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अब पप्पू नहीं ‘डायनमिक राहुल’ ​कहिए

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12:40 AM Jan 20, 2019 IST | Desk Team

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एक व्यक्ति अकेला खड़ा था। इतने में एक दूसरा आदमी उसके पास आया और तपाक से एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया। पास में ही एक अन्य व्यक्ति खड़ा था। किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। थप्पड़ मारने वाला व्यक्ति चला गया, वह दोबारा आया और इस बार फिर से दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवां थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ खाने वाला व्यक्ति फिर भी चुप था लेकिन पास में खड़ा व्यक्ति बोल उठा, ”अबे मार डालेगा क्या? अपने आपको क्या समझता है तू?’’ उस व्यक्ति ने इतना भर कहा कि वह यह थप्पड़ डिजर्व करता था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में पिछले चार साल से जितनी फायरिंग भाजपा ने की है, उतनी किसी और ने नहीं की। भाजपा के बड़बोले नेताओं ने राहुल को ‘पप्पू’, ‘शहजादा’, ‘अनाड़ी’ और ‘बुद्धू’ नाम दिया था।

शुरूआत में पप्पू-पप्पू के ये गोले जो भाजपा ने ही उस पर फैंके वह झेलता रहा और चुप रहा, लेकिन पास खड़े लोग अब प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगे हैं। अब यही कल का पप्पू राष्ट्रीय राजनीति में अपना कद इतना ऊंचा कर चुका है कि 2019 के आम चुनावों में राहुल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समकक्ष माना जा रहा है। तमाम बड़े-बड़े राजनीतिक सर्वे में पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी में ही तुलना की जाने लगी है। सच यही है कि बार-बार हमला करते हुए कोस-कोस कर भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी को एक स्थापित नेता बना दिया है। जब से कांग्रेस आलाकमान ने राहुल गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है तब से ही उनके नेतृत्व में कांग्रेस की सीटें बढ़ी हैं और राज्यों में भी कांग्रेस ने अपना डंका बजाया है।

राजनीति के चतुर लोग कह रहे हैं कि राहुल जो भी था, उसे तराशा तो भाजपा ने ही है। लानतों और आरोपों के थपेड़े खाकर कल का राहुल एक बड़ा नेता बन चुका है और भारतीय लोकतंत्र की यह कहानी कहां तक आगे बढ़ती है अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन राहुल गांधी ने एक जुझारू नेता की छवि बनाई है। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी को भाजपा नेताओं के बोल-वचन का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिसने उन्हें आज प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करने को मजबूर कर दिया और प्रतिक्रिया भी ऐसी कि राहुल जो कुछ कहता है लोग उनकी बात सुनते हैं और गंभीरता से भी लेते हैं। भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान यही है कि यहां हर किसी को बोलने की आजादी है। संसद में प्रतिपक्ष और सत्तापक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप आम बात है। सब जानते हैं कि लोकसभा में पीएम मोदी और राहुल के बीच कितने जबर्दस्त शब्दबाण चलते हैं।

वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ राहुल का शब्द टकराव किसी से छिपा नहीं है और अब तो कांग्रेस अध्यक्ष की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण से राफेल पर लोकसभा में चली जंग हर किसी ने देख ली है। इसके बावजूद राहुल गांधी की खूबी यह है कि वह इंसानियत और नैतिकता नहीं भूलते। यही चीज उन्हें एक अलग श्रेणी में रख रही है। वित्तमंत्री अरुण जेटली का अचानक अमेरिका जाना और इसके तुरंत बाद राहुल गांधी का यह कहना कि अरुण जेटली शीघ्र-अतिशीघ्र उपचार के बाद लौटकर घर आएं, उसके लिए मेरी शुभकामनाएं। उनका यह ट्वीट सबसे पहले आया और इसके बाद अनेक बड़े नेताओं ने जेटली के शीघ्र स्वस्थ होने की शुभकामनाएं दीं। कुल मिलाकर संसद से सड़क तक राहुल गांधी ने अपनी एक छवि बना ली है। आजकल सोशल मीडिया पर जो कुछ लोग शेयर कर रहे हैं वो बार-बार यही कह रहे हैं कि भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी और उनकी फैमिली के बारे में जिस तरह से विशेष रूप से खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आरोपबाजी के बम फैंके हैं, उसने ही राहुल को निखारा है।

सत्ता में बड़े पदों पर बैठे हुए लोग बहुत कुछ इग्नोर करते हैं लेकिन भाजपा में तो संगठन और सरकार के सभी लोगों ने सोनिया, राहुल और यहां तक कि स्वर्गीय राजीव गांधी, श्रीमती इंदिरा गांधी और पंडित नेहरू तक पर भी शब्दबाण चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसीलिए जब आप राहुल गांधी के बारे में टिप्पणियां करते हैं तो पास खड़ा व्यक्ति प्रतिक्रिया देने लगता है। जब जनता आपको कही जाने वाली बात पर अपनी भावनाएं देने लगती है तो आगे चलकर वोटतंत्र में आपको इसका लाभ मिलता है। यह बात भाजपा के रणनीतिकारों को समझ जानी चाहिए, ऐसी बातें सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से खूब शेयर कर रहे हैं। जिस तरह से राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने पंजाब में सरकार बनाई, उसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वापसी की उससे यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि राहुल गांधी में लड़ने का पूरा माद्दा है। जिस तरह से उन्होंने डेढ़ वर्ष पहले कर्नाटक में भाजपा के संख्या बल पर नंबर 1 रहते हुए सरकार बनाई, इसी के दम पर गुजरात में भी उनकी परफॉर्मेंस कमाल की थी। आने वाले 2019 के लोकसभा चुनावों में आज की तारीख में गठबंधनों का दौर चल रहा है।

चाहे वह गठबंधन बिहार का हो या दक्षिण या फिर पूर्वोत्तर में, राहुल बराबर केंद्र बिन्दू बने हुए हैं। यह बात अलग है कि यूपी में राहुल सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा नहीं बन सके परंतु इसके बावजूद उन्होंने उसी यूपी में अकेले दम पर चुनाव में उतरने का ऐलान करते हुए वर्करों को डट जाने का आह्वान किया है। यह बात आजकल खूब शेयर की जा रही है कि कल तक व्हाट्सएप पर सबसे ज्यादा जो तंज राहुल गांधी पर कसे जाते थे और लोग हंसते थे आज यही काम भाजपा नेताओं के साथ हो रहा है, सोशल साइट्स पर भाजपा नेता राहुल की बजाय लोगों के क्रोध के निशाने पर जरा ज्यादा ही हैं। एक वही नेेता लोकप्रियता हासिल कर सकता है जो हर एक को अपने साथ रखकर चलता हो और लोगों के बीच जाता हो। अब इस कड़ी में हम राहुल के हिन्दुत्व की बात करते हैं, जिसके आधार पर उन्होंने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और चर्चों में एक अच्छे इंसान की हैसियत से जाना शुरू किया।

ऐसे में वो मानसरोवर जाएं या कहीं और, यह उनका निजी मामला है लेकिन भाजपा ने इसे राजनीति से जोड़कर आग से खेलने का परिणाम क्या होता है, यह देख लिया होगा, ऐसी बातें अगर सोशल मीडिया पर उभर रही हैं तो भाजपा के लिए सचमुच यह अलार्म का वक्त है। ​िवश्व विजयी सिकंदर और राजा पोरस की कहानी किसी से छिपी नहीं है कि जब सिकंदर ने पोरस को पराजित कर बंदी बना लिया और पूछा कि बताओ तुम्हारे साथ क्या बर्ताव किया जाना चाहिए? पोरस ने डटकर कहा कि वही जो एक राजा दूसरे राजा से करता है। यह उदाहरण आज के परिवेश में राहुल गांधी और भाजपा के बड़े नेताओं के संदर्भ में दिया जा सकता है।

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