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एनआईए का आतंक पर शिकंजा

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए के नाम से जाना जाता है का महत्व आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए काफी बढ़ गया है।

01:47 AM Nov 28, 2022 IST | Aditya Chopra

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए के नाम से जाना जाता है का महत्व आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए काफी बढ़ गया है।

एनआईए का आतंक पर शिकंजा
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राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए के नाम से जाना जाता है का महत्व आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए काफी बढ़ गया है। भारत की संप्रभुता, सुरक्षा एवं अखंडता के​ लिए इस एजेंसी ने कई उप​लब्धियां हासिल की हैं। आतंकवादी घटनाओं के तार जटिल, अन्तर्राज्यीय और अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्कों से जुड़े होते हैं और हम उनका संगठित अपराधों जैसे हथियार एवं मादक पदार्थों की तस्करी, टारगेट किलिंग और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंध हो सकता है। एनआईए ने जम्मू-कश्मीर के आतंकवादियों का वित्त पोषण रोकने के लिए बहुत काम किया है। दोषियों को दंडित करने के​ लिए उसकी छापेमारी जारी रहती है। देश में आतंकवाद से जुड़ी बड़ी घटनाओं की जांच यही एजेंसी कर रही है और उसे काफी हद तक सफलता भी मिल रही है। एनआईए का गठन 2008 में मुम्बई के आतंकवादी हमले के बाद किया गया था। एनआईए केवल जांच एजेंसी ही नहीं​ बल्कि मुकदमा चलाने वाली एजेंसी भी है। एनआईए ने अब जेलों में बंद पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली के गैंगस्टरों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर ली है। जांच एजेंसी ने गृह मंत्रालय से कहा है कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की जेलों में बंद गैंगस्टरों की सांठगांठ तोड़ने के लिए इन सभी को दक्षिण भारत की जेलों में ​शिफ्ट  कर दिया जाए। सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड की जांच के दौरान एनआईए ने पाया कि इन जेलों में बंद गैंगस्टर बड़े आराम से अपराधों को अंजाम दे रहे हैं और इनके तार आपस में जुड़े हुए हैं।
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लारेंस बिश्नोई गैंग और बंबीहा गैंग कई राज्यों में सक्रिय है। लारेंस बिश्नोई भले ही 2015 से जेल में बंद है लेकिन फोन और सोशल मीडिया के जरिये अपने साथियों से सम्पर्क में रहता रहा है और जेल से ही अपराधों को अंजाम देता रहा। बंबीहा गैंग के सरगना देवेन्द्र को पुलिस ने 2018 में ही मार गिराया था। लेकिन इस गैंग से जुड़े लोग पंजाब संगीत उद्योग से जुड़े लोगों को धमका कर धन ऐंठते रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के गैंगस्टरों के तार कनाडा, ​ब्रिटेन या अन्य जगह बैठे कुख्यात गैंगस्टरों, माफिया डॉनो से जुड़े हुए हैं। यह गैंग अमीर कारोबारियों, शराब कारोबारियों, सट्टेबाजों और अन्य लोगों से रकमें वसूलते हैं। अगर रकम नहीं मिली तो उनकी हत्याएं तक कर दी जाती है। इन अपराधों की आड़ में खालिस्तान समर्थक तत्व भी अपनी साजिशों को अंजाम देने में जुट गए हैं। इस साल अब तक पंजाब में आठ लोगों की हत्या गैंग संबंधित अपराधों से हो चुकी है। पंजाब में स्थिति काफी गम्भीर बताई जाती है। एनआईए ने अपनी जांच में पाया कि देश में गैंगस्टर, आतंकवादी गठजोड़ का एक हिस्सा है जो विदेशी धरती से पंजाब में टारगेट किलिंग में शामिल रहते हैं। एनआईए ने कनाडा स्थित कई वांछित गैंगस्टरों को गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत व्यक्तिगत आतंकवादी घोषित करने की योजना तैयार कर ली है।
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एनआईए की एक उच्च स्तरीय बैठक के दौरान यूएपीए की लिस्ट में सतिंदरजीत सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ जैसे गैंगस्टरों के नाम शामिल करने पर चर्चा हुई, जो गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या का मास्टरमाइंड था। इसके साथ ही अर्शदीप सिंह उर्फ अर्श डाला, लखबीर सिंह उर्फ लांडा, चरणजीत सिंह उर्फ बिहला, रमनदीप सिंह उर्फ रमन जज, गुरपिंदर सिंह उर्फ बाबा डल्ला और सुखदुल सिंह उर्फ सुखा दुनेके के नाम भी यूएपीए की लिस्ट में शामिल करने की बात कही गई, ये सभी कनाडा में रहते हैं। डाला का नाम गृह मंत्रालय (एमएचए) को ‘व्यक्तिगत आतंकवादी’ घोषित करने के लिए भेजा जा रहा है। जल्द ही कई और लोगों को इस लिस्ट में शामिल किया जा सकता है। डाला इस समय ब्रिटिश कोलंबिया में है। वह एनआईए और पंजाब पुलिस द्वारा ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, यूएपीए आदि के मामलों में वांछित है। एनआईए ने उस पर 10 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया है। यह पहली बार होगा कि गैंगस्टरों को व्यक्तिगत आतंकवादी करार दिया जाएगा।
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यूएपीए के तहत व्यक्तिगत आतंकवादियों की सूची में वर्तमान में 48 लोगों के नाम हैं। जिनमें से कई पाकिस्तान समर्थित इस्लामिक आतंकवादी संगठनों या खालिस्तानी समूहों से जुड़े हैं। बब्बर खालसा इंटरनेशनल या यूके प्रमुख परमजीत सिंह, कनाडा ​स्थित खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर, जर्मनी में बैठा खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स का प्रमुख गुरमीत सिंह बग्गा और अमेरिका में बैठा सिख फॉर जस्टिस का नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू भी इस लिस्ट में है।
सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के बाद गिरोहों के बारे में नए-नए खुलासे हो रहे हैं। पंजाब में जब भी कोई नया अपराध होता है तो उसके पीछे विदेश में बैठा किसी न किसी गैंगस्टर या कट्टरपंथी का हाथ निकलता है। हैरानी की बात तो यह है कि आरोपी इस बात को छिपाने या दबाने की कोशिश नहीं करते, वे खुद मीडिया के जरिये इन हत्याओं की जिम्मेदारी ले रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि पंजाब में गैंगवार पैसे के लिए नहीं है, वहां कथित तौर पर धर्म का सबसे बड़ा पैरोकार बनने के लिए  भी जद्दोजहद चल रही है। आतंकवाद पर अगर काबू पाना है तो जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी। गृह मंत्रालय जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रहा है। यद्यपि पंजाब पुलिस जेलों में छापामारी कर इन गैंगस्टरों के सम्पर्क सूत्र पकड़ रही है, लेकिन हिंसा पर लगाम लगाने के लिए केन्द्रीय जांच एजेंसियों से उसका तालमेल जरूरी है। गैंग्स ऑफ पंजाब की कहानी, गैंग्स ऑफ वासेपुर से कही अधिक जटिल हो चुकी है। अगर इन पर जल्द शिकंजा नहीं कसा गया तो हालात बिगड़ सकते हैं। इस दृष्टि से एनआईए की कार्रवाई सराहनीय है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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