For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

काम से काम रखते नड्डा

भाजपा शासित एक प्रमुख राज्य के एक नामचीन नेता जी भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा से…

03:53 AM Jun 15, 2025 IST | त्रिदीब रमण

भाजपा शासित एक प्रमुख राज्य के एक नामचीन नेता जी भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा से…

काम से काम रखते नड्डा

भाजपा शासित एक प्रमुख राज्य के एक नामचीन नेता जी भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने पहुंचे। आदत के मुताबिक नड्डा उनसे बेहद गर्मजोशी से मिले, आवभगत की, चाय-नाश्ता कराया और फिर आने का सबब पूछा। तब उस भगवा क्षत्रप ने नड्डा से कहा जैसा कि ‘आप देख रहे हैं कि प्रदेश की राजनीति में किस कदर उठा-पटक चल रही है, एक-दूसरे के पैर खींचे जा रहे हैं, इससे बेहतर तो यह होगा कि मैं केंद्र की यानी कि दिल्ली की राजनीति करूं। सो, संभव हो तो इस बार मुझे आप पार्टी के केंद्रीय संगठन में एडजस्ट कर दें।’ नेता जी की पूरी बात सुनने के बाद नड्डा ने उनसे बेहद विनम्रता से कहा-नया अध्यक्ष आने दीजिए, फिर ही कुछ हो सकता है।

ममता का अल्पसंख्यक प्रेम उफान पर

ममता बनर्जी सियासत की माहिर खिलाड़ी हैं, उन्हें भलीभांति इस बात का इल्म है कि अपने कोर वोट बैंक को कैसे विरोधियों की नाक तले एकजुट रखना है। भले ही बंगाल विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से भी ज्यादा का वक्त बाकी हो, पर ममता ने सियासी बिसात पर शह-मात की नई रणनीति बुननी शुरू कर दी है। सबको, खास कर राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी को चौंकाते हुए ममता ने 10 जून को विधानसभा पटल पर ओबीसी-ए और ओबीसी-बी नामजद कर पिछड़ी जातियों की नई सूची सामने रख दी, इन सूचियों में 76 नई जातियों को जोड़ा गया है, इसे मिला कर ओबीसी सूची में कुल जातियों की संख्या अब 140 तक पहुंच गई है।

बीजेपी शुरूआत से ही ममता प्रायोजित इन सूचियों का विरोध करती आई है, क्योंकि इन 140 में से जातियों के 80 तो सिर्फ मुस्लिम समूहों से जुड़े हैं। हालांकि बीते वर्ष जब यह मामला कोलकाता हाईकोर्ट में पहुंचा था तो कोर्ट ने इस सूची में से 113 जातियों को बाहर कर दिया था, तब सूची में सिर्फ 66 जातियां रह गई थीं। पर अब ममता सरकार ने कोर्ट के आदेश को धत्ता बताते हुए हटाई गई 113 जातियों में से 76 को फिर से इस सूची में जोड़ दिया है जिससे कि यह सूची 66 से बढ़ कर अब 140 जातियों की हो गई है। इन 76 नई जातियों में 51 ओबीसी-ए (अति पिछड़ा) और 25 नाम ओबीसी-बी सूची से संबंद्ध कर दिए गए हैं। खूब हो-हल्ला मचने के बाद यह पूरा मामला अब सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है, जहां अगले महीने इस मामले पर सुनवाई होनी है। भाजपा का आरोप है कि ममता यह सारी कसरत बस एक खास धर्म को खुश करने के लिए कर रही हैं, जो उनका कोर वोट बैंक भी है।

बिहार चुनाव हंग असेम्बली की ओर?

आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी नाक का सवाल बना रखा है, सो चाहे संसाधन हो, टीम मैनेजमेंट या जमीनी स्तर की तैयारियां भगवा पार्टी फिलवक्त सबसे आगे बनी हुई है, पर जहां तक चुनावी नतीजों की बात है वहां संशय अब भी बरकरार है। पिछले दिनों भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने वहां के अपने एक व्यवसायी नेता को चुनाव पूर्व सर्वेक्षण की एक महती जिम्मेदारी सौंपी, माना जाता है कि बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर इस कंपनी की ओर से एक व्यापक जनमत सर्वेक्षण करवाया गया, सूत्रांे की मानें तो अकेले इस सर्वे का खर्च साढ़े छह से सात करोड़ रुपयों के बीच आया। पर इस सर्वे के नतीजों से भगवा पेशानियों पर बल पड़ गए हैं।

सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि भले ही बिहार के शहरी इलाकों में भाजपा का ग्राफ अच्छा दिख रहा है, पर ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में एनडीए गठबंधन को राजद, कांग्रेस व माले से कड़ी टक्कर मिल रही है, यहां मुकाबला लगभग बराबरी का है। सर्वे रिपोर्ट जदयू के संभावित प्रदर्शन पर भी सवालिया निशान लगा रही है और कह रही है कि नीतीश के अपने कोर वोटर ही उससे छिटक रहे हैं, यहां तक कि इस बार राज्य की महिला वोटरों में भी जदयू व नीतीश को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा। वहीं एनडीए में शामिल छोटे-छोटे दल जैसे मांझी की हम, या उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मंच भी कोई खासा उम्मीद नहीं जगा पा रही। सो, इस सर्वे रिपोर्ट में दावा हुआ है कि इस दफे बिहार में हंग असेम्बली आ सकती है।

नई रोशनी की तलाश में चिराग

बिहार चुनाव को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के मुखिया चिराग पासवान की तैयारियां देखते ही बनती हैं। उनके एक करीबी नेता का दावा है कि इस चुनाव में चिराग अपना सर्वस्व झोंकने की तैयारी में हैं, चुनाव लड़ने के लिए काफी पहले से पैसा जुटाया जा रहा है, सूत्रों का दावा है कि अकेले चिराग का चुनावी बजट 200 करोड़ रुपयों के आसपास का हो सकता है, जिसमें से 20-25 करोड़ रुपए तो उनके मीडिया मैनेजमेंट पर खर्च हो सकता है।

चिराग अपनी पार्टी के कम से कम 40 से 50 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने की तैयारियों में हैं, सूत्र बताते हैं कि उनके हर कैंडिडेट को चुनाव लड़ने के लिए पार्टी अपनी ओर से 3 करोड़ रुपयों का फंड दे सकती है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चिराग दूध के जले हैं, इस बार वे छाछ भी फूंक-फंूक कर पी रहे हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनका मकसद भले ही नीतीश की सीटें कम करने का रहा हो, पर इस चक्कर में वे अपनी जंग भी हार गए थे, उनका एकमात्र उम्मीदवार ही तब चुनाव जीत पाया था जबकि उन्होंने 137 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। इस बार पवन वर्मा ने उनकी मुलाकात नीतीश से करवा दी, नीतीश ने चिराग को भरोसा दिलाया है कि इस बार दोनों एक-दूसरे के सपोर्ट में रहेंगे। सो, नीतीश भी चाहते हैं कि चिराग कम से कम 40 से 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। मांझी व कुशवाहा के लिए भी भाजपा 10-10 सीटें छोड़े और खुद भगवा पार्टी 90 सीटों पर चुनाव लड़ें। पर भाजपा को नीतीश का यह फार्मूला फिलहाल स्वीकार्य नहीं।

…और अंत में

सांसदों का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जब ऑपरेशन सिंदूर के लिए विदेश जाने वाला था तो देश के पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम राहुल गांधी के खासमखास गौरव गोगोई से मिले थे और उनके समक्ष यह दुखड़ा रोया था कि ‘राहुल ने जो कांग्रेस सांसदों की लिस्ट पीएम मोदी को भेजी थी उसमें न तो उनका यानी कि कार्ति का (जो कि एक लोकसभा सांसद हैं) और ना ही उनके पिता पी. चिदंबरम (राज्यसभा सांसद) के नाम शामिल हैं।’ इस पर गौरव ने कार्ति को समझाते हुए कहा कि ‘पीएम ने कौन सी राहुल जी की लिस्ट पिक कर ली, राहुल जी ने कहां शशि थरूर या मनीष तिवारी जैसों के नाम भेजे थे? उन्हें जिन्हें चुनना होता है मोदी ‘आउट ऑफ वे’ जाकर उनका चुनाव कर लेते हैं, सो प्लीज ऐसे में राहुल जी को दोष देना बंद कर करिये।’

Advertisement
Advertisement
Author Image

त्रिदीब रमण

View all posts

Advertisement
×