For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

अब राम नाम भी विवादों के घेरे में

04:59 AM Feb 12, 2024 IST | Shera Rajput
अब राम नाम भी विवादों के घेरे में

विवाद हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का एक अनिवार्य अंग बन चले हैं। विवादों के इस कोरोना-शैली के रोग से न तो राम का नाम बचा और न ही ‘भारत रत्न’ सरीखे सम्मान। विवादों के यह बवंडर सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ ही चलने लगते हैं और अखबारी या टीवी चैनलों की ‘ब्रेकिंग न्यूज’ के आखिरी बुलेटिन तक जारी रहते हैं। बेरोजगारी हो तो विवाद, रोज़गार की नई खिड़कियां खुलें तो विवाद। अब ईश्वरीय प्रार्थनाएं भी विवादों के घेरे में हैं।
अब विवाद इस बात को लेकर है कि ‘रघुपति राघव राजा राम’ भजन किसने लिखा और इसका मूल स्वरूप कब और क्यों बदला गया। इस संकीर्तन-भजन को यद्यपि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जन-जन के जीवन का अंग बनाया लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अब आरोप है कि वह गीत, वह भजन, मूल रूप में पंडित विष्णु दिगम्बर प्लुसकर ने संगीत के स्वरों में पहली बार देश को नमक सत्याग्रह के समय दिया था। एक मान्यता यह है कि इसे मूल रूप में गोस्वामी तुलसीदास ने रचा था, जबकि एक अन्य मान्यता यह है कि इसे ‘श्री नाम नारायणम’ के स्त्रोत से लक्ष्मणाचार्य ने इस गीत को गाया था। तीसरी मान्यता यह है कि इसे 17वीं शताब्दी में मराठी-कवि रामदास ने लिखा था।
अब विवाद यह है कि इसके मूल स्वरूप को नए रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रस्तुतकर्ताओं का कहना है कि इसमें ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम...’ वाली पंक्ति थी ही नहीं। इसे बाद में जोड़ा गया। मूल स्वरूप इस प्रकार था ः
रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम
सुन्दर विग्रह मेघश्याम गंगा तुलसी शालिग्राम
भद्र गिरीश्वर सीताराम भगत जनप्रिय सीताराम
आरोप यह है कि इसे महात्मा गांधी के समय में मुस्लिम समुदायों की तुष्टि के लिए बदला गया था और ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,सबको सन्मति दे भगवान’ मूल भजन का अंग ही नहीं था लेकिन इतना सभी स्वीकारते हैं कि बापू का उद्देश्य स्वाधीनता-संग्राम के दिनों में सर्वधर्म समभाव और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था। वह यह भी चाहते थे कि यह रामधुन धर्मनिरपेक्ष हो।
दोनों स्वरूपों को मूल रूप में प्रस्तुत करना भी प्रासंगिक होगा-
मूल- रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
सुन्दर विग्रह मेघ-श्याम
गंगा तुलसी शालिग्राम
भक्त जनाप्रिय सीताराम
भक्त गिरीश्वर सीताराम
जानकी रमणा सीताराम
जय जय राघव सीताराम
बापू गांधी के नाम पर प्रस्तुति ः
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीता राम
सीताराम सीताराम
भज प्यारे तू सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
सबको सन्मति दे भगवान
राम रहीम करीम समान
हम सब हैं इनकी संतान
मूल में बदलाव का विरोध करने वाले यह भी तर्क देते हैं कि बापू सर्वधर्म समभाव के नाम पर किसी इस्लामी प्रार्थना में कोई बदलाव लाने का प्रयास भी करते तो इसे मुस्लिम समाज द्वारा कदापि सहन नहीं किया जा सकता था। निस्संदेह रामधुन के कई संस्करण अब सामने आने लगे हैं। गांधी ने जिस संस्करण, जिस स्वरूप को अपनाया, वह भारतीय समाज को धर्मनिरपेक्ष एवं सामग्र दृष्टि वाला प्रयास था। शायद इसीलिए 1930 के नमक-सत्याग्रह के समय इसे गाया गया था। उसके बाद यह गीत, गांधी की हर सायं की प्रार्थना सभा का नियमित अंग बन गया था और स्वतंत्रता संग्राम के लगभग हर सत्याग्रह में इसे इसी रूप में गाया जाने लगा था।
समावेशिका की बात करें तो ‘रघुपति राघव’ सभी धार्मिक सीमाओं से परे है। जहां बिस्मिल्लाह खान ने इसे शहनाई पर एक आनंददायी रूप में प्रस्तुत किया, वहीं दिवंगत सितार वादक उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खान ने भी इसे अपना संगीतमय स्पर्श दिया। उनके बेटे प्रसिद्ध सितारवादक जुनैन खान भी इसी का अनुसरण करते हैं। उनका मानना है कि यह भजन भारतीय आध्यात्मिकता का शिखर और बहुलवाद का सबसे बड़ा उदाहरण है। अभी सुबह खमाज की खोज करते समय मैं अनायास ही ‘रघुपति राघव’ के क्षेत्र में प्रवेश कर गया। क्या संयोग है। जुन्नैन धमकता है। उनका मानना है कि भजन में एक अकथनीय समरसता है। अपनी आत्मकथा, ‘सत्याना प्रयोगों (सत्य के साथ मेरे प्रयोग) में, गांधी जी अपनी नानी रंभा की याद दिलाते हैं, जिन्होंने उन्हें डर और असुरक्षा के मद्देनजर ‘राम नाम’ का जाप करना सिखाया था। अंत तक यही उनका आध्यात्मिक आधार बना रहा। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भजन ने उनकी आत्मा को छू लिया था।’
बांसुरी वादक पंडित नित्यानंद हल्दीपुर का कहना है कि यह भजन शास्त्रीय राग और ‘खमाज’ की बारीकियों का भी प्रतीक है और हल्के रागों का भी प्रतीक है। कोई अतिशयोक्ति नहीं, इस भजन में श्रोता को सचमुच समाधि में ले जाने की अनोखी और अवर्णनीय शक्ति है। यह राग और खमाज की बारीकियां, दोनों हल्के रागों का प्रतीक है।’ बहरहाल, अब यह लोकप्रिय भजन भी खींचतान व विवादों के घेरे में है।

- डॉ. चन्द्र त्रिखा

Advertisement
Advertisement
Author Image

Shera Rajput

View all posts

Advertisement
×