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करोड़ों में खेलते नक्सली नेता

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12:53 AM May 11, 2018 IST | Desk Team

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नक्सली आंदोलन पूरी तरह अपने रास्ते से भटक चुका है। नक्सली संगठन अब केवल लूट-खसोट करने और निर्दोषों की हत्या करने वाले गिरोह बन चुके हैं। जिस तरह जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों से धन हासिल कर कश्मीर के बच्चों के हाथों में पत्थर और युवाओं के हाथों में बंदूकें थमा दीं और खुद भी करोड़ों के वारे-न्यारे किए, इस धन से अलगाववादी नेताओं ने देश-विदेश में अथाह सम्पत्ति बनाई। इन्होंने घाटी के स्कूली बच्चाें और बेरोजगार युवाओं को सुरक्षा बलों पर पथराव करने के लिए दिहाड़ीदार मजदूर बना डाला लेकिन अलगाववादियों के बच्चे या तो विदेश में हैं या फिर कश्मीर से दूर दिल्ली और अन्य राज्यों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

टेरर फंडिंग करने वाले नेताओं की पोल एनआईए की जांच से खुल चुकी है कि किस तरह इन्हें हवाला के माध्यम से धन मिलता रहा है। इस धन का कुछ हिस्सा वे हिंसा फैलाने के लिए लगाते रहे और काफी हिस्सा खुद बांट लेते थे। खुद को तथाकथित कुल जमाती कहने वाले हुर्रियत के नाग अब दुनिया के सामने नग्न हो चुके हैं। उसी तरह अब नक्सली नेताओं का सच भी सामने आ चुका है। करोड़ों की दौलत की चकाचौंध में नक्सली नेता गरीबों की लड़ाई के नाम पर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने में लगे हैं।

निर्दोष युवकों को नक्सली विचारधारा से प्रभावित कर उनके हाथ सुरक्षा बलों के जवानों आैर निर्दोष आम नागरिकों के खून से रंगवाने वाले नक्सली नेता खुद आलीशान भवनों में जीवन बिता रहे हैं। बड़े नक्सली नेता तो बड़े शहरों में भव्य घरों में रहते हैं, महंगी चमचमाती गाड़ियों में घूमते हैं। उनके बच्चे महंगे डोनेशन वाले कॉलेजों में पढ़ते हैं। नक्सली नेताओं के दोहरे चरित्र का खुलासा जांच एजेंसियां करने लगी हैं। जांच से पता चलता है कि दर्जनों नक्सली नेताओं ने अरबों रुपए की सम्पत्ति नक्सल लड़ाई में उगाही के रास्ते कमाई है। इससे नक्सली नेताओं का दोहरा चरित्र सामने आ रहा है।

नक्सल आंदोलन के नाम पर इन नेताओं ने करोड़ों इकट्ठे कर उसका इस्तेमाल अपने हितों के लिए किया है। जांच में पाया गया है कि नक्सली नेता प्रद्युम्न शर्मा ने अपने भतीजे को निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए 32 लाख की डोनेशन दी। एक अन्य नक्सली नेता संदीप यादव के बेटे आैर बेटी निजी मेडिकल आैर इंजीनियरिंग कालेजों में पढ़ते हैं। उनके दाखिले के लिए भी 15 लाख की डोनेशन दी गई। नोटबंदी के दौरान भी इस नक्सली नेता ने काफी बड़ी रकम बदली। एक अन्य नक्सली कमांडर अरविंद यादव ने अपने भाई का दाखिला 22 लाख देकर कराया। इन तीनों नेताओं पर अपनी यूनिट में युवाओं को शामिल करने का दायित्व था।

बिहार-झारखंड सीपीआई माओवादी नेता संदीप यादव ने तो दिल्ली के पॉश एरिया में फ्लैट और तीन अन्य शहरों में जमीन खरीदी है। ऐसा ही कुछ अन्य नेताओं ने भी किया। इन सभी सम्पत्तियों को जब्त किया जाएगा। नक्सली नेताओं के खुद के विलासितापूर्ण जीवन और दूसरों की जान जोखिम में डालने का सच सामने आने पर कई युवा नक्सलवाद से अलग हो रहे हैं। राज्य सरकारें ऐसे गुमराह युवकों को दोबारा मुख्यधारा में लाने की कोशिशें कर रही हैं। नक्सल ऑपरेशन में हाल ही में मिली सफलता से उत्साहित राज्य सरकारों ने कुछ महीनों में कम से कम 20 आैर जिलों को नक्सल मुक्त कराने का लक्ष्य बनाया है।

नक्सल प्रभावित जिलों में कोई भी ठेकेदार सड़क निर्माण नहीं कर सकता, कोई उद्योगपति अपना धंधा स्थापित नहीं कर सकता जब तक वह नक्सलवादियों को धन नहीं देता। नक्सल हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में गिना जाने वाला छत्तीसगढ़ अब लगता है धीरे-धीरे नक्सलियों से निजात पाने की ओर बढ़ता जा रहा है। इसी गुरुवार को नारायणपुर जिले में 60 माओवादियों का आत्मसमर्पण छत्तीसगढ़ पुलिस की विशेष कामयाबी का ही द्योतक है। पुलिस के अलावा सीआरपीएफ के जवान भी लम्बे अरसे से यहां नक्सलियों से निपटने के लिए तैनात रहे हैं आैर उन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है।

धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब इन जवानों द्वारा नक्सलियों के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान रंग ला रहा है। नक्सली या तो मारे व पकड़े जा रहे हैं या फिर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो रहे हैं। नारायणपुर का अबूझमाड़ क्षेत्र माओवादियों का गढ़ रहा है आैर अब इसी इलाके में पांच दर्जन नक्सलियों का आत्मसमर्पण निश्चित रूप से अभियान की बहुत बड़ी कामयाबी माना जाएगा। इतना ही नहीं बीते रविवार को ही महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में हुई मुठभेड़ में 35 नक्सली मारे गए थे।

नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान से साफ है कि अब दोहरी नीति पर अमल किया जा रहा है जिसमें नक्सलियों पर कार्रवाई भी शामिल है और उनका आत्मसमर्पण भी। जिन माओवादियों ने बस्तर के पुलिस अफसरों के सामने आत्मसमर्पण किया इनमें से 4 ऐसे भी थे जिन पर एक-एक लाख रुपए का इनाम भी था। इन माओवादियों में 20 महिलाएं थीं आैर 13 नाबालिग थे। ये स्थानीय स्तर के कार्यकर्ता और लड़ाके थे जिससे साफ जाहिर है कि इस इलाके में नक्सलियों का काफी प्रभाव था। पुलिस और सरकार के लिए भी सुकून की बात है कि कुछ नक्सली अब आत्मसमर्पण के रास्ते पर चलने और मुख्यधारा में लौटने का संकल्प ले रहे हैं।

इस नीति को आगे बढ़ाने की भी जरूरत है लेकिन इसके लिए आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को राहत और पुनर्वास की वे सभी सुविधाएं भी दिलानी होंगी जो राज्य सरकार ने उनके लिए घोषित कर रखी हैं। इसी से स्थानीय लोगों का पुलिस और सरकार पर भरोसा बढ़ेगा आैर गुमराह हुए लोगों के मुख्यधारा में लौटने की उम्मीद भी बढ़ेगी। ‘सत्ता बंदूक की नली से निकलती है’ कहने वाले, युवाओं को हत्यारा बनाने वाले ऐश कर रहे हैं। गरीबों, आदिवासियों को चाहिए कि वह अपने नेताओं के सच को पहचानें और बंदूकें छोड़ देश की मुख्यधारा में लौटें। बंदूकों की लड़ाई से कुछ हासिल नहीं होगा।

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