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हलाल सर्टिफिकेशन के मकड़जाल में न फंसें मुस्लिम

ऐसे ही मुस्लिम समाज में, अनेकों समस्याएं हैं, अब हलाल के दलाल और खड़े हो गए…

03:58 AM Jun 11, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed

ऐसे ही मुस्लिम समाज में, अनेकों समस्याएं हैं, अब हलाल के दलाल और खड़े हो गए…

ऐसे ही मुस्लिम समाज में, अनेकों समस्याएं हैं, अब हलाल के दलाल और खड़े हो गए। भारतीय मुसलमानों को आजकल विदेशों से निर्यात, हलाल सर्टिफिकेशन के मकड़जाल में फंसाया जा रहा है, मात्र इसलिए कि उनके कुछ स्वयंभू ठेकेदारों ने अपनी धंधा वसूली के लिए इसे मार्केट में डाल दिया है। उन्हें पता है कि मुस्लिम भोला होता है और केवल हलाल को ही प्रयुक्त करता है, हराम को नहीं, क्योंकि इस्लाम उसे ऐसा करने को कहता है। हलाल एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, “अनुमति”, “मान्य” या “सही”। दूसरे शब्दों में किसी जानवर के गले पर छुरी फेरने को भी हलाल करना कहा जाता है। वे प्रोडक्ट जो इस्लामी कानून की आवश्यकता को पूरा करते हैं और मुसलमानों के इस्तेमाल करने के लिए उपयुक्त हैं, उन्हें हलाल-सर्टिफाइड प्रोडक्ट कहा जाता है।

सही मायनों में यह धंधेबाजी और बीमारी, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी आदि ऐसे पश्चिमी देशों से आई है, जो मुस्लिम देशों में होती हुई अब भारत के मुस्लिमों को भटका और भड़का रही है। हलाल का नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देने वाला खाद्य पदार्थ ही नहीं, कपड़े, जूतों, साबुन, दूध, चाय, चीनी, प्रॉडक्ट्स बनाने वालों से साठ-गांठ कर लेता है और उसको बाज़ार में लॉन्च कराकर अपनी पांचों उंगलियां घी में डुबो, चटखारे लेता है।

वैसे मुसलमानों को इसका बख़ूबी अंदाजा है कि हलाल और हराम में क्या अंतर है और हलाल के दलाल किस प्रकार से अपनी हलाल सर्टिफिकेशन जारी कर कैसे हराम के काम में व्यस्त हैं! ऐसे भारत में सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की हलाल सर्टिफिकेशन नहीं दी जाती सिवाय एफएसएसएआई (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऑथारिटी ऑफ इंडिया) जो “कोडेक्स रिकामेंडिड कोड ऑफ हाईजीन” के माप डंडों के अनुसार हर प्रकार की खाद्य सामग्री पर पूरी नज़र रखती है।

जो लोग हलाल सर्टिफिकेशन देते हैं, उनका ध्येय केवल उगाही करना है, क्योंकि एक आम मुसलमान को भलीभांति पता है कि हलाल और हराम में क्या अंतर है और उनको किसी ठेकेदार दुकानदार या मकानदार की कोई आवश्यकता नहीं, जैसे भारत में इस धंधे की वसूली के लिए स्वयंभू मुस्लिम हितैषी संगठन, जैसे, “जमीयत-ए-उलेमा-हिंद हलाल सर्टिफिकेशन”, “हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटिड”, “हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया (मुंबई)” आदि, जिन्होंने कपड़ों, साबुन, दूध, दही, दही, घी मसालों, मिठाईयों, नमकीन, आटा, दालों आदि तक को हलाल, हराम में बांट कर एक ग़रीब मुसलमान का उल्लू गांठ कर उसे तो मूर्ख बनाया ही है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 18 नवंबर, 2024 को हलाल सर्टिफिकेशन वाले खाद्य पदार्थों को बनाने, बेचने और भंडारण पर तत्काल प्रभाव से बैन लगा दिया। यूपी सरकार ने कहा कि तेल, साबुन, टूथपेस्ट और शहद जैसे शाकाहारी प्रोडक्ट्स के लिए हलाल प्रमाणपत्र जरूरी नहीं है। सरकार ने दावा किया है कि यह प्रतिबंध सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में और भ्रम को रोकने के लिए है। यूपी सरकार के आदेश में कहा गया है, “खाद्य उत्पादों का हलाल प्रमाणीकरण से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के बारे में भ्रम पैदा होता है और यह पूरी तरह से कानून मूल इरादे के खिलाफ है।” गौरतलब है कि हलाल सर्टिफिकेशन पहली बार 1974 में वध किए गए मांस के लिए शुरू किया गया था। हालांकि, इससे पहले हलाल सार्टिफिकेशन का कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता है। हालांकि, 1993 में हलाल प्रमाणीकरण सिर्फ मांस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसे अन्य उत्पादों पर लागू किया गया। कुछ समय पूर्व वंदे भारत ट्रेन में चाय प्रीमिक्स के एक पाउच को लेकर हंगामा हो गया।

प्रॉडक्ट्स को आयात करने वाले देशों को भारत में किसी मान्यता प्राप्त निजी संगठन से हलाल प्रमाणपत्र लेना होता है, क्योंकि इस क्षेत्र में कोई सरकारी विनियमन नहीं है। वाणिज्य मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में हलाल प्रमाणीकरण पर एक मसौदा दिशानिर्देश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि कृषि और प्रोसेस फूड प्रोडक्ट्स को इसकी निगरानी नामित किया जाएगा। अब यह कैसे और कब होगा, यह तो समय ही बताएगा। वैसे आज का मुसलमान परिपक्व है और उसे हलाल सर्टिफिकेशन के चक्कर में हरगिज़ नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि एक निर्धन या दलित मुस्लिम इन महंगे हलाल मान्यता प्राप्त पदार्थों की कीमत नहीं अदा कर सकता, मगर इसका अर्थ यह हर्गिज नहीं कि वह हराम पदार्थों को इस्तेमाल करे।

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