अब दिल्ली से आइजोल दूर नहीं
पूर्वोत्तर राज्यों का लगातार विकास हो रहा है। सरकार की योजनाओं को भी जमीन पर उतारा जा रहा है। उसी के तहत भारतीय रेलवे लगातार रेल नेटवर्क का जाल पूर्वी राज्यों में बिछा रही है। इससे ना सिर्फ कनेक्टिविटी आसान होगी बल्कि पर्यटन, व्यापार और आर्थिक विकास को भी रफ्तार मिलेगी। इससे क्षेत्रीय जीडीपी सालाना 2-3 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना है।" प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बीते दिन सैरांग-आनंद विहार राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत किए जाने के बाद भागलपुर भी मिजोरम से जुड़ गया। शनिवार को चली सैंराग-आनंद विहार राजधानी एक्सप्रेस रविवार को भागलपुर पहुंची। ट्रेन 19 सितंबर से हर शुक्रवार को सैरांग से नियमित चलेगी और प्रत्येक शनिवार को भागलपुर पहुंचेगी।यह ऐतिहासिक क्षण मिज़ोरम की कनेक्टिविटी यात्रा में मील का पत्थर है और देश की “एक्ट ईस्ट नीति” को ज़मीन पर उतारने का एक सशक्त उदाहरण बनकर सामने आया है। 8,070 करोड़ की लागत से बनी यह 51.38 किलोमीटर लंबी रेल लाइन तकनीकी और भूगर्भीय दृष्टि से भारतीय रेल के इतिहास की सबसे जटिल परियोजनाओं में मानी जा रही है।"बैराबी-सैरांग रेल लाइन मिजोरम की नई जीवनरेखा है। इस परियोजना में 48 सुरंगें, 55 बड़े पुल और 87 छोटे पुल शामिल हैं। इनमें से एक पुल 114 मीटर ऊंचा है जो कुतुबमीनार से भी ऊंचा है। यह तकनीकी चमत्कार न केवल आधुनिक इंजीनियरिंग का उदाहरण है, बल्कि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी विकास की राह बनाने का प्रतीक है। राजधानी एक्सप्रेस के शुरू होने से आइजोल देश की राजधानी दिल्ली से सीधे रेल नेटवर्क से जुड़ा, इससे ना सिर्फ यात्रा सुविधाजनक और सुगम होगी, बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी लाभ होगा।"
गौरतलब है कि अभी तक सिर्फ सिलचर तक रेल कनेक्टिविटी थी लेकिन ऐसा पहली बार होगा जब बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन बनने से राजधानी आइजोल आजादी के बाद पहली बार भारतीय रेल नेटवर्क से जुड़ा. वहीं, अरुणाचल, त्रिपुरा, असम के बाद मिजोरम पूर्वोत्तर का चौथा राज्य है जो रेल नेटवर्क से सीधे जुड़ेगा मिजोरम की अर्थव्यवस्था अब तक सड़क परिवहन पर निर्भर थी। सीमित मार्ग और पहाड़ी इलाका हमेशा चुनौती बने रहे। नई रेल लाइन से यह समस्या खत्म होगी और खाद्यान्न, उर्वरक एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुचारु होगी। इससे परिवहन लागत घटेगी और शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार तथा पर्यटन में नई गति आएगी। इस रेल लाइन का विस्तार म्यांमार सीमा तक करने की योजना है। इस रेलवे लाइन की वजह से साल के बारहों महीने माल की ढुलाई हो सकेगी और सड़कों पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। बरसात के सीजन में पहाड़ की मिट्टी धंसने के कारण अक्सर सड़क संपर्क कट जाता है। इससे लागत में तो कमी आएगी ही, कृषि उत्पादों के लिए नए बाजार खुलेंगे और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
पर्यटन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस रेलवे लाइन की वजह से राज्य में पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से आईआरसीटीसी ने बीते महीने मिजोरम सरकार के साथ दो साल के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके तहत असम की राजधानी गुवाहाटी से एक विशेष पर्यटक ट्रेन का आइजाेल तक संचालन किया जाएगा। इससे देशी-विदेशी पर्यटकों को राज्य की संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से रूबरू कराया जा सकेगा। राज्य में धीरे-धीरे पर्यटकों की आवाजाही बढ़ रही है। पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2023-24 के दौरान जहां 2.19 लाख पर्यटक यहां पहुंचे थे वहीं बीते वित्त वर्ष के दौरान यह तादाद 4.70 लाख तक पहुंच गई। अब ट्रेनों का संचालन शुरू होने के बाद इसमें और तेजी की उम्मीद है।
ऐसा होने पर पूर्वोत्तर न केवल देश के अन्य हिस्सों से बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया से भी मजबूत रूप से जुड़ जाएगा। इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सीमा पार सहयोग के नए अवसर पैदा होंगे। इस लाइन से स्थानीय उद्योगों, खासकर बांस आधारित उत्पाद, बागवानी और हैंडीक्राफ्ट को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि अब उत्पाद आसानी से देश के बड़े बाजारों तक पहुंच सकेंगे। भारत सरकार पूर्वोत्तर में चीन की सीमा के पास रेलवे लाइनें बनाने की योजना बना रही है। इसका उद्देश्य रणनीतिक रूप से इन इलाकों में लॉजिस्टिक्स सुविधाओं को बेहतर करना है। इस प्रोजेक्ट पर 300 अरब रुपये (लगभग 3.4 अरब डॉलर) की लागत आएगी और इसे चार साल में पूरा करने का लक्ष्य है। हालांकि भारत और चीन के बीच हाल के साल में संबंधों में सुधार हुआ है लेकिन भारत यह रेलवे विकास दीर्घकालिक रणनीतिक योजना के तहत कर रहा है। पांच साल पहले सीमा विवाद के बाद दोनों देश अब आर्थिक अवसरों और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के तहत बदलते व्यापारिक रुझानों के कारण बेहतर संबंधों की दिशा में बढ़ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रोजेक्ट में 500 किलोमीटर रेलवे ट्रैक बनाए जाएंगे, जिसमें पुल और सुरंगें शामिल होंगी। यह रेल नेटवर्क चीन, बंगलादेश, म्यांमार और भूटान से सटे अलग-थलग पड़े क्षेत्रों को जोड़ेगा। इसका लक्ष्य नागरिकों के लिए बेहतर पहुंच, लॉजिस्टिक्स क्षमता में सुधार और सैन्य तैयारियों को मजबूत करना है। पिछले दस सालों में भारत ने पूर्वोत्तर में 9,984 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया है, जिसमें 1.07 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। इसके अलावा, 5,055 किलोमीटर सड़कें अभी बन रही हैं। साथ ही, 1,700 किलोमीटर रेलवे ट्रैक भी बनाए गए हैं। यह बुनियादी ढांचा प्राकृतिक आपदाओं या सैन्य अभियानों के दौरान तेजी से जवाब देने की क्षमता को बढ़ाएगा। भारत ने उत्तर-पूर्व के इलाके में उन हवाई पट्टियों को फिर से खोल दिया है जो 1962 के युद्ध के बाद से बंद पड़ी थीं। इन्हें एडवांस लैंडिंग ग्राउंड कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल सैन्य हैलीकॉप्टरों और विमानों के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा लद्दाख में भी एलएसी के पास तक रेल लाइन पहुंचाने पर चर्चा चल रही है। अभी भारतीय रेलवे की पहुंच कश्मीर में बारामूला तक हुई है।