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मोटापे का श्राप

06:42 AM Jul 11, 2025 IST | Kumkum Chaddha
मोटापे का श्राप

वज़न कम करना अब सिर्फ बाहरी रूप या सौंदर्य से जुड़ी कोई सनक नहीं रह गयी है, न ही यह अब केवल ‘साइज ज़ीरो’ जैसी दिखने की चाह तक सीमित है। यह उससे कहीं अधिक गंभीर और व्यापक विषय बन चुका है। यह अब अच्छे स्वास्थ्य और शरीर से अनावश्यक व हानिकारक चर्बी को कम करने की दिशा में एक ज़रूरी प्रयास है। यह मधुमेह और उससे जुड़ी अन्य समस्याओं को रोकने या देर से उत्पन्न होने से बचाने के बारे में है। तो अब सवाल यह उठता है कि व्यक्ति क्या करे? क्या उस वज़न तुला को एक ओर रख दे जो बार-बार मनचाही संख्या दिखाने से इनकार करता है? या फिर लगातार उस पर चढ़ता रहे और हर बार निराश होकर उतरता रहे? यह बात सच है कि भारत में बड़ी संख्या में लोग मोटापे से जूझ रहे हैं। वे वज़न घटाने के लिए जी-जान से कोशिश करते हैं, पर अधिकांश प्रयास असफल हो जाते हैं।
भारत में महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 1.2% थी, जो 2022 में बढ़कर 9.8% हो गई। पुरुषों में यह दर 0.5% से बढ़कर 5.4% हो गई। लैंसेट की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार भारत में मोटापे की स्थिति चिंताजनक है, शहरी आबादी का लगभग 70% हिस्सा अधिक वजन वाला है। विश्व स्तर पर अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे स्थान पर है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 24% से अधिक महिलाएं और 23% पुरुष अधिक वज़न या मोटापे की श्रेणी में आते हैं। शहरी क्षेत्रों में मोटापा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक पाया जाता है, विशेषकर महिलाओं में। मोटापा कई गंभीर बीमारियों जैसे मधुमेह और हृदय रोगों का एक प्रमुख जोखिम कारक है। अब सवाल उठता है, मोटापा है क्या और इसे मापा कैसे जाता है? विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का बॉडी मास इंडेक्स जो शरीर में वसा का अनुमानित माप होता है, 30 या उससे अधिक हो, तो उसे मोटापे की श्रेणी में रखा जाता है। बॉडी मास इंडेक्स की गणना व्यक्ति की ऊंचाई और वज़न के आधार पर की जाती है।
ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं कि मौंजारो न केवल रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। बल्कि भूख को भी कम करता है, जिससे वज़न में कमी आती है। एक अन्य महत्वपूर्ण औषधि है सेमैग्लूटाइड, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भिन्न नामों से जानी जाती है और हाल ही में भारत में उपलब्ध कराई गई है। इन औषधियों को लेकर चिकित्सा क्षेत्र में विशेष चर्चा हो रही है और देश के प्रमुख अंतःस्रावी विशेषज्ञ, जैसे डॉ. अम्बरीश मित्तल इन्हें मधुमेह एवं वज़न नियंत्रण के लिए उपयोगी बता रहे हैं।

डॉ. मित्तल ने इन औषधियों के माध्यम से वज़न प्रबंधन पर एक पुस्तक भी लिखी है, जिसमें उन्होंने इनके लाभों के साथ-साथ संभावित हानियों का भी विस्तार से उल्लेख किया है। वे स्पष्ट रूप से चेतावनी देते हैं कि इन औषधियों का सेवन केवल चिकित्सक की देखरेख में किया जाना चाहिए न कि केवल सुविधा या आकर्षण के चलते। ये औषधियां दोनों ही प्रकार के प्रभाव रखती हैं, कुछ लाभकारी, तो कुछ संभावित हानिकारक भी। ये नई पीढ़ी की औषधियां भूख को अत्यधिक रूप से कम करती हैं और रोगियों को बिना बार-बार भूख लगे, आहार में आवश्यक परिवर्तन अपनाने में सहायता करती हैं लेकिन इनसे जुड़े दुष्प्रभाव भी हैं। सबसे प्रमुख रूप से मांसपेशियों की क्षति तथा औषधि बंद करने के बाद वज़न का पुनः बढ़ना। यदि डॉ. मित्तल से पूछा जाए, तो वे कहते हैं कि जब भी वज़न घटता है, कुछ मात्रा में मांसपेशियां भी कम होती हैं।

यदि कोई व्यक्ति 15 किलोग्राम वज़न कम करता है, तो उसमें लगभग 4 किलोग्राम मांसपेशियों का नुकसान संभव है, जो कि अत्यधिक है। उनके शब्दों में ‘समस्या तब उत्पन्न होती है जब आप वज़न घटाते हैं और फिर वह वापस आ जाता है। जो वापस आता है वह केवल चर्बी होती है, मांसपेशियां फिर से नहीं बनतीं। यदि कोई व्यक्ति इस चक्र से तीन बार गुज़रता है, तो मांसपेशियों का अत्यधिक नुकसान होता है और चर्बी फिर से जमा हो जाती है। अतः शक्ति बढ़ाने वाले व्यायाम और पर्याप्त प्रोटीन का सेवन अनिवार्य है। हालांकि इन औषधियों को लेकर कुछ आशाएं भी जुड़ी हुई हैं। मांसपेशियों को सुरक्षित रखने वाली दवाओं पर शोध चल रहा है और यदि यह सफल होता है, तो यह पूरे उपचार पद्धति के लिए एक परिवर्तनकारी क्षण साबित हो सकता है। फिर भी, इस कमी के बावजूद इन औषधियों के लाभ उनके संभावित जोखिमों की तुलना में कहीं अधिक हैं। रिपोर्टों में यह संकेत मिला है कि आने वाले समय में ऐसी अनेक औषधियां उपलब्ध होंगी जो अधिक जटिल या शरीर पर प्रभाव डालने वाली नहीं होंगी और उपयोग में आसान भी होंगी।

फिर भी चिंताजनक पहलू यह है कि इनके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं। मितली आना, पाचन संबंधी समस्याएं, कब्ज़, पित्ताशय में पथरी और दस्त। चेतावनी यही है कि इनका सेवन केवल योग्य चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए। साथ ही, जिन व्यक्तियों को थायरॉयड कैंसर या अग्न्याशयशोथ (पैंक्रियाटाइटिस’ का पूर्व इतिहास रहा हो, उनके लिए ये औषधियां उपयुक्त नहीं हैं। एक और गंभीर बात यह है कि ये औषधियां सभी पर समान रूप से प्रभाव नहीं दिखातीं, कुछ लोगों को वज़न घटाने में अपेक्षित लाभ नहीं मिलता। इनका उपयोग अकेले करना या वे लोग जो वास्तव में इन औषधियों के ज़रूरतमंद नहीं हैं, यदि इन्हें केवल दिखावे के लिए ले रहे हैं और फिर मनमाने ढंग से बंद कर रहे हैं तो यह अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

एक अन्य नकारात्मक पक्ष यह है कि जैसे ही इन औषधियों का सेवन बंद किया जाता है, वज़न दोबारा बढ़ने की आशंका रहती है। सीधे शब्दों में कहें तो ये औषधियां केवल तब तक प्रभावी रहती हैं जब तक इनका नियमित सेवन किया जाए। सेवन बंद होते ही वज़न पुनः बढ़ सकता है। इसके अतिरिक्त ये कोई तीन माह का सीमित उपचार नहीं है। विशेषज्ञों का मत है कि जो व्यक्ति इन दवाओं का सेवन आरंभ करता है, उसे कम से कम एक से दो वर्षों तक नियमित रूप से इनका सेवन करना होता है, और कुछ मामलों में यह जीवन भर की दवा भी बन सकती है। इसलिए भले ही इन औषधियों को लेकर काफी उत्साह और चर्चा हो रही हो, यह समझना आवश्यक है कि ये कोई ‘जादुई दवाएं’ नहीं हैं जिन्हें मात्र ‘साइज़ ज़ीरो’ की चाह में अपनाया जाए। इनका सेवन केवल तभी किया जाना चाहिए जब चिकित्सक द्वारा आवश्यकता के अनुसार सलाह दी जाए केवल इसलिए नहीं कि व्यक्ति वज़न घटाना या बेहतर दिखना चाहता है। ऐसे लक्ष्यों के लिए आहारए व्यायाम और जीवनशैली में सुधार जैसे उपाय कहीं अधिक सुरक्षित और प्रभावशाली हैं।

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