प्रधानमंत्री मोदी के AI विजन की नई उड़ान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता एआई (AI) पर दिया…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता एआई (AI) पर दिया गया वक्तव्य केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह भारत के नवाचार, अनुसंधान और वैश्विक नेतृत्व की एक स्पष्ट रूपरेखा है। जिस समय विश्व एआई के प्रभावों से जूझ रहा है—चाहे वह नौकरियों पर हो, शासन पर हो, सुरक्षा पर हो या नैतिकता पर—ऐसे समय में प्रधानमंत्री मोदी का यह दृष्टिकोण भारत के लिए एक यथार्थवादी और प्रगतिशील मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है। उनका यह कथन, “एआई इस सदी में मानवता के लिए (नए) कोड लिख रहा है,” अपने आप में गहरी दूरदृष्टि का परिचायक है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि एआई अब कोई दूर का सपना नहीं है, बल्कि यह वर्तमान समय में ही दुनिया के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का यह रुख भारत को केवल एआई का उपभोक्ता नहीं, बल्कि इसके वैश्विक निर्माता और मार्गदर्शक के रूप में स्थापित करने का एक सशक्त संकेत देता है।
प्रधानमंत्री मोदी की एआई पर यह सोच उन्हें अन्य वैश्विक नेताओं से अलग बनाती है। जहां कई लोग एआई के खतरों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं या फिर इसके असीमित लाभों की बात करते हैं, वहीं मोदी जी का रुख संतुलित और व्यावहारिक है। उन्होंने एआई की क्षमताओं को स्वीकार करने के साथ-साथ इसके जोखिमों को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। विश्वस्त, पारदर्शी और समावेशी एआई विकास पर उनका विशेष ध्यान इसे और भी महत्वपूर्ण बना देता है। जिस समय एआई का उपयोग जनमत निर्माण, सामाजिक संरचनाओं और चुनावी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में किया जा रहा है, उस समय एआई में निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करना अनिवार्य हो जाता है। मोदी जी का यह आग्रह कि एआई को ओपन-सोर्स मॉडल और उच्च-गुणवत्ता वाले निष्पक्ष डेटा सेटों पर आधारित होना चाहिए, वैश्विक स्तर पर एआई के नियंत्रण और न्यायसंगत वितरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। एआई का वर्तमान विकास कुछ चुनिंदा तकनीकी कंपनियों के नियंत्रण में है, जिससे इसके एकाधिकार, डेटा गोपनीयता और एल्गोरिथमिक पूर्वाग्रहों की समस्या उत्पन्न हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी का एआई को लोकतांत्रिक और विकेंद्रीकृत बनाने का दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करेगा कि भारत इस क्रांति का केवल एक उपभोक्ता न बनकर, एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बने।
एआई के आगमन के साथ सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि क्या इससे पारंपरिक नौकरियां समाप्त हो जाएंगी? इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण पूर्णतः व्यावहारिक और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। उनका कथन कि “नौकरियों का नुक्सान एआई की सबसे बड़ी आशंका है। लेकिन इतिहास गवाह है कि किसी भी तकनीकी क्रांति से काम समाप्त नहीं होता, बल्कि उसका स्वरूप बदलता है और नए प्रकार की नौकरियां उत्पन्न होती हैं,” अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो औद्योगिक क्रांति ने मशीनों को अपनाया लेकिन उससे नए उद्योगों और नौकरियों का सृजन हुआ। आईटी क्रांति ने कुछ पारंपरिक नौकरियों को समाप्त किया, लेकिन उसी के साथ नए अवसर भी पैदा किए। ठीक उसी तरह एआई भी नौकरियों को समाप्त नहीं करेगा, बल्कि उनके स्वरूप में बदलाव लाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी की इस सोच का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है। अगर सही नीति और योजनाएं बनाई जाती हैं तो एआई भारत के युवाओं के लिए नई नौकरियों और नए उद्योगों के द्वार खोल सकता है, खासकर एआईएथिक्स, साइबर सुरक्षा, ऑटोमेशन मैनेजमेंट, डेटा साइंस और एआई-संचालित कंटेंट क्रिएशन जैसे क्षेत्रों में। इस दृष्टिकोण से मोदी जी का यह संदेश युवा पीढ़ी के लिए आशाजनक है—एआई से डरने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि इसे सीखने, समझने और नेतृत्व करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मोदी का एआई पर दृष्टिकोण न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाता है, बल्कि यह भारत को वैश्विक एआई नीति निर्माण का अगुआ बनाने का भी संकेत देता है। उनका एआई पर अगला एआई एक्शन समिट भारत में आयोजित करने का प्रस्ताव केवल एक राजनयिक कदम नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक संकेत है कि भारत अब वैश्विक एआई चर्चाओं का केंद्र बनना चाहता है। यह कदम भारत के विश्वगुरु बनने की व्यापक योजना के साथ जुड़ा हुआ है। अगर भारत एआई अनुसंधान और नीति निर्माण में अपनी स्थिति मजबूत करता है तो यह वैश्विक एआई मानकों को प्रभावित कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि एआई केवल एक छोटे समूह की शक्ति न बनकर संपूर्ण मानवता के लाभ के लिए कार्य करे।
प्रधानमंत्री मोदी ने एआई के पर्यावरणीय प्रभाव पर भी ध्यान दिया है। एआई का उपयोग करने के लिए विशाल कंप्यूटिंग संसाधनों की आवश्यकता होती है जिससे ऊर्जा खपत बढ़ती है और पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। मोदी जी का “हरित ऊर्जा के साथ एआई विकास” का विचार इस दिशा में एक अभिनव कदम है। अगर एआई को अक्षय ऊर्जा स्रोतों से संचालित किया जाए और इसे ऊर्जा-कुशल बनाया जाए तो यह जलवायु संकट को बढ़ाने के बजाय इसके समाधान का हिस्सा बन सकता है। यह दृष्टिकोण भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक नवीन और आवश्यक कदम है।
प्रधानमंत्री मोदी के एआई पर दिए गए विचार केवल एक नीति वक्तव्य नहीं हैं, बल्कि यह भारत के तकनीकी और आर्थिक भविष्य की परिभाषा हैं। उनकी एआई संबंधी सोच व्यापक और दूरदर्शी है जिसमें नैतिक शासन, रोजगार परिवर्तन, सतत् विकास और वैश्विक नेतृत्व सभी शामिल हैं।
इस दृष्टिकोण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मोदी जी एआई को भारत के लिए एक चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में देखते हैं। उनका यह संदेश स्पष्ट है—भारत केवल एआई की दिशा में कदम नहीं बढ़ाएगा, बल्कि इस क्रांति का नेतृत्व करेगा। अगर इस रणनीति को सही ढंग से लागू किया गया तो भारत वैश्विक एआई शोध और नवाचार का केंद्र बन सकता है जिससे नए अनुसंधानों, रोजगार सृजन और तकनीकी विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। एआई सच में इस सदी के लिए “कोड लिख रहा है,” लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत अपनी एआई-संचालित उज्ज्वल भविष्य की पटकथा स्वयं लिख रहा है।
(लेखक- अरविंद कॉलेज के पॉलिटिकल साइंस के सहायक प्रोफेसर हैं )