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विचार व हथियार से कमर टूटी नक्सलवाद की

अब नक्सलवाद देश में ऑक्सीजन पर चल रहा है, यानी मृतप्राय: हालत में…

09:44 AM Dec 24, 2024 IST | Firoj Bakht Ahmed

अब नक्सलवाद देश में ऑक्सीजन पर चल रहा है, यानी मृतप्राय: हालत में…

विचार व हथियार से कमर टूटी नक्सलवाद की

अब नक्सलवाद देश में ऑक्सीजन पर चल रहा है, यानी मृतप्राय: हालत में है। देश ने कुछ साल पहले तक उस दौर को भी देखा है जब नक्सलवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा था। वर्तमान में लगभग 38 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं जो पहले 120 से अधिक थे। गृहमंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। शाह ने हथियारों से अधिक नक्सलवादी विचारधारा पर प्रहार किया है जिससे बड़ा फ़र्क पड़ता दिख रहा है। माओवाद अब एक छोटे से दायरे में सिमट गया है। ये आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि सरकार की रणनीति सही दिशा में आगे बढ़ रही है और इसने नक्सलवाद की शहरग (मुख्यधारा) काफ़ी हद तक काट दी है और इसके पनपने का अब कोई मौक़ा नहीं है।

नक्सलवाद के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त कार्रवाई ने आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बने एक अतिवादी वाम विचारधारा पर एक निर्णायक बढ़त हासिल कर ली है। अब देश न केवल माओवादी हिंसा को खत्म करने के लक्ष्य के करीब पहुंच रहा है, बल्कि कोशिश इस बात की भी है कि माओवादियों को डायलॉग द्वारा सीधे रस्ते पर लाया जाए।

गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलियों के खिलाफ एक सशक्त तीन-स्तरीय रणनीति बनाई है, जिसमें पहले समर्पण, उसके बाद गिरफ्तारी और फिर भी नक्सली हिंसा नहीं छोड़ते तो फिर उनका एनकाउंटर शामिल हैं। चाहे कश्मीर हो या नक्सलवाद हो, अमित शाह पहले सीधी उंगली से घी निकालने का प्रयास करते हैं, नहीं तो पांचों उंगलियों वाला ज़बरदस्त मुक्का मार, काम तमाम कर देते हैं। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आर्थिक सहायता और पुनर्वास योजनाओं की शुरुआत की गई। इसके तहत 15 हजार आवासों की स्वीकृति दी गई और रोजगार के लिए विशेष योजनाएं चलाई गईं हैं। इस कदम से न केवल हिंसा में कमी आई है, बल्कि उन लोगों को भी नया जीवन जीने का अवसर मिला है जो माओवाद की राह पर बिना विचारे चल पड़े थे।

गिरफ्तारी अभियानों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सरकार ने सटीक खुफिया तंत्र विकसित किया है। इस प्रयास का परिणाम यह रहा कि पिछले एक साल में छत्तीसगढ़ में एक हजार से अधिक नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा, हिंसक माओवादियों को समाप्त करने के लिए लगातार एनकाउन्टर ऑपरेशन चलाया गया। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार नक्सलवाद के खिलाफ अपने अभियान में कोई ढील नहीं देना चाहती है।

नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने विकास और बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं जिससे न केवल सुरक्षा सुनिश्चित हुई है, बल्कि स्थानीय निवासियों में विश्वास भी बढ़ा है। हजारों गांवों को सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की गई हैं। इन प्रयासों ने स्थानीय निवासियों की कठिनाइयों को कम किया है और उन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर दिया है।

स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। आदिवासी क्षेत्रों में अस्पतालों और स्कूलों की स्थापना की गई है जो पहले इन क्षेत्रों में लगभग अनुपलब्ध थे। इसके अलावा, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों का विस्तार किया गया जो आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में सहायक साबित हो रहे हैं। इन प्रयासों ने स्थानीय समुदायों के जीवन स्तर में सुधार लाने में मदद मिली है।

टेक्नोलॉजी और खुफिया तंत्र का उपयोग नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की रणनीति का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। ड्रोन और अन्य उन्नत तकनीकों का उपयोग माओवादियों की गतिविधियों पर नजर रखने और उनकी योजनाओं को विफल करने में कारगर साबित हुआ है। यह तकनीकी प्रगति सुरक्षा बलों को अधिक सक्षम और प्रभावी बना रही है।

नक्सलियों की फंडिंग के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की गई है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने करोड़ों की संपत्ति जब्त की है। धनशोधन के मामलों में तेजी लाते हुए नक्सली नेटवर्क को आर्थिक रूप से कमजोर किया गया है। इस कदम ने माओवादियों के आर्थिक स्रोतों को खत्म कर उनकी गतिविधियों को सीमित कर दिया है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को समाज में फिर से स्थापित करने के लिए सरकार ने सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए हैं। उन्हें स्थानीय स्तर पर ग्राम पंचायतों और अन्य संगठनों में शामिल किया गया है। इसके अलावा, माओवादी गढ़ों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेलकूद आयोजनों का आयोजन किया गया जिससे समाज में पुनर्वासित नक्सलियों के प्रति स्वीकृति का माहौल बना। अमित शाह ने ग्रामीणों से विकास योजनाओं में सक्रिय भागीदारी की अपील की है। उन्होंने सुरक्षा बलों का सहयोग करने का आह्वान करते हुए कहा कि शांति और विकास तभी संभव है जब जनता और सरकार मिलकर काम करें।

केन्द्र सरकार ने श्रीलंका और कोलंबिया जैसे देशों में अपनाई गई पुनर्वास नीतियों का अध्ययन कर उन्हें भारतीय संदर्भ में लागू किया है। इन अनुभवों से प्रेरणा लेकर आत्मसमर्पण और पुनर्वास की योजनाओं को और प्रभावी बनाया गया है। सरकार की इन योजनाओं का परिणाम यह हुआ है कि 837 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा का माहौल बना है। ग्रामीण समुदायों ने भी पुनर्वासित नक्सलियों को धीरे-धीरे स्वीकार करना शुरू कर दिया है।

बेशक, स्थानीय समुदायों का सहयोग इस अभियान की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। अमित शाह ने प्रभावित क्षेत्रों में जनता से सीधे संवाद स्थापित किया है। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित किया गया है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है। स्थानीय सुरक्षा बलों को मजबूत करते हुए उनकी मदद से नक्सलवाद को कमजोर किया गया है। इन प्रयासों ने न केवल जनता का विश्वास जीता है, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और स्थिरता लाने में भी मदद की है।

अमित शाह के नेतृत्व में सरकार की रणनीति ने नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक सफलता दिलाई है। विकास, सुरक्षा और पुनर्वास को संतुलित करते हुए यह प्रयास न केवल नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति लाने में सफल रहा है, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा को भी मजबूत किया है। मिशन 2026 का यह लक्ष्य देश को न केवल नक्सलवाद से मुक्त करेगा, बल्कि भारत को एक अधिक सुरक्षित और समृद्ध राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।

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Firoj Bakht Ahmed

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