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नोटा का सोटा

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08:17 AM Nov 29, 2018 IST | Desk Team

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राज्यों के चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया को बेहतर बनाने के प्रयास कर रहे हैं और हम सबको चुनावों में परिवर्तन भी नजर आ रहा है। पहले महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि राज्य में सभी निकाय चुनाव में यदि ‘नोटा’ को सबसे अधिक मत मिलते हैं तो चुनाव स्थगित करके पुनः चुनाव कराया जाएगा। नोटा यानी नन ऑफ एबब अर्थात इनमेें से कोई प्रत्याशी योग्य नहीं। जो भी मतदाता प्रत्याशी काे भ्रष्ट, अपराधी या ऐसे ही किसी अन्य कारण से मत न देना चाहे तो वे नोटा का बटन दबा सकते हैं। 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि वह इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराना चाहता है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर मतदाताओं को नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का निर्णय किया। इसके बाद निर्वाचन आयोग ने 2013 के विधानसभा चुनावों में इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन में नोटा का बटन उपलब्ध कराया।
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निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया था कि नोटा के मतों की गणना की जाएगी परन्तु इन्हें रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि नोटा से चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दुनिया के कई देशों में चुनावों में नोटा का इस्तेमाल किया जाता है। अगर चुनाव परिणामों पर इसका काेई असर नहीं पड़ता तो फिर नोटा का फायदा ही क्या है? यह बात अक्सर उठाई जाती है लेकिन नोटा मतदाताओं को उम्मीदवारों के प्रति अपनी राय व्यक्त करने का मौका जरूर देता है। अब हरियाणा चुनाव आयोग ने दिसम्बर में पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनाव में नोटा को प्रत्याशी की तरह काउंट करने का फैसला किया है। इसके तहत अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं तो वहां चुनाव पुनः कराया जाएगा। पहली बार वाले प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे तब राजनीतिक दलों को नए प्रत्याशी उतारने होंगे। अभी तक चुनावों में नोटा काे सबसे ज्यादा वोट मिलने पर दूसरे नम्बर पर रहे प्रत्याशी को विजेता घोषित करने का नियम है। मान लीजिये, हरियाणा के नगर निगम चुनावों में किसी प्रत्याशी को 9 हजार वोट मिलते हैं आैर दूसरे को 7 हजार, अगर नोटा को 12 हजार वोट मिलते हैं तो नोटा को भी प्रत्याशी मानते हुए उसे विजेता माना जाएगा आैर चुनाव रद्द कर दिया जाएगा।
लोकसभा आैर विधानसभा चुनावों में नोटा को काफी कम वोट मिलते हैं लेकिन नगर निगम और नगर पालिका चुनाव में मतदाता संख्या अपेक्षाकृत काफी कम होती है। ऐसे में नोटा को ​िकसी उम्मीदवार से ज्यादा वोट मिलने की सम्भावना होती है। राजनीतिक दल नोटा से घबराए हुए हैं। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के सम्पन्न हुए चुनावों में भी नोटा का काफी शोर रहा है। कई क्षेत्रों में लोगों ने ऐसे पोस्टर लगा दिए थे कि ‘‘कृपया वोट मांगने नहीं आएं क्योंकि उनका वोट नोटा काे जाएगा।’’ हरियाणा नगर निगम चुनावों के लिए लिया गया निर्णय भी ऐतिहासिक है। इससे राजनीतिक दलों के सामने ईमानदार और स्वच्छ छवि के प्रत्याशी उतारने का दबाव तो रहेगा ही बल्कि उम्मीदवारों को खुद भी अपनी छवि को स्वच्छ पेश करना होगा। राजनीतिक दल बेहतर प्रत्याशी उतारेंगे। अपराधी प्रवृत्ति के प्रत्याशी चुनाव से बाहर होने लगेंगे। हो सकता है कि भविष्य में नोटा को लेकर लोकसभा चुनाव में भी प्रयोग किए जाएं। लोकसभा चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग को अपनी धारा में परिवर्तन करना होगा। मध्य प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों में नोटा पर 6 लाख 51 हजार वोट पड़े थे। यह वो आंकड़ा था जिसने कई नेताओं का सियासी सफर रोक दिया था। पिछले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में 10 सीटें ऐसी थीं जहां नोटा को 5 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। कुछ सीटों पर नोटा का असर साफ देखा गया था क्योंकि विजेता प्रत्याशी जितने वोटों के अन्तर से जीता उससे कहीं ज्यादा तो नोटा को वोट मिले।
उत्तराखंड में हाल ही में हुए नगर निकाय चुनावों में लोगों ने नोटा का जमकर इस्तेमाल किया। राजस्थान में भी 2013 के चुनावों में नोटा ने हरेक विधानसभा क्षेत्रों में धाक जमाई थी। इस बार के चुनावों में कई सीटों पर कांटे के मुकाबले में नोटा हार-जीत का गणित बिगाड़ सकता है। नोटा के पिछले आंकड़े को अनदेखा करना बड़ी भूल हो सकती है। जयपुर जिला के बगरू विधानसभा क्षेत्र में सर्व समाज संघर्ष समिति ने नोटा प्रचार कार्यालय भी खोल दिया है जो लोगों को नोटा का बटन दबाने के लिए प्रेरित कर रहा है। अब सवाल यह भी है कि एक तरफ हम लोगों को वोट डालने के अ​िधकार के प्रति जनजागरण करते हैं। मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए लोगों काे वोट डालने के प्रति अभियान चलाया जाता है। मताधिकार लोकतंत्र में सबसे बड़ा अधिकार है और दूसरी तरफ हम मतदाता को नोटा का बटन उपलब्ध करा रहे हैं। यह दोनों बातें परस्पर विरोधी हैं। यद्यपि मतदाता का यह ​विवेकाधिकार है कि वह किसी एक को मत देता है या सभी को खारिज कर देता है। सभी दल आशंकित हैं कि कहीं समाज का छोटे से छोटा तबका अगर नोटा का इस्तेमाल करता है तो चुनाव नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। नोटा का सोटा काफी मजबूत हो चुका है और बड़ी मुसीबत पैदा करने वाला साबित हो सकता है। देखना है ​िक पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में नोटा का सोटा क्या रंग दिखाता है।
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