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पूर्वोत्तर में शां​​ति का नया युग

केन्द्र सरकार ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कुछ जिलों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी अफस्पा को हटाने का फैसला किया है।

03:55 AM Apr 02, 2022 IST | Aditya Chopra

केन्द्र सरकार ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कुछ जिलों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी अफस्पा को हटाने का फैसला किया है।

पूर्वोत्तर में शां​​ति का नया युग
केन्द्र सरकार ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कुछ जिलों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी अफस्पा को हटाने का फैसला किया है। मोदी सरकार और गृहमंत्रालय का यह फैसला काफी साहसिक है और इस फैसले को पूर्वोत्तर राज्यों में एक सद्भाव का माहौल बनाने के केन्द्र के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है। असम में 23 जिलों में पूरी तरह और एक जिले से आंशिक तौर पर अफस्पा हटा दिया जाएगा। राज्य में 1990 से अफस्पा लागू है। मणिपुर के छह जलों के 15 पुलिस थाना क्षेत्रों को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाएगा। इसी तरह नागालैंड के सात​ जिलों  में 15 पुलिस थाना क्षेत्रों को अफस्पा से बाहर रखा जाएगा। अफस्पा का दायरा घटाए जाने से पूर्वोत्तर में शांति के नए युग की शुरूआत की उम्मीद है। यह इस बात का प्रमाण भी है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अब उग्रवाद काफी हद तक दम तोड़ चुका है और कानून व्यवस्था की ​स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
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मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि वे विवादास्पद कानून को निरस्त करने के​ लिए जोर देना जारी रखेंगे। अफस्पा कानून काफी विवादास्पद रहा है। दरअसल इस एक्ट का मूल स्वरूप अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था जब ​ब्रिटिश  सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेषाधिकार दिए थे। आजादी के बाद भी भारत सरकार ने इस कानून को जारी रखने का फैसला किया। 1958 में एक अध्यादेेश के जरिये अफस्पा को लाया गया। तीन महीने बाद ही अध्यादेेश को संसद की स्वीकृति मिल गई और 11 सितम्बर, 1958 को यह कानून के रूप में लागू हो गया। शुरूआत में इस कानून को पूर्वोत्तर और पंजाब के अशांत क्षेत्रों में लगाया गया था। जिन  जगहों पर यह कानून लागू हुआ उनमें ज्यादातर की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश और म्यांमार से सटी थीं।
इस एक्ट के सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में शांति  बनाए रखने के लिए  विशेषाधिकार दिए गए हैं। सशस्त्र बलों बिना अरेस्ट वारंट किसी व्यक्ति को संदेह के आधार पर अरेस्ट करने और किसी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी लेने का भी अधिकार है। यह कानून सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग और उस पर गोली चलाने की भी अनुमति देता है। एक्ट की बड़ी बात यह है कि जब तक केन्द्र सरकार मंजूरी न दे तब तक सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती। इसमें कोई संदेह नहीं कि आतंकवाद और विद्रोही गतिविधियों से  निपटने के लिए  सशस्त्र बलों को अधिकार दिए जाने की जरूरत होती है। लेकिन यह भी देखना जरूरी होता है कि कहीं इसका निशाना निर्दोष न बन जाए। कानूनों का दुरुपयोग भी होता आया है। मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता भी इस कानून का विरोध करते आए हैं। आरोप लगते रहे हैं कि सेना और अन्य सशस्त्र बलों को जो शक्तियां मिली हुई हैं उनका दुरुपयोग हुआ है। सेना पर फर्जी मुठभेड़ें, मनमाने मन से गिरफ्तारी और हिरासत में यातनाएं देने जैसे आरोप लगते रहे हैं। सबसे पहले मणिपुर की आयरन लेडी कही जाने वाली इरोम शर्मीला ने अफस्पा का कड़ा विरोध किया था। नवम्बर 2020 में एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना के वक्त इरोम शर्मीला वहां मौजूद थीं। इस घटना के विरोध में इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी जो 16 साल चली। 2004 में 32 वर्षीय थंगजाम मनोरमा की कथित तौर पर सेना के जवानों ने रेप के बाद हत्या कर दी थी। मनोरमा का शव क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ था। तब मणिपुरी महिलाओं ने नग्न होकर इस घटना के विरोध में प्रदर्शन किया था। फर्जी मुठभेड़ों के अनेक मामले अदालतों तक पहुंचे और लोग न्याय के लिए भटकते रहे।
पिछले वर्ष दिसम्बर में नागालैंड में सुरक्षा बलों ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी जिसमें काफी तनाव व्याप्त हो गया था। तब जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे थे। लोगों का कहना था कि अफस्पा कानून ने उनके जीवन को नरक बना दिया है। पूर्वोत्तर राज्यों के विधानसभा चुनावों में यह अफस्पा हटाने का मुद्दा काफी जोर पकड़ गया था। अब सवाल यह है कि क्या अफस्पा को हटाया जाना उचित है या अनुचित? दरअसल केन्द्र के प्रयासों से पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी गतिविधियों में काफी कमी आई है। उल्फा, सलफा, बोडो, नगा विद्रोहियों का काफी हद तक खात्मा हो चुका है। केन्द्र सरकार के मुुताबिक 2014 के मुकाबले 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74 फीसदी कमी आई है और पिछले  कुछ सालों में सात हजार से अधिक उग्रवादियों ने हथियार डाल दिए हैं। मोदी सरकार ने दशकों से उपेक्षित पूर्वोत्तर क्षेत्र की ओर काफी ध्यान दिया है और यह क्षेत्र शांति, समृद्धि और भूतपूर्व विकास के एक नए युग का गवाह बन रहा है। सुरक्षा स्थिति में सुधार के बाद यहां से अफस्पा हटाना उचित है, इससे लोगों को राहत मिलेगी। जहां तक जम्मू-कश्मीर का संबंध है, आतंकवाद के कारण राज्य काफी संवेदनशील बना हुआ है। ले​किन  जम्मू-कश्मीर भी विकास  की राह पर है। उम्मीद है कि वहां भी स्थितियां सामान्य हो जाएंगी।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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