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तेल, सोना और सरकार

केन्द्र सरकार ने पैट्रोल-डीजल के निर्यात पर टैक्स लगा दिया है। यहां तक कि कच्चे तेल से मिलने वाले लाभ पर भी टैक्स वसूला जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने सोने के आयात पर भी शुल्क बढ़ा दिया है।

01:35 AM Jul 03, 2022 IST | Aditya Chopra

केन्द्र सरकार ने पैट्रोल-डीजल के निर्यात पर टैक्स लगा दिया है। यहां तक कि कच्चे तेल से मिलने वाले लाभ पर भी टैक्स वसूला जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने सोने के आयात पर भी शुल्क बढ़ा दिया है।

केन्द्र सरकार ने पैट्रोल-डीजल के निर्यात पर टैक्स लगा दिया है। यहां तक कि कच्चे तेल से मिलने वाले लाभ पर भी टैक्स वसूला जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने सोने के आयात पर भी शुल्क बढ़ा दिया है। सरकार द्वारा लगाए गए कर और शुल्क से रिलायंस, नयारा, वेदांता समेत सभी तेल निर्माताओं की कमाई कम हो जाएगी। नयारा पर तो रूसी तेल कम्पनी रोसनफेट का आंशिक स्वामित्व है। सरकार की घोषणा के बाद शेयर बाजार में रिलायंस के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली, वहीं मंगलोर रिफाइनरी और पैट्रो कैमिकल्स के शेयरों में भी गिरावट आई। सरकार के फैसले के बाद इंडियन आयल हिन्दुस्तान पैट्रोलियम जैसी कम्पनियों के शेयर चढ़े हैं। 
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केन्द्र सरकार द्वारा कर लगाने का कदम पहली नजर में उचित प्रतीत हो रहा है। सरकार ने कुछ नए नियम भी बनाए हैं जिसके तहत गैसोलीन का निर्यात करने वाली तेल कम्पनियों को इस वित्त वर्ष में देश के बाहर बेचे गए गैसोलीन की कुल मात्रा के 50 फीसदी के बराबर मात्रा में गैसोलीन देश के भीतर भी बेचना होगा। डीजल के लिए अनिवार्यता कम से कम 30 फीसदी कर दी गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जहां दुनिया तेल की बढ़ती कीमतों से परेशान है, वहीं भारत की बड़ी तेल कम्पनियों का जैकपॉट लग गया है। भारत की तेल कम्पनियां विश्व बाजार में सर्वोत्तम क्वालिटी का माने जाने वाले रूसी यूराल ईंधन तेल को भारी मात्रा में खरीद रही है और इसे एशिया और अफ्रीका के बाजारों में उच्च अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों पर बेच रही है। भारतीय कम्पनियां लगातार मालामाल हो रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध काफी लम्बे समय से चल रहा है और युद्ध जल्दी खत्म होने के आसार भी नहीं हैं। 
भारत कभी रूस से तेल का बड़ा खरीददार नहीं रहा।  रूस से भारत में तेल आने में 45 दिन का समय लग जाता है। तेल का यह परिवहन काफी महंगा पड़ता है। जबकि मध्यपूर्व के देशों में तेल खरीदना इसलिए प्राथमिकता रहा है क्योंकि वहां से तेल कुछ ​िदनों में ही भारत पहुंच जाता है। अब क्यों​िक अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के चलते रूस रियायती दरों पर तेल बेच रहा है। भारतीय कम्पनियों को 30-40 डालर के बीच छूट मिल रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस और नायरा जैसी प्राइवेट कम्पनियों ने पिछले महीने अनुमानित 250,000 बैरल प्रतिदिन तेल रूस से खरीदा है। हुआ यह कि निजी तेल कम्पनियों ने देश में तेल आपूर्ति पर ध्यान देना बंद कर दिया और सारा का सारा जोर मुनाफा कमाने में लगा दिया। निजी कम्पनियों ने स्थानीय स्तर पर तेल की बिक्री लगभग बंद ही कर दी। हुआ यह कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और कुछ राज्यों में तेल संकट खड़ा हो गया। लोगों को पैट्रोल पम्पों से तेल नहीं मिल रहा था। इससे पहले केन्द्र सरकार ने बढ़ती महंगाई को देखते हुए पैट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी जिस कारण सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ। यह एक सच्चाई है कि प्राइवेट सैक्टर वहीं निवेश करता है जहां उसे लाभ होने की उम्मीद होती है। कोरोना  काल के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को राजस्व की जरूरत है। ऐसे में मालामाल हो रही कम्पनियों पर कर लगाने से सरकार को सालाना 7 हजार करोड़ से अधिक की कमाई होगी। उम्मीद है कि देश में पैट्रोलियम उत्पादों की सप्लाई सुनिश्चित होगी।
सरकार ने सोने के आयात पर लगाम लगाने और चालू खाता घाटे को बढ़ने से रोकने के लिए इस मूल्यवान धातु पर आयात शुल्क बढ़ाकर 15 फीसदी कर ​िदया है। इससे पहले सोने पर मूल सीमा शुल्क 7.5 फीसदी था,  जो अब 12.5 फीसदी होगा। 2.5 फीसदी के कृषि अवसंरचना विकास उपकर के साथ सोने पर प्रभावी सीमा शुल्क 15 फीसदी होगा। भारतीयों को सोना बहुत प्यारा लगता है। भारत में सोने का उत्पादन तो होता नहीं इसलिए सोना आयात किया जाता है। हाल ही के महीनों में सोने के आयात में बढ़ौतरी देखी गई। इस वर्ष मई में ही कुल 107 टन सोना आयात किया गया और जून में भी सोने का आयात बढ़ गया। आयात बढ़ने से भारत का आयात बिल चढ़ जाता है और चालू खाता घाटा पर बोझ बढ़ने लगता है। सरकार की कोशिश है कि सोने का आयात कम करके किसी न किसी तरह घाटे को नियंत्रण में रखा जाए। डालर के मुकाबले रुपए में लगातार आ रही कमजोरी को रोकने के लिए भी सरकार ने यह कदम उठाया है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सोने की कीमत बढ़ने से भी इसकी मांग पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि सोने की तस्करी बढ़ जाएगी।  अब सवाल यह है कि क्या भारतीय सोने के प्रति मोह को छोड़ पाएंगे क्योंकि सोने को खरीद कर तिजोरियों में बंद रखना उनकी आदत बन चुका है। भारतीय आज भी यही मानते हैं कि परिवार पर सुख-दुख की घड़ी में सोना ही काम आता है। जब तक लोग सोने के प्रति मोह नहीं छोड़ते तब तक सरकार को आयात घटाने में मदद नहीं मिल सकती। सरकार के उपाय कितने कारगर होंगे इसका पता आने वाले दिनों में चलेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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