Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

दूसरा पाकिस्तान बनता नेपाल

क्या नेपाल हमारे लिए दूसरा पाकिस्तान बनेगा? यह सवाल सत्ता के गलियारों के लिए जितना अहम है, उतना ही नागरिकों में भी चर्चा का बिन्दु बना हुआ है।

12:37 AM Jun 23, 2020 IST | Aditya Chopra

क्या नेपाल हमारे लिए दूसरा पाकिस्तान बनेगा? यह सवाल सत्ता के गलियारों के लिए जितना अहम है, उतना ही नागरिकों में भी चर्चा का बिन्दु बना हुआ है।

क्या नेपाल हमारे लिए दूसरा पाकिस्तान बनेगा? यह सवाल सत्ता के गलियारों के लिए जितना अहम है, उतना ही नागरिकों में भी चर्चा का बिन्दु बना हुआ है। भारत इस समय चारों तरफ से घिरा हुआ है। एक तरफ पाकिस्तान, दूसरी तरफ चीन और नेपाल तो तीसरी तरफ श्रीलंका।
Advertisement
श्रीलंका से भारत के संबंध भी काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। देशों के सम्बन्धों में यद्यपि कूटनीति काफी महत्वपूर्ण होती है लेकिन कूटनीति भी एक हाथ से ले और दूसरे हाथ से दे के सिद्धान्त पर आधारित होती है। हाल ही के वर्षों में नेपाल में भारत विरोधी माहौल बनाया जा रहा था, उससे इस बात की आशंकायें पैदा हो गई थी कि पड़ोसी देश भारत के खिलाफ अभियान शुरू कर सकता है। यह आशंका सही साबित हुई और नेपाल ने भारत-चीन तनातनी के बीच भारत के ​िखलाफ अभियान की शुरूआत कर दी। इस अभियान में सीधे नेपाल की सियासत भी है।
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लि​िम्पयापुरा पर अपना दावा जताते हुए इन्हें नेपाल के नक्शे में शामिल कर इससे संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पारित कराया और अब भारतीय बहुओं को 7 वर्ष बाद नागरिकता दिए जाने के कानून का ऐलान कर दिया। यानि अगर भारतीय युवती की नेपाल में शादी होती है तो उसे 7 वर्ष तक नागरिकता के लिए इंतजार करना होगा। इससे पहले सीतामढ़ी में नेपाल पुलिस ने फायरिंग कर एक भारतीय नागरिक की हत्या कर दी थी।
भारत विरोधी कदम उठाकर के.पी. शर्मा ओली ने अपनी कुर्सी बचा ली है। सत्ता की राजनीति में देश की संप्रभुता और अखंडता का मुद्दा काफी कामयाब माना जाता है। ओली ने इस मुद्दे का जमकर इस्तेमाल किया और विरोधियों को चित्त कर दिया। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में पुष्प कमल दहल प्रचंड और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल के समर्थकों की तरफ से ओली के इस्तीफे की मांग की जा रही थी​ कि ओली ने अपना दाव चल दिया। उत्तराखंड से लगती नेपाल की सीमाओं पर चौकियां भी स्थापित कर दी गई हैं।
केपी शर्मा का चीन प्रेम किसी से छुपा हुआ नहीं है। चीन ने बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रखा है। चीन की विस्तारवादी नीति यही है कि पहले दूसरे देश में निवेश करो, फिर उसे अपने कर्ज के जाल में फंसाओ और फिर उसकी जमीन हड़प लो। नेपाल इस समय चीन के चक्रव्यूह में फंस गया है, जिससे निकलना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा। नेपाल एक छोटा सा मुल्क है परन्तु वहां की 80 प्रतिशत आबादी हिन्दू धर्म को मानती है।
वहां शैव मत को मानने वाले भी हैं और गोरखनाथ की भी बड़ी मान्यता रही। सभ्यता और संस्कृति के मानदंडों पर भी नेपाल की नजदीकी भारत के साथ बैठती है। नेपाल और चीन में कोई सांस्कृतिक मेल ही नहीं है। कभी भारत और नेपाल दो शरीर एक प्राण थे। 1950-51 में जब राणा हकूमत के विरुद्ध बगावत का बिगुल कुछ लोगों ने बजाया तो राणा त्रिभुवन भाग कर भारत आ गए थे तब भारत सरकार के सहयोग से वह वहां पुनः प्रतिष्ठित हो सके थे।
भारत ने खुले तौर पर ऐलान किया था कि न केवल रक्षा के मामलों में अपितु आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक मामलों में भी नेपाल की मदद करेगा। हर संकट और विपदा की घड़ी में भारत ने नेपाल की सहायता ही की लेकिन नेपाल की राजशाही के खिलाफ बंदूक से निकली क्रांति के चलते राजशाही इतिहास का हिस्सा बन गई। उसके बाद नेपाल चीन के जाल में फंसता ही चला गया।
भारत विरोधी अभियान चला कर ओली ने सत्ता तो बचा ली, हो सकता है कि नेपाल चीन से फायदा उठा ले ले​िकन भविष्य में चीन से उसे नुक्सान ही उठाना पड़ सकता है। पाकिस्तान की सारी सियासत भारत विरोध पर केन्द्रित है। पाकिस्तान का कोई हुक्मरान भारत विरोध की नीति को छोड़ नहीं सकता। पाकिस्तान का लोकतंत्र हमेशा फौज के दबाव में रहता है। सत्ता में वह ही रह सकता है, जिस पर फौज मेहरबान रहे।
पाकिस्तान इस समय पूरी तरह चीन के जाल में फंसा चुका है।  हो सकता है कि चीन अब बंगलादेश को भी अपने खेमे में लाने का प्रयास करे। भारत से तनातनी के बीच चीन ने बंगलादेश को ट्रेड टेरिफ में 97 फीसदी तक छूट देने की पेशकश की है। 5 हजार से ज्यादा चीजें हैं जिनका व्यापार चीन से होता है।
चीन ने उसे आर्थिक मदद देने की पेशकश की है। चीन की बंगलादेश से नजदीकियां भारत की चिन्ता बढ़ाने वाली हैं। चीन लगातार भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश कर चुका है।  नेपाल द्वारा भारत का विरोध चीन के उकसाने पर ही शुरू किया गया है।
भारत इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से आगे का रास्ता पूरे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखने के ​हिसाब से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत को चीन काे मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। एक बार हमने चीन को करारा सबक सिखा दिया तो फिर पाकिस्तान और नेपाल भी अपने आप सुधर जाएंगे। भारत को अपने सारे कूटनीतिक चैनल खोलने होंगे और सक्रिय होकर पड़ोसी देशों से संबंधों को सामान्य बनाना होगा। डिप्लोमेटिक डील काफी काम आ सकती है। जरूरत है ​भारत जल्द से जल्द काम करे।
–आदित्य नारायण चोपड़ा
Advertisement
Next Article