अब वक्फ की बारी
भारतीय संसद के दोनों सदनों में लंबी और गहन बहस के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने…
भारतीय संसद के दोनों सदनों में लंबी और गहन बहस के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ ‘संशोधन विधेयक 2025’ पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इसके साथ ही यह विधेयक अब औपचारिक रूप से कानून बन गया है। निम्नलिखित संसद अधिनियम को 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई और इसे सामान्य जानकारी हेतु अधिसूचित किया जाता है।
हालांकि यह प्रक्रिया इतनी सहज नहीं रही। इस विधेयक पर बहस के दौरान तीखी आवाज़ें और उत्तेजनाएं देखने को मिलीं। जहां लोकसभा में इस विधेयक पर 12 घंटे तक बहस चली, वहीं राज्यसभा में यह बहस 14 घंटे तक चली। राज्यसभा में 128 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में और 95 ने विरोध में मतदान किया। लोकसभा में मतदान के आंकड़े इस प्रकार रहे, 288 पक्ष में और 232 विपक्ष में। लोकसभा में इतने छोटे अंतर से पारित होना यह दर्शाता है कि विपक्ष इस विवादास्पद कानून के खिलाफ एकजुट रहा।
वक्फ संपत्तियों में मस्जिदें, मदरसे, शरण गृह और मुसलमानों द्वारा दान में दी गई हजारों एकड़ भूमि शामिल है। इनका प्रबंधन वक्फ बोर्डों द्वारा किया जाता है। इस्लाम की परंपरा के अनुसार वक्फ एक धार्मिक या परोपकारी दान होता है जो मुसलमानों द्वारा समुदाय के कल्याण के लिए दिया जाता है। इन्हें ईश्वर की संपत्ति माना जाता है और इनका न तो विक्रय किया जा सकता है और न ही किसी अन्य प्रयोजन के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
भारत के सबसे बड़े ज़मीन मालिकों में गिने जाने वाले वक्फ की संपत्तियों की संख्या देशभर में लगभग 872351 है, जो 940000 एकड़ से अधिक भूमि पर फैली हुई हैं और जिनकी कीमत खरबों रुपये में आंकी जाती है। जहां सरकार इस विधेयक को वक्फ की संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने वाला और मुस्लिम समुदाय के हित में बताकर उसका बचाव कर रही है, वहीं विपक्ष इसे असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण करार दे रहा है।
कुछ आलोचकों ने यह तक कहा कि यह विधेयक ‘मुस्लिम समुदाय को राक्षसी रूप में प्रस्तुत करने वाला’ है। कुछ ने इसे ‘मौत का झटका’ और अल्पसंख्यकों को समाप्त करने का एक खुला प्रयास बताया और कहा कि यह उनकी स्वायत्तता छीनने की कोशिश है।
हालांकि कई लोगों ने यह स्वीकार किया कि वक्फ संपत्तियों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है परंतु उनका मानना था कि भाजपा सरकार की दुर्भावनाएं इन वास्तविक चिंताओं से कहीं अधिक हैं। इसलिए जबकि मुस्लिम समुदाय सुधार की आवश्यकता को लेकर एकमत है, वे इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि यह सरकार के अंतर्गत कोई वास्तविक सुधार होगा, क्योंकि उन्हें यह शासन मुस्लिम विरोधी प्रतीत होता है। वे इसे पुष्ट करने के लिए कई भेदभावपूर्ण कदमों का उल्लेख करते हैं, जैसे कि शैक्षणिक छात्रवृत्तियों को समाप्त करना, लव जिहाद’ की काल्पनिक कथा, बुलडोजर न्याय, मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार और समुदायों के बीच घृणा और ध्रुवीकरण फैलाने वाली फ़िल्मों का निर्माण। यदि मुस्लिम भावना को आधार माना जाए तो व्यापक परिदृश्य राष्ट्र में घृणा के जानबूझकर और व्यवस्थित प्रसार का है।
इन्हीं परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में वक्फ विधेयक जो अब एक कानून बन चुका है, को एक ऐसा क़दम माना जा रहा है जो दुर्भावनापूर्ण है और जिसका उद्देश्य वक्फ की ज़मीनें और उससे भी महत्वपूर्ण मुसलमानों की वक्फ बोर्डों के माध्यम से की जा रही प्रशासनिक स्वायत्तता को समाप्त करना है।
मुस्लिम समुदाय इन संशोधनों को सुधार की भावना के प्रतिकूल मानता है। इसके विपरीत ये संशोधन अविश्वास को और अधिक बढ़ाते हैं और इस धारणा को पुष्ट करते हैं कि भाजपा सरकार उन्हें निशाना बना रही है। मुसलमानों की व्याख्या के अनुसार, इन संशोधनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वक्फ की ज़मीनें बोर्डों के हाथ में न रहें और सरकार को इन पर अंतिम अधिकार प्राप्त हो।
हालांकि इन आशंकाओं को अतिरंजित भी कहा जा सकता है, मुस्लिम सांसद, राजनीतिक दल इस विचारधारा को बल दे रहे हैं और सरकार को कानूनी एवं सामाजिक दोनों स्तरों पर चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। यह विधेयक पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का सामना कर रहा है, जहां कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने अलग-अलग याचिकाओं के माध्यम से इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं।
इस विधेयक के पारित होने के बाद से ही मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतर आया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने घोषणा की है कि यदि संशोधनों को पूरी तरह से रद्द नहीं किया गया तो उसके विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा। अहमदाबाद, कोलकाता और लखनऊ में लोग सड़कों पर उतरे।
बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) के सदस्यों ने इस विधेयक के समर्थन में पार्टी की भूमिका के विरोध में इस्तीफ़ा दे दिया। अपनी शैली के अनुरूप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि वक्फ बोर्डों द्वारा ‘अवैध रूप से अधिग्रहित संपत्तियों को सरकार ज़ब्त करेगी। यदि रिपोर्टों पर विश्वास किया जाए तो जिलाधिकारियों को ऐसी संपत्तियों की पहचान कर उन्हें ज़ब्त करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
भावनाएं तीव्र हो गई हैं और सरकार का सुधार का रुख शोर-शराबे में कहीं खो गया है। तथापि अपनी संसदीय संख्या के बल पर सरकार को बढ़त प्राप्त है और अब जबकि राष्ट्रपति की स्वीकृति भी विधेयक को मिल चुकी है, केंद्रीय मंत्री अमित शाह के शब्द सत्य प्रतीत होते हैं किसे धमका रहे हो। संसद में यह विधेयक पारित होगा और सभी पर लागू होगा, हर नागरिक को इसका पालन करना होगा।
ऐसे में यह प्रश्न उठाना उचित होगा, क्या यह केवल विधेयक का विरोध है या फिर सरकार के हर क़दम का विरोध। क्या यह तर्क का विषय है या केवल उत्तेजना, क्या यह आंखें मूंद लेने का मामला है, भले ही वक्फ के नाम पर बड़े पैमाने पर दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और अतिक्रमण हो रहा हो और जब मुसलमान स्वयं यह मानते हैं कि वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग हो रहा है तो फिर विरोध क्यों? विश्वास की कमी को देखते हुए मुसलमानों का असुरक्षित महसूस करना और इन संशोधनों को केवल दिखावा मानना स्वाभाविक है। तथापि सरकार का वक्फ संपत्तियों को डिजिटाइज़ करना, दस्तावेज़ीकरण की प्रक्रिया को मज़बूत करना और वक्फ बोर्डों में महिलाओं को शामिल करने जैसे क़दम सराहना योग्य हैं। इसके विपरीत वक्फ बोर्डों में ग़ैर मुसलमानों की नियुक्ति वक्फ विवादों में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति, जबकि पूर्व में वक्फ न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम माना जाता था और वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण में सरकार की बढ़ती भूमिका ये सभी मुद्दे विवाद का विषय बने हुए हैं।