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पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक

तुष्टिकरण के दावे, लावे उफन रहे हैं। उपरोक्त पंक्तियां देश की स्थिति को बयान करती हैं। एक देश कितनी तस्वीरें। कभी देश को भावनात्मक रूप से तोड़ने की साजिश हुई।

03:59 AM Feb 09, 2020 IST | Aditya Chopra

तुष्टिकरण के दावे, लावे उफन रहे हैं। उपरोक्त पंक्तियां देश की स्थिति को बयान करती हैं। एक देश कितनी तस्वीरें। कभी देश को भावनात्मक रूप से तोड़ने की साजिश हुई।

पूर्वोत्तर से लेकर कश्मीर तक
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तुष्टिकरण के दावे, लावे उफन रहे हैं। उपरोक्त पंक्तियां देश की स्थिति को बयान करती हैं। एक देश कितनी तस्वीरें। कभी देश को भावनात्मक रूप से तोड़ने की साजिश हुई। असम समेत पूर्वोत्तर भारत हिंसा की आग में  बार-बार जला। जम्मू-कश्मीर में भयानक नरसंहार हुए। 1980 के दशक में घाटी ऐसे सुलगी कि अब तक शांत होने का नाम ही नहीं ले रही। देश में कई शहर दंगों के लिए मशहूर हो गए लेकिन भारत का लोकतंत्र इतना मजबूत है कि आज तक भारत को कोई हिला नहीं सका। विवादों का समाधान संवाद के माध्यम से हाे सकता है। संवाद से विवाद खत्म न हो तो न्यायालय के दरवाजे खुले हैं। लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं। विश्व का कोई धर्म हिंसा फैलाने की इजाजत नहीं देता। आग से आग बुझाई नहीं जा सकती, वैसे ही हिंसा को हिंसा से समाप्त नहीं किया जा सकता। हिंसा की लपट अपने-पराये को नहीं देखती।
असम जो बोडो उग्रवादियों की हिंसा से त्रस्त था, उल्फा के बम धमाकों से गूंज उठता था, अलगाववाद के स्वर लगातार बुलंद होते रहे, उसी असम में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोडो शांति समझौता होने की खुशी में शामिल होने पहुंचे तो बोडो लोगों ने हजारों दीपक जलाए। प्रधानमंत्री की जनसभा में रिकार्ड तोड़ भीड़ जुटी। रैली में हथियार छोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल बोडो उग्रवादी भी मौजूद थे। बोडो आदिवासियों ने परम्परागत नृत्य प्रस्तुत किए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जोश से स्वागत किया।
असम में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शुरू हुए विरोध के बाद पहली बार प्रधानमंत्री कोकराझार पहुंचे थे। विरोध प्रदर्शनों के चलते दिसम्बर में प्रधानमंत्री मोदी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की गुवाहाटी में होने वाली मुलाकात को रद्द कर दिया गया था। मोदी गुवाहाटी में आयोजित  खेलो इंडिया यूथ पीस के तीसरे संस्करण के उद्घाटन समारोह में भी नहीं गए थे।
असम में शांति की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी लेकिन असम अब शांत है। बोडो संगठनों ने अलग बोडोलैंड की मांग छोड़ दी है। जो समस्या पिछले 50 वर्षों से हल नहीं हो सकी थी, उसका राजनीतिक समाधान हो गया है। यह बहुत गम्भीर सवाल है कि आखिर पिछले 50 वर्ष में केन्द्र की सरकारों ने क्या किया कि असम बार-बार झुलसता रहा। अब बोडो संगठनों में समझौता असम में एक नई शुरूआत, एक नए सवेरे का प्रेरणा स्थल बना है।
बोडो संगठनों ने शांति का रास्ता चुना है, अहिंसा का मार्ग स्वीकार करने के साथ-साथ भारत के संविधान को स्वीकार किया है। पांच दशक बाद पूरे सौहार्द के साथ उनकी आकांक्षाओं को सम्मान मिला है, यह बहुत बड़ी बात है। महात्मा गांधी ने दुनिया के लिए हिंसा का रास्ता छोड़ अहिंसा की राह पर चलने की प्रेरणा दी है। अहिंसा की राह पर चलते हुए हमें जो भी प्राप्त होता है, वो सभी को स्वीकार होता है।इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के उग्रवादियों, जम्मू-कश्मीर के आतंकवादियों और माओवादियों से बोडो उग्रवादियों से प्रेरणा लेने और मुख्यधारा में लौटने की अपील की। काश कश्मीर घाटी में सक्रिय आतंकवादी संगठन और उनका समर्थक अवाम इस बात को समझे कि लोगों का खून बहाकर, जवानों की हत्याएं कर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। अगर जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की साजिशें नहीं होतीं तो कश्मीर जन्नत बन जाता।
इसमें कोई संदेह नहीं कि सुरक्षा बल लगातार वहां आतंकवादियों का सफाया करने में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अलगाववादी स्वर ठंडे पड़े हुए हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को केन्द्र की हर योजना का लाभ मिलना शुरू हो गया है। अब तक वह उन कल्याणकारी योजनाओं से वंचित थे क्योंकि विशेष राज्य का दर्जा बाधक बना हुआ था। वक्त काफी बदल चुका है। अलगाववादी संगठनों को समझ लेना चाहिए कि कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिशें कभी सफल नहीं होने वालीं। अब तो केवल ऐसे निहित स्वार्थ ही भारतीय राष्ट्र से बाहर प्रभुसत्ता की बात कर सकते हैं जो उग्रवाद के जोरदार कारोबार को बढ़ावा देकर अपनी तिजोरियां भरते रहे हैं।
अगर आज भी कोई भारतीय संविधान से बाहर कश्मीर की प्रभुसत्ता के जबरदस्त धोखे पर आधारित अपना राग अलापता है तो कहना पड़ेगा वह पूरी तरह से बेमानी अपनी विचारधारा को जायज ठहराने का बहाना ढूंढ रहा है। पाक प्रायोजित आतंकवादियों को समझना होगा कि खूनखराबे के लिए उनका इस्तेमाल हो रहा है। बेहतर यही होगा कि वे हथियार छोड़ राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हों। यदि वे ऐसा करते हैं तो पूर्वोत्तर से कश्मीर तक विकास की बयार ही बहेगी और देश शांति से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा, क्योंकि अशांत वातावरण ही विकास के मार्ग में बड़ी बाधा होता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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