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दूरदर्शी दौर की शुरुआत हैं नए लेबर कोड

04:34 AM Nov 27, 2025 IST | Editorial

भारत आज़ादी के बाद होने वाले सबसे बड़े श्रम सुधारों में से एक के करीब है। चार नई श्रम संहिताएं- वेतन संहिता (वेज़ कोड), इंडस्ट्रियल रिलेशन्स कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड और ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड- अब लागू हो चुके हैं। इन संहिताओं का उद्देश्य पुराने और जटिल 29 केंद्रीय मज़दूरी क़ानूनों की जगह एक सरल, तकनीक-आधारित और मज़दूर-केंद्रित व्यवस्था स्थापित करना है।
यह सुधार सिर्फ़ प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि एक बड़ा संरचनात्मक परिवर्तन है, जो यह दिखाता है कि भारत एक न्यायपूर्ण, प्रतिस्पर्धी, समावेशी और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप कार्यबल प्रणाली बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। यही प्रणाली आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को मजबूत आधार देती है।
कई दशकों तक भारत में मज़दूरी कानून बहुत बिखरे हुए और एक-दूसरे से ओवरलैप करते रहे। इससे उद्योगों पर भारी नियमों का बोझ पड़ा और अनुपालन करना मुश्किल हो गया। केंद्र और राज्य के अलग-अलग क़ानूनों के तहत कई तरह के पंजीकरण, लाइसेंस और निरीक्षणों ने लागत बढ़ाई, मज़दूरों के कल्याण से ध्यान हटाया और अक्सर उद्योग और सरकार के बीच अविश्वास पैदा किया।
नई मज़दूरी संहिताएं पूरे देश में परिभाषाओं और अनुपालन नियमों को एक जैसा बनाती हैं। इसके साथ ही "वन नेशन, वन लेबर लॉ" का सिद्धांत लागू होता है। इससे नियोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों को स्पष्ट, सरल और न्यायपूर्ण प्रक्रियाओं का फायदा मिलता है। एकीकृत पंजीकरण और डिजिटल व्यवस्था से दोहराव खत्म होता है, प्रक्रियाएं तेज होती हैं और जवाबदेही मजबूत होती है। औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है।
मज़दूरी संहिताओं की सबसे बड़ी विशेषता सामाजिक सुरक्षा का बड़ा विस्तार और सुधार है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, भारत में सामाजिक सुरक्षा कवरेज 2015 में लगभग 19% आबादी से बढ़कर 2025 में 64% से अधिक हो गया है, जो लगभग 94 करोड़ लोगों को शामिल करता है। नई मज़दूरी संहिताएं इस प्रगति को आगे बढ़ाते हुए, श्रम कानूनों के केंद्र में सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा को मजबूत रूप से स्थापित करती हैं।
नई संहिताएं मानती हैं कि डिजिटल अर्थव्यवस्था में कामकाज का स्वरूप तेजी से बदल रहा है, जहां गिग और प्लेटफ़ॉर्म पर काम करने वाले श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है। पहली बार, ऐसे श्रमिकों को कानूनी पहचान दी गई है और उनके लिए खास सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था बनाई गई है, जिसके लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म भी हिस्सा डालेंगे। राष्ट्रीय ई-श्रम पोर्टल गिग और असंगठित श्रमिकों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करता है, जिससे वे अलग-अलग योजना लाभ आसानी से प्राप्त कर सकें और सामाजिक सुरक्षा को एक शहर से दूसरे या एक ऐप से दूसरे ऐप पर ले जा सकें।
ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड कार्यस्थल की सुरक्षा के मानकों को और ऊंचा करता है, जिससे भारत के वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी विनिर्माण केंद्र बनने के लक्ष्य को मजबूती मिलती है। इंडस्ट्रियल रिलेशन्स कोड में लाया गया फ़िक्स्ड-टर्म एम्प्लॉयमेंट का प्रावधान नियोक्ताओं को लचीलापन देता है, जबकि श्रमिकों के कानूनी अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है।
मज़दूरी संहिताओं से महिलाओं और युवाओं को विशेष रूप से अधिक लाभ मिलता है, जो भारत की विकास यात्रा के लिए बेहद महत्वपूर्ण समूह हैं। समान काम के लिए समान वेतन और बेहतर न्यूनतम वेतन महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को मजबूत करते हैं। बेहतर मातृत्व लाभ, सुरक्षित कार्यस्थल और नियंत्रित नाइट शिफ्ट की सुविधा महिलाओं के लिए अधिक अवसर और सुरक्षा प्रदान करती है। युवाओं के लिए औपचारिक नौकरियों में प्रवेश, अप्रेंटिसशिप और कौशल विकास कार्यक्रमों का रास्ता और स्पष्ट हुआ है, जिससे उनकी रोजगार क्षमता बढ़ती है और करियर में आगे बढ़ने के अवसर मजबूत होते हैं।
ये सुधार आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभों के साथ पूरी तरह मेल खाते हैं। यह अनुपालन की लागत कम करके और निवेश आकर्षित करके आर्थिक विकास को गति देते हैं। आधुनिक सुरक्षा नियमों और राष्ट्रीय स्तर पर मज़दूरों के डेटाबेस के ज़रिए यह देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करते हैं। एकीकृत निरीक्षण प्रणाली और राष्ट्रीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म शासन को पूरी तरह डिजिटल युग में ले जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात, ये सुधार भारत की युवा आबादी और बदलते कामकाज के नए तरीकों को पहचानते हैं, प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और महिलाओं व युवाओं के लिए अधिक अवसर पैदा करते हैं। श्रम संहिताएं आमदनी बढ़ाकर, वेतन की सुरक्षा मजबूत करके और सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाकर मांग (डिमांड) को भी बढ़ाती हैं। इससे परिवारों का भरोसा बढ़ता है। कुल मिलाकर, ये सुधार विकास और समानता का एक मजबूत चक्र बनाते हैं, जो भारत की प्रगति की यात्रा को गति देता है।
श्रम संहिताएं बदलाव का एक मजबूत खाका देती हैं, लेकिन उनका पूरा असर तभी दिखेगा जब इन्हें समय पर और प्रभावी तरीके से लागू किया जाएगा। इसके लिए केंद्र और राज्यों के बीच अच्छा तालमेल, नियमों और दिशानिर्देशों में स्पष्टता, और निरीक्षण अधिकारियों व नियोक्ताओं, दोनों की क्षमता बढ़ाना जरूरी होगा।
चार श्रम संहिताओं का लागू होना एक ऐतिहासिक क्षण है, जो भारत के कार्यबल यानि वर्कफ़ोर्स के लिए एक नए सामाजिक अनुबंध की शुरुआत करता है। यह सिर्फ़ मज़दूरी सुधार नहीं है, बल्कि एक सचमुच आधुनिक कार्यबल प्रणाली की बुनियाद है। यह वह परिवर्तनकारी कदम है जिसका असर आने वाले कई दशकों तक भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास में दिखाई देगा। जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने और 2047 में अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब ये श्रम संहिताएं एक समृद्ध, समावेशी और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी राष्ट्र की आकांक्षाओं को साकार करती हैं।

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