अब रेखा की बारी...
रेखा गुप्ता की मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति के बाद उनके समर्थकों और प्रशंसकों के…
रेखा गुप्ता की मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति के बाद उनके समर्थकों और प्रशंसकों के अलावा महिलाओं ने भी इसे अपनी जीत के रूप में देखा और जश्न मनाया। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व द्वारा जब उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया तो आम आदमी पार्टी की निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी ने भी गुप्ता को बधाई दी। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को परे रखते हुए आतिशी ने इसे राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भूमिका के रूप में देखा और कहा कि नेतृत्व की भूमिका में महिलाओं को देखना उत्साहजनक है।
आतिशी ही नहीं, बल्कि कांग्रेस की कुमारी शैलजा और अलका लांबा ने भी श्रीमती गुप्ता को बधाई दी। पार्टीगत भेदभाव से ऊपर उठते हुए लांबा ने गुप्ता के साथ अपनी 1995 की विश्वविद्यालय के दिनों की एक तस्वीर भी साझा की। संख्याओं के खेल की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर श्रीमती गुप्ता वर्तमान में देश की दूसरी महिला मुख्यमंत्री हैं, पहली पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी हैं। दिल्ली के संदर्भ में वे राजधानी की नौवीं मुख्यमंत्री हैं लेकिन चौथी महिला हैं जिन्होंने यह पद संभाला है। इससे पहले भाजपा की सुषमा स्वराज, कांग्रेस की शीला दीक्षित और आम आदमी पार्टी की आतिशी इस पद पर रह चुकी हैं। भाजपा के लिए श्रीमती गुप्ता उनकी दूसरी महिला मुख्यमंत्री हैं, पहली सुषमा स्वराज थीं। साथ ही पार्टी ने 27 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी की है।
महिला शक्ति को केंद्र में रखकर जब यह तय किया जा रहा था कि मुख्यमंत्री पद के लिए कौन उपयुक्त रहेगा, तब माना जा रहा था कि दिल्ली की नई कैबिनेट में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं को शामिल किया जाएगा लेकिन गुप्ता की कैबिनेट ने इन सभी उम्मीदों को तोड़ दिया। उनकी सरकार में छह पुरुष मंत्री हैं और वे अकेली महिला हैं जो इस पुरुष प्रधान टीम का नेतृत्व कर रही हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि पूरी महिला कैबिनेट की उम्मीद थी लेकिन जब महिलाओं के नेतृत्व की इतनी चर्चा हो रही थी तब एक संतुलित महिला प्रतिनिधित्व की अपेक्षा अवश्य थी। इस मामले में निराशा हुई है।
गुप्ता की कैबिनेट में मंजिंदर सिंह सिरसा, आशीष सूद, रविंद्र इंद्राज सिंह, कपिल मिश्रा, पंकज कुमार सिंह और प्रवेश वर्मा शामिल हैं। मंजिंदर सिंह सिरसा, जिनकी घोषित संपत्ति 248 करोड़ है, दिल्ली के सबसे अमीर विधायक हैं और सिख समुदाय से आते हैं। उनके अनुसार, उनका चयन ‘न्यायसंगत’ है क्योंकि दिल्ली की पिछली सरकारों में सिख समुदाय को प्रतिनिधित्व मिलता रहा था लेकिन केजरीवाल सरकार के दौरान यह परंपरा टूट गई थी। सिरसा दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं जिससे उनकी धार्मिक छवि मजबूत बनी हुई है।
पंकज कुमार सिंह का चयन बिहार के मतदाताओं को यह संकेत देने के लिए किया गया है कि भाजपा उनकी आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील है। इसके अलावा वे पूर्वांचली समुदाय से आते हैं जो दिल्ली के 30% मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। 2015 और 2020 में इसी समुदाय के समर्थन ने आम आदमी पार्टी की भारी जीत सुनिश्चित की थी लेकिन इस बार यह समर्थन भाजपा को मिला। आशीष सूद को पंजाबी समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में शामिल किया गया है। उनकी पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के साथ करीबी संबंध भी इसमें सहायक रहे। इस चुनाव में पंजाबी मतदाताओं ने भाजपा को भारी समर्थन दिया और पार्टी ने दिल्ली की 20 पंजाबी बहुल सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की।
रविंद्र इंद्राज सिंह दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि कपिल मिश्रा ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। इस प्रकार सूद, सिंह और मिश्रा जातिगत समीकरणों को संतुलित करते हैं। जहां तक रेखा गुप्ता की बात है तो वे लिंग और जाति-दोनों ही आधारों पर भाजपा की रणनीति में फिट बैठती हैं। एक महिला होने के साथ-साथ वे व्यापारी समुदाय से भी आती हैं। वैश्य जाति से होने के कारण उनका चयन भाजपा के पारंपरिक वोटबैंक—व्यापारी वर्ग के अनुरूप है, जिसने दिल्ली में पार्टी की हालिया जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हालांकि, जाति से अधिक उनके पक्ष में महिला होना कारगर साबित हुआ। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में महिला केंद्रित योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। दिल्ली चुनावों के दौरान भी भाजपा ने महिलाओं के लिए मासिक वित्तीय सहायता, मुफ्त बस यात्रा और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण किट जैसी योजनाओं की घोषणा की थी। इसी कारण गुप्ता के सामने कई वादों को पूरा करने की चुनौती है। निष्पक्ष रूप से देखें तो उन्होंने पदभार संभालते ही तेजी दिखाई है। कुछ ही घंटों के भीतर उन्होंने अपनी पहली कैबिनेट बैठक बुलाई और अहम घोषणाएं कीं। अब देखना यह होगा कि उनके शब्द कितनी जल्दी वास्तविकता में बदलते हैं और क्या वे अपने वादों को पूरा करेंगी या वे केवल घोषणाएं बनकर रह जाएंगी।