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नो मनी फार टैरर

पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का हमेशा कड़ा रुख रहा है। भारत कई वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के वित्त पोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करता रहा है

12:16 AM Nov 20, 2022 IST | Aditya Chopra

पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का हमेशा कड़ा रुख रहा है। भारत कई वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के वित्त पोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करता रहा है

नो मनी फार टैरर
पूरी दुनिया जानती है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का हमेशा कड़ा रुख रहा है। भारत कई वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के वित्त पोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करता रहा है। भारत आजादी के बाद से ही पाक प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। वैश्विक शक्तियों ने पहले तो भारत की आवाज को नजरअंदाज किया लेकिन आतंकवाद का प्रहार जब उन पर हुआ तब जाकर उन्होंने उपाय करने  शुरू कर दिए। ‘नो मनी फार टैरर’ अंतर्राष्ट्रीय मंत्री  स्तरीय दो दिवसीय सम्मेलन नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ जिसमें आतंकी फंडिंग रोकने के खिलाफ उपायों पर चर्चा की गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेलन में पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं। वे उन्हें राजनीतिक वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। युद्ध नहीं होने का मतलब यह नहीं कि शांति बनी हुई है। उन्होंने आह्वान किया कि आतंकवाद को खत्म करने के लिए एक व्यापक सक्रिय और व्यवस्थित प्रतिक्रिया की जरूरत है। हमारे नागरिक सुरक्षित रहें इसलिए हम इंतजार नहीं कर सकते। घर तक आतंक पहुंचाने से पहले ही उस पर प्रहार करना जरूरी है। गृहमंत्री अमित शाह ने भी आतंकवाद पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि आतंकवादी डार्क नेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए ​क्रिप्टो करेंसी जैसी आभासी मुद्रा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए हमें डार्क नेट पर हो रही गतिविधियों को समझना होगा और उनका समाधान खोजना होगा। आतंकी फंडिंग रोकने के लिए  यह तीसरा मंत्री स्तरीय सम्मेलन है। इससे पहले ऐसे सम्मेलन 2018 में पैरिस में और नवम्बर 2019 में मेलबर्न में आयोजित किया गया था। सम्पन्न हुए दिल्ली सम्मेलन में आतंकवाद की खेती करने वाले पाकिस्तान, उसे प्रोत्साहित करने वाले चीन और तालिबानी आतंक के पोषक अफगानिस्तान ने इसमें हिस्सा नहीं लिया।
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अभी हाल ही में संपन्न जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी भारत ने इस विषय को प्रमुखता से उठाया था जिसके बाद जी-20 देशों ने विश्व समुदाय से धन शोधन तथा आतंकवाद के वित्त पोषण से प्रभावी रूप से निपटने के अपने प्रयासों को तेज करने के लिए कहा था। जी-20 समूह ने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की रणनीतिक प्राथमिकताओं पर खरा उतरने की प्रतिबद्धता भी दोहरायी थी। गौरतलब है कि एफएटीएफ धन शोधन, आतंकवाद के वित्त पोषण और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता से जुड़े अन्य खतरों से निपटने के लिए 1989 में स्थापित एक अंतर सरकारी संस्था है। भारत का यह भी मानना है कि नये तरह के आर्थिक अपराधों से निपटने के लिये व्यवस्था को चाक चौबंद बनाने की जरूरत है। भारत ने आर्थिक अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मजबूत बनाने की जरूरत पर भी सदैव जोर दिया है।
कौन नहीं जानता कि एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका ने अपने हितों को देखते हुए न केवल पाकिस्तान पर डालरों की बरसात की बल्कि कई अन्य देशों में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए परोक्ष रूप से आतंकवादी समूहों को प्रोत्साहित किया। 2001 के 9/11 आतंकवादी हमले ने उसकी आंखें खोल दी  और पहली बार आतंकी फंडिंग रोकने के लिए वित्तीय संस्थानों की निगरानी के लिए संयुक्त राज्य पैट्रियर एक्ट पारित किया। कई देश और बहुराष्ट्रीय संगठनों ने उन संगठनों  की सूची तैयार की जिन्हें वे आतंकवादी संगठनों के रूप में नामित करते हैं। लेकिन इस सूची को लेकर भी भेदभाव बढ़ता जाता है। सोशल मीडिया मंच आतंकी समूहों के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार बन गए हैं। समाज को अस्थिर करने के लिए आतंकी प्रचार कट्टरता और साजिश के विस्तार के लिए नई प्रौद्योगिकी का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। कौन नहीं जानता कि जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान टैरर फंडिंग के जरिए ही आतंकवाद फैलाता रहा है और मोदी सरकार ने आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है। अहम बात यह है कि सभी देश आतंक के वित्त पोषण पर लगाम लगाएं, आतंक में लिप्त हर व्यक्ति या संस्था की सभी तरह के वित्तीय संस्थानों तक पहुंच को अवरुद्ध किया जाए। आतंकियों की भर्ती के साथ हथियार जुटाने को भी रोका जाए।
आतंकियों को सजा दिलाने के तहत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों से मदद की जाए। यहां पर सवाल बड़ा महत्वपूर्ण है कि क्या ऐसा हो रहा है। पाकिस्तान और चीन भारत में वांछित आतंकवादियों को जिस तरह बचाने की बेशर्मी करते आ रहे हैं उससे साफ है कि संयुक्त राष्ट्र संघ से चाहे जो प्रस्ताव पारित हो रहे हों उन पर कोई असर नहीं होता कई बार आतंकी सरगनाओं को काली सूची में डालने के प्रस्ताव रखे गए, परन्तु चीन की वीटो की वजह से इसमें सफलता हासिल नहीं हो पाई। भारत में 26/11 के गुनहगार पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे है जबकि अजमल कसाब को भारत में 12 नवम्बर 2012 को ही फांसी दी जा चुकी है। महत्वपूर्ण यह है कि आतंकवादी संगठन जिस तरह से नई-नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं ठीक वैसे ही ​आतंकरोधी प्रयासों के लिए तकनीक मददगार साबित हो सकती है। तकनीक से पहचान और धरपकड़ के लिए आपसी सहयोग और समायोजन जरूरी है। घोषणा पत्रों से कुछ नहीं होगा जब तक आतंकवादियों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए सभी देश अपनी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं समझते और आपस में तालमेल नहीं करते। अगस्त 2021 के बाद दक्षिण एशियाई क्षेत्र में स्थिति में व्यापक बदलाव हुए हैं। दुर्दांत आतंकी संगठनों के प्रभाव में बढ़ौतरी से क्षेत्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ चुकी है। नए समीकरणों ने टैरर फंडिंग के मुद्दे को काफी गंभीर बना दिया है। बेहतर होगा कि सभी देश इसे गंभीरता से लें।
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