भारत में मोटापा एक गम्भीर समस्या
भारत में एक जमाने में मोटापे को समृद्धि की निशानी माना जाता था और कहा जाता था…
भारत में एक जमाने में मोटापे को समृद्धि की निशानी माना जाता था और कहा जाता था कि ऐसे लोग ‘खाते-पीते परिवार’ से होते हैं। हिंदी फिल्मों में भी यही दिखा दिखाया जाता था कि गरीब इंसान दुबला-पतला होता था और गांव के ‘सेठ’ और जमींदार मोटे होते थे लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं और अब जो गरीब लोग हैं उनका वजन ज्यादा होता है और जो लोग आर्थिक रूप ये समृद्धि होते हैं वो फिट होते हैं और उन्हें मोटापा नहीं होता और इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे देश का बदलता खानपान। आपने हमारे देश में ऐसे कई पुलिस वाले देखे होंगे जिनकी तोंद होती है और जो मोटे होते हैं। बचपन में मोटापे के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है, जहां 1.4 करोड़ से ज़्यादा बच्चे मोटापे से प्रभावित हैं। “हम अक्सर अपने मोटे बच्चों पर गर्व करते हैं लेकिन हमें इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। केंद्रीय मोटापा, विशेषकर भारतीयों में एक स्वतंत्र एवं गंभीर स्वास्थ्य जोखिम कारक है।” मोटापा गैर-संचारी बीमारियों जैसे कि टाइप-2 मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियों और फैटी लीवर बीमारियों में महत्वपूर्ण योगदान देता है, इसलिए निवारक उपाय करना अनिवार्य है।
अध्ययनों मेे कहा गया है कि दुबले-पतले दिखने वाले भारतीयों में पश्चिमी समकक्षों की तुलना में आंतरिक वसा का प्रतिशत अधिक होता है। उन्होंने कहा कि हमारे पारम्परिक परिधान केंद्रीय मोटापे को छिपा सकते हैं लेकिन इससे जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को समाप्त नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 2050 तक 44 करोड़ भारतीय मोटापे से ग्रस्त होंगे। उन्होंने इन आंकड़ों को चौंकाने वाला और खतरनाक बताया। उन्होंने स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों के साथ ही मोटापे की बीमारी का विशेष रूप से उल्लेख किया।
इसका मतलब है कि हर 3 में से एक व्यक्ति ओबेसिटी की वजह से गंभीर बीमारियों की चपेट में आ सकता है, ये मोटापा जानलेवा बन सकता है। यानी हर परिवार में कोई एक व्यक्ति ओबेसिटी का शिकार होगा, ये कितना बड़ा संकट हो सकता है। हमें अभी से ऐसी स्थिति को टालने का प्रयास करना ही होगा।
विश्व मोटापा संघ का अनुमान है कि भारत में बचपन के मोटापे में वार्षिक वृद्धि दुनिया में सबसे अधिक है। वयस्कों और बच्चों में अधिक वजन और मोटापा पिछले 15 वर्षों में दोगुना हो गया है और पिछले तीन दशकों में तीन गुना हो गया है।
द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी (2023) में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि भारत में 20 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों में हर तीसरे (35 करोड़) में से एक को पेट का मोटापा है, हर चौथे व्यक्ति (25 करोड़) में से एक को सामान्य मोटापा है और हर पांचवें व्यक्ति (21 करोड़) में से एक को रक्त कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर है। अध्ययनों से पता चलता है कि मोटापे को बढ़ाने वाले कई कारक हो सकते हैं। लाइफ स्टाइल और आहार में गड़बड़ी के अलावा कई अन्य कारक भी आपके वजन को बढ़ाने वाले हो सकते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, जो लोग शारीरिक रूप से कम सक्रिय रहते हैं उनमें मोटापे का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा में टेक्नोलॉजी पर बढ़ती हमारी निर्भरता के कारण भी वजन बढ़ने का जोखिम बढ़ गया है। स्क्रीन टाइम यानी मोबाइल-लैपटॉप, टीवी जैसे उपकरणों पर बीतने वाला समय हमें शारीरिक रूप से निष्क्रिय बनाता जा रहा है। ऐसे में शारीरिक सक्रियता, व्यायाम में कमी जैसी दिक्कतें बढ़ रही हैं जो सीधे तौर पर मोटापे के खतरे को बढ़ाने वाली मानी जाती हैं। आज हमारे देश में ताजा खाना महंगा है और पैकेट वाला प्रोसेस्ड खाना सस्ता है। जैसे शाकाहारी थाली 120 रुपये की है जबकि बर्गर 50 रुपये का है और पिज्जा 70 रुपये का है। इसी तरह आज अगर कोई व्यक्ति बाजार से ताजे आलू खरीदकर उसकी सब्जी बनाकर खाता है तो उस सब्जी को बनाने का खर्च 25 से 30 रुपये होगा जबकि इसी आलू के चिप्स का एक पैकेट 10 रुपये में मिल जाता है और यही कारण है कि आज हमारे देश में लोग ताजा, पके खाने से दूर हो रहे हैं और पैकेट वाला प्रोसेस्ड खाना खा रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में भारत में जंक फूड की बिक्री 3 गुना बढ़ गई है और वर्ष 2022 में भारत के लोगों ने ढाई लाख करोड़ रुपये का जंक फूड खाया था और यह काफी चिंता का विषय है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर मोटापे की समस्या को उठाया है और एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि 2050 तक 44 करोड़ भारतीय मोटापे से ग्रस्त होंगे। उन्होंने इन आंकड़ों को चौंकाने वाला और खतरनाक बताया है, इसलिए प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि लोगों के खाने में तेल कम करना मोटापा कम करने की दिशा में ये बहुत बड़ा कदम होगा। जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से बचने के लिए शारीरिक गतिविधियां बढ़ाने, आहार संबंधी आदतों को बदलने, धूम्रपान बंद करने और पौष्टिक भोजन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। जीवनशैली में बदलाव करके मोटापे से मुकाबला किया जा सकता है। स्कूलों में पोषण शिक्षा कार्यक्रम लागू करने से भी मोटापे की समस्या का एक हद तक मुकाबला किया जा सकता है। साथ ही मोटापे की समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक योजना बनाने की ज़रूरत है।