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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ‘अंत्योदय’ भावना को च​रितार्थ किया नरेंद्र मोदी ने

05:30 AM Sep 25, 2025 IST | Editorial
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ‘अंत्योदय’ भावना को च​रितार्थ किया नरेंद्र मोदी ने
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भारतीय राजनीतिक इतिहास में अनेकानेक नेता हुए हैं, जिन्होंने राष्ट्र को अलग-अलग दौर में नई दिशा देने का कार्य किया। लेकिन उनमें से विरले ही ऐसे हुए हैं, जिन्होंने राजनीति को विशेषाधिकार न मानकर, सेवा,समर्पण व संकल्प का माध्यम माना। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे ही एक महामानव थे, जिन्होंने राजनीति को समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के उत्थान से जोड़ा। उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि यदि राष्ट्र निर्माण की कसौटी तय करनी हो, तो वह यही होनी चाहिए कि विकास की राह समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचे। ‘अंत्योदय’ उनके लिए केवल एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि जीवन का मंत्र था। उनका कथन था,“हमारी राजनीति का लक्ष्य सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि सेवा के माध्यम से समाज का उत्थान होना चाहिए।”

आज 25 सितंबर को जब हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 109-वीं जयंती मना रहे हैं, तो यह स्मरण करना आवश्यक है कि उनका दर्शन कैसे समय की धारा को प्रभावित करता हुआ आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अंत्योदय भावना को न केवल आत्मसात किया, बल्कि उसे अपनी कार्यशैली और शासन तंत्र का मूल आधार बना लिया। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मोदी के नेतृत्व में भारत ने अंत्योदय को केवल विचार या दर्शन से आगे बढ़ाकर विकास का व्यवहारिक स्वरूप दिया है। साढ़े बाहर साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहते व बीते करीब साढ़े ग्यारह साल से प्रधानमंत्री के पद पर मोदी जी ने सरकार की तमाम नीतियों व योजनाओं के केंद्र में गरीब, वंचित, किसान, महिला और समाज के अंतिम व्यक्ति छोर पर खड़े व्यक्ति को विकास के केंद्र में रखा।

26 मई 2014 को जब उन्होंने प्रधान सेवक के रूप में नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली, तब भारत अनेक चुनौतियों से जूझ रहा था। सामाजिक-आर्थिक असमानता, व्यापक गरीबी और हाशिए पर पड़े वर्गों की उपेक्षा जैसी समस्याएं गहरी थीं। ऐसे में उन्होंने 15 अगस्त 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से अपने बतौर प्रधानमंत्री पहले ही भाषण में उन गरीबों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने का साहसिक कदम उठाया, जो बैंकों के दरवाजे तक जाने में झिझकते थे। ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ तहत खुले 56 करोड़ बैंक खातों के जरिए गरीबों को वित्तीय समावेशन का अवसर मिला। यह केवल बैंक खाता खोलने की योजनाभर नहीं बल्कि यह गरीब को आर्थिक आत्मनिर्भरता की पहली सीढ़ी प्रदान करने वाला युगांतरकारी कदम है। इस योजना से गरीब की बिचौलियों के चंगुल से मेहनत की कमाई सुरक्षित हुई, लाभकारी योजनाओं की धनराशि डीबीटी के जरिए सीधे उनके बैंक खातों में जमा हुई और वे देश की अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जुड़ सके।

अंत्योदय की भावना को घर के चुल्हे चौके तक ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ के जरिए पहुंचाया। जिन माताओं,बहनों ने पीढ़ियों तक धुएं से भरे चूल्हों पर खाना पकाया उन्हें एलपीजी गैस कनेक्शन देकर न केवल स्वास्थ्य की सुरक्षा दी गई, बल्कि उनका सम्मान भी लौटा। यह योजना केवल ईंधन बदलने का उपक्रम नहीं,बल्कि महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता सुधारने का महान अभियान साबित हुआ। पंडित दीन दयाल का अंत्योदय दर्शन बड़े पैमाने पर उस समय सामने आया जब दुनिया कोरोना महामारी, वैक्सीन, खाद्य संकट व नौकरियां जाने से जूझ रहे थे तब देश में मार्च 2020 से 80 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की पहल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के जनवरी 2029 तक विस्तार से यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी गरीब के घर का चूल्हा ठंड न पड़े, कोई परिवार भूखा न सोए। यह कदम केवल मानवीय करुणा का उदाहरण नहीं,बल्कि भारत के शासन-तंत्र की दृढ़ता व संवेदनशीलता का भी प्रमाण है। स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए आयुष्मान भारत योजना ने गरीबों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा कवच प्रदान किया। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि ने 11 करोड़ छोटे गरीब किसानों के खातों में प्रतिवर्ष छह हजार रुपये सीधे पहुंचाकर उनके जीवन को आर्थिक संबल दिया।

प्रधानमंत्री आवास योजना ने करोड़ों गरीबों को छत दी, जल जीवन मिशन ने हर घर नल से जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा, डिजिटल इंडिया ने गांव-गांव को तकनीक की शक्ति से जोड़ा। इन सबका सार वही था, जिसे दीनदयाल जी ने कहा था— “सच्चा विकास वही है, जिसमें अंतिम व्यक्ति तक सुविधा, अवसर और सम्मान पहुंचे।” अपने तीसरे कार्यकाल में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी अंत्योदय भावना को आगे बढ़ा रहे हैं। ड्रोन दीदी योजना इसका नया उदाहरण है। यह योजना गांव की साधारण महिलाओं को ड्रोन तकनीक के माध्यम से कृषि कार्यों में दक्ष बनाकर न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बना रही है, बल्कि उद्यमिता का नया आयाम भी दे रही है। इन महिलाओं को समाज अब ‘लखपति दीदी’ के रूप में पहचान रहा है। यह अंत्योदय से सशक्तिकरण की यात्रा का जीवंत उदाहरण है। अंत्योदय को केवल दया या कृपा का विषय नहीं माना गया, बल्कि उसे गरीब का अधिकार और अवसर का आधार बनाया गया।

भारत आज केवल तेजी से प्रगति करती हुई दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि समावेशी विकास का वैश्विक मॉडल बन चुका है। यह इस बात का प्रमाण है कि जब नेतृत्व का केंद्र अंतिम व्यक्ति हो, तो विकास आंकड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि हर वर्ग के उत्थान में झलकता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था— “राजनीति में सफलता का वास्तविक मापदंड यही है कि वह समाज के सबसे छोटे व कमजोर वर्ग तक पहुंचकर उसके जीवन को बेहतर बना सके।” पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 109-वीं जयंती हमें स्मरण कराती है कि “मनसा वाचा कर्मणा य: समक्रीयते” यानी मन,वचन एवं कर्म में समरसता और सत्यनिष्ठा से राष्ट्र निर्माण की गति अजेय हो जाती है। जब राजनीति सेवा एवं समर्पण का पर्याय हो, तो प्रगति केवल नीतियों का दस्तावेज नहीं , बल्कि करोड़ों गरीबों के जीवन में प्रकाश बनकर उतरती है।

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