं जिनमें रजिया सुल्ताना और अहमदनगर की हुक्काम  चांद बीबी के नाम गिनाये जा सकते हैं मगर ये इतिहास की परछाइयों में उभरी हुई तस्वीरें हैं जिनका पैगाम सिर्फ यही है कि महिला के हिन्दू-मुसलमान होने से उसकी अस्मिता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। क्योंकि चाहे हिन्दू महिला हो या मुस्लिम महिला हो वह बेटी या मां सबसे पहले होती है। उसकी यह पहचान कोई धर्म नहीं बदल सकता।
Advertisement
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×