W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

जम्मू-कश्मीर की नई सुबह!

6 अगस्त, दिन मंगलवार जम्मू-कश्मीर में नई सुबह हुई। श्रीनगर के लाल चौक की सुबह भी वैसी ही थी जैसे देश के किसी अन्य शहर की सुहावनी सुबह।

04:24 AM Aug 07, 2019 IST | Ashwini Chopra

6 अगस्त, दिन मंगलवार जम्मू-कश्मीर में नई सुबह हुई। श्रीनगर के लाल चौक की सुबह भी वैसी ही थी जैसे देश के किसी अन्य शहर की सुहावनी सुबह।

जम्मू कश्मीर की नई सुबह
Advertisement
6 अगस्त, दिन मंगलवार जम्मू-कश्मीर में नई सुबह हुई। श्रीनगर के लाल चौक की सुबह भी वैसी ही थी जैसे देश के किसी अन्य शहर की सुहावनी सुबह। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के लिये उसी अनुच्छेद 370 का इस्तेमाल किया यानि 370 से ही 370 को काट डाला। मोदी सरकार ने 370 को खत्म करने की बजाय सरकार द्वारा इस अनुच्छेद के द्वारा राष्ट्रपति को दी गई शक्तियों का उपयोग करके इसे निष्क्रिय कर दिया। यह वर्तमान दौर में राजनीति के चाणक्य अमित शाह के राजनीतिक कौशल का ही परिणाम है। आजादी के बाद से जम्मू-कश्मीर में हिंसा का दौर शुरू हो गया था।
Advertisement
लगातार नरसंहारों से वादियां खामोश रहीं, बस्तियों में सन्नाटा रहा, चिनार उदास रहे और श्रीनगर की डल झील वीरान रही। अब जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान संचालन भी नहीं रहा। अनुच्छेद 35ए जो जम्मू-कश्मीर के स्थाई और बाहरी लोगों के बीच फर्क बनाये रखता था, अब उसका भी कोई अस्तित्व नहीं बचा। मुझे याद है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी दृष्टि से कश्मीर की समस्या का बड़ी गंभीरता से अध्ययन किया था। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच से जुड़े इन्द्रेश जी ने पूरी समग्रता से कश्मीर की समस्या को देखा था।
Advertisement
हर पक्ष को जानकर उन्होंने जमीनी सच को देखते हुये अपना निष्कर्ष दिया था कि कश्मीर राज्य का पुनर्गठन बहुत जरूरी है। उन्होंने सुझाव दिया था कि लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया जाये। कश्मीर घाटी को अलग कर उस पर सारी ऊर्जा केन्द्रित की जाये। लद्दाख में बौद्ध धर्मावलम्बियों की संख्या सबसे ज्यादा है। जम्मू में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इस सत्य को पहचाना गया कि घाटी में रहने वाले हुर्रियत पसंदों ने न केवल दो नारों ‘अल्लाह हो अकबर और नारा-ए-तदबीर’ के बल पर पाकिस्तान के हाथों अपना स्वाभिमान गिरवी रख दिया था और कश्मीरी पंडितों को घाटी से खदेड़ दिया गया था।
कश्मीर का जितना क्षेत्रफल है करीब-करीब उसके दाेगुना जम्मू का क्षेत्रफल है। जम्मू का जितना क्षेत्रफल है, लद्दाख का क्षेत्रफल उससे दोगुना है। आंकड़े चीख-चीख कर कहते रहे कि लद्दाख से लेकर जम्मू तक जितने भी अपराध हो रहे थे, वे सब उन्हीं चरमपंथी विचारधारा वाले गिरोहों द्वारा हो रहे थे जो या तो हुर्रियत के नाम से संगठित थे या जो पाकिस्तान के ट्रेनिंग कैम्पों में ट्रेनिंग लेते थे। जब भी 370 हटाने की मांग जोर पकड़ती, राष्ट्रद्रोहियों की नींद उड़ जाती। शेख अब्दुल्ला के साहिबजादे फारूक अब्दुल्ला और अन्य नेताओं को अपनी सारी योजनायें विफल होती दिखाई देतीं तो कश्मीरियत जोर मारने लगती। ‘कश्मीर के टुकड़े-टुकड़े नहीं होने देंगे’ जैसे जोशीले नारे सुनाई देते। हुर्रियत चिल्लाती कि कश्मीर का बंटवारा नहीं होने देंगे। गांधीवादी, शांतिवादी, उदारवादी, मानवतावादी ये कुछ ऐसे शब्द रहे जिससे खेलना हमारे देश के कई नेताओं की आदत हो गई थी। परिणाम क्या हुआ?
– आतंकवादी संगठनों ने बंदूकों से आग उगली।
– हमारे धर्मस्थलों पर हमले हुये।
– आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया।
– यहां हुर्रियत के नाग पलते रहे और युवाओं को पत्थरबाज  और आतंकवादी बनाते रहे।
सवाल यह भी है कि क्या किसी राज्य की पहचान मजहबी आधार पर निश्चित की जा सकती है? क्या केवल मुस्लिम बहुल होने से ही किसी राज्य को विशेष दर्जा दिया जा सकता है? यह प्रश्न जम्मू-कश्मीर के तीनों संभागों में गूंजते रहे लेकिन इनका उत्तर मिला तो मोदी शासनकाल में। अब बहुत परिवर्तन देखने को मिलेगा। भारत की पूर्ववर्ती सरकारों ने जम्मू-कश्मीर में जितना धन तुष्टीकरण के लिये बहाया उससे आम कश्मीरी को तो कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि चंद परिवारों ने अपने घर भर लिये। अब सरकारी धन में गोलमाल नहीं हो पायेगा।
आम कश्मीरी के खाते में सीधे सबसिडी दी जा सकती है। अब रणवीर दंड संहिता नहीं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) लागू होगी। जम्मू-कश्मीर में भी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण कानून वैसे ही लागू होंगे जैसे बाकी भारतीय राज्यों पर होते हैं। अन्य राज्यों के छात्र भी जम्मू और कश्मीर के कालेजों में प्रवेश और राज्य सरकार के कार्यालयों में नौकरी पा सकेंगे। बाहरी माने जाने वाले लोग अब वहां संपत्ति खरीद सकेंगे। कार्पोरेट सेक्टर के लिये भी निवेश का मार्ग खुलेगा। कश्मीरी महिलायें अपनी पसंद के गैर-कश्मीरी से शादी करके भी उनके बच्चे विरासत के अधिकार को नहीं खोयेंगे।
धारा 370 की सबसे बड़ी दिक्कत को तो आज तक कोई समझ ही नहीं सका। मैंने इस बारे में कई बार लिखा था। इस धारा में दिक्कत यह है कि अगर जम्मू-कश्मीर का कोई लड़का या लड़की कश्मीर के बाहर शादी करते हैं तो उनकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता छीन ली जाती थी लेकिन कश्मीर के लड़के या लड़की की POK यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पाकिस्तान के कब्जे वाले) के किसी लड़के या लड़की से शादी हो जाती थी तो उनको न केवल कश्मीर की बल्कि पाकिस्तान की नागरिकता भी मिल जाती थी। अगर कश्मीर की कोई लड़की पाक अधिकृत कश्मीर के किसी लड़के से शादी करती थी तो उस लड़के को स्वयं ही भारत के कश्मीर आैर भारत देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती थी। यह कैसा इंसाफ हो रहा था? लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
उम्मीद है कि संवाद से स्थितियां बदलेंगी। राष्ट्र को कश्मीर के अवाम को अहसास कराना होगा कि दिल्ली की मोदी सरकार उनके दर्द को कम करना चाहती है। युवाओं काे शिक्षा और रोजगार देना चाहती है। यह अहसास जितना गहरा होगा, घाटी में आतंक को समर्थन कम होता जायेगा। फिर कोई बुरहान वानी और जाकिर मूसा पैदा नहीं होगा। घाटी के युवाओं के हाथों में बंदूकें नहीं ज्वाइनिंग लैटर चाहिये। कश्मीरी अवाम भी भारत में होने और पाकिस्तान में होने के अंतर को समझता है। आज की तारीख में पाकिस्तान के पास है ही क्या? जरूरी है कि राष्ट्रवादी ताकतें कश्मीर में विमर्श खड़ा करें। उम्मीद है कि इससे स्थितियां सामान्य हो जायेंगी।
Advertisement
Author Image

Ashwini Chopra

View all posts

Advertisement
Advertisement
×