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मुत्तकी का भारत दौरा

04:30 AM Oct 12, 2025 IST | Aditya Chopra
मुत्तकी का भारत दौरा
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा
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आजादी के बाद से ही भारत व अफगानिस्तान के सम्बन्ध बहुत मधुर रहे हैं और इस देश के चहुंमुखी विकास में भारत का बहुमूल्य योगदान रहा है। भारत ने इसके आधारभूत विकास में जो योगदान किया वह अभूतपूर्व समझा जाता है क्योंकि 1947 तक यह देश पूरी तरह अविकसित था और कबायली संस्कृति में जी रहा था। यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो 1889 तक अफगानिस्तान ब्रिटिश इंडिया साम्राज्य का ही हिस्सा था और इसका शासन कमोबेश तरीके से लन्दन से ही चलता था, हालांकि इसका अमीर या बादशाह भी सत्ता पर काबिज रहता था। मगर 1889 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने इसे स्वतन्त्र देश का दर्जा देने का मन बनाया और 1893 में भारत व अफगानिस्तान के बीच सीमा रेखा खींची जिसे डूरंड लाइन या रेखा कहा जाता है। अलग देश का दर्जा देने के बावजूद अंग्रेजों ने इसके विदेशी मामलों को अपने नियन्त्रण में ही रखा। अगर इससे भी पिछले इतिहास पर दृष्टि डालें तो 1846 तक यह पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की पंजाब सल्तनत का हिस्सा था जो आगरा से लेकर काबुल तक फैली हुई थी। मगर भारत व अफगानिस्तान का साझा इतिहास यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि प्राचीन काल में सम्राट अशोक के शासन का यह प्रमुख अंग था क्योंकि अशोक महान का साम्राज्य पाटिलीपुत्र से लेकर तेहरान (ईरान) तक फैला हुआ था।
ईसा पूर्व से लेकर आठवीं सदी तक यह बौद्ध धर्म का गढ़ माना जाता था परन्तु इस सदी में भारत में इस्लाम के आने के बाद यहां इस धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। वर्तमान में अफगानिस्तान एक इस्लामी देश है जहां तालिबान प्रशासन है। अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सीमाएं छूती थीं और ईरान से भी इसकी सीमाएं लगती हैं। अतः यह इलाका ब्रिटिश इंडिया के लिए रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण रहा। आजादी मिलने के समय पाकिस्तान बन जाने के बाद यह पाकिस्तान का पड़ोसी देश हो गया परन्तु दोनों ही मुल्कों के इस्लामी देश होने के बावजूद इनके आपस में सम्बन्ध खटास भरे ही रहे और इसकी एक वजह डूरंड लाइन भी रही लेकिन सांस्कृतिक रूप से अफगानिस्तान शुरू से ही भारत के निकट रहा और दोनों देशों के बीच सम्बन्ध भी इसी के अनुरूप रहे। आजकल अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार है जो भारत के साथ अपने सम्बन्ध सुधारना चाहती है।
इसी पृष्ठभूमि में तालिबानी सरकार के विदेश मन्त्री श्री अमीर खान मुत्तकी भारत की यात्रा पर आये हुए हैं। उन्होंने विदेश मन्त्री श्री जयशंकर से मुलाकात कर लम्बी बातचीत भी की। इस बातचीत के बाद दोनों देशों की तरफ से एक संयुक्त वक्तव्य भी जारी किया गया। यह वक्तव्य दोनों देशों के बीच भविष्य में सम्बन्धों की नई नींव डालने वाला माना जा रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजें 2021 तक जमी हुई थीं। इनकी वापसी इसी वर्ष में हुई और तालिबानी शासन काबिज हुआ। सत्ता में आने से पहले तालिबानी संगठन के पाकिस्तान के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध माने जाते थे परन्तु तालिबानी सरकार गठित हो जाने के बाद पाकिस्तान ने अपने रंग दिखाने शुरू किये और यह दोस्ती फीकी पड़ने लगी और दोनों एक-दूसरे के विरोधी जैसे हो गये। पाकिस्तान चाहता था कि तालिबान उसके पिछलग्गू बनकर रहे जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया और अपनी स्वतन्त्र सोच विकसित की। भारत का अफगानिस्तान में फिलहाल केवल एक तकन​ीकी विदेश कार्यालय ही है जिसे बहुत जल्दी ही दूतावास में बदला जायेगा। 2021 के बाद वैश्विक परिस्थितियों में भी काफी बदलाव आया है। पाकिस्तान अफगानिस्तान का विरोधी हो चुका है और दूसरा इसका पड़ोसी देश ईरान काफी कमजोर पड़ चुका है। सोवियत संघ के जमाने से ही अफगानिस्तान के सम्बन्ध रूस के साथ काफी प्रगाढ़ रहे हैं मगर फिलहाल रूस-यूक्रेन के साथ अपने ही युद्ध में फंसा हुआ है और जब से डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं तब से अफगानिस्तान के प्रति उनका नजरिया काफी बदला हुआ है। वह लगातार भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान को महत्व दे रहे हैं।
तीसरी तरफ चीन का रुख अफगानिस्तान के प्रति बहुत दोस्ताना दिख रहा है। वह तालिबान सरकार के साथ पूर्ण दौत्य सम्बन्ध स्थापित कर चुका है और लगातार इस देश में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। इस सिलसिले में वह राजदूतों की अदला-बदली तक कर रहा है। इस दृष्टि से देखें तो अफगानिस्तान के साथ भारत की दोस्ती होना इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है। अतः भारत बहुत सोच-समझ कर ही इस दिशा में आगे बढ़ रहा है और अफगानिस्तान में किये गये अपने भारी निवेश को भी संभाल रहा है। यही वजह है कि संयुक्त वक्तव्य में भारत ने कहा है कि आतंकवाद दोनों देशों के लिए साझा दुश्मन है क्योंकि दोनों को ही सीमा पार आतंकवाद से खतरा है। अतः संयुक्त वक्तव्य में सीमा पार क्षेत्रीय आतंकवाद की पुरजोर मरम्मत की गयी है और कहा गया है कि अफगानिस्तान अपनी सरजमीं और किसी व्यक्ति का इस्तेमाल दूसरे देश में आतंकवाद फैलाने में नहीं करने देगा। साथ ही भारत ने भी कहा है कि वह अफगानिस्तान की अखंडता और संप्रभुता व स्वतन्त्रता के प्रति पूर्णतः समर्पित है। दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग इस दिशा में विकास को बढ़ावा देने वाला होगा। इससे क्षेत्रीय स्तर पर स्थिरता को भी बढ़ावा मिलेगा और भारतीय उपमहाद्वीप में भारत की स्थिति मजबूत होगी जो इस क्षेत्र में शान्ति बनाये रखने में सहायक होगी।

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Aditya Chopra

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