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ओली का आत्मघाती कदम

कोरोना का संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा। समूचा विश्व इस महामारी से जूझ रहा है। वहीं भारत के पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान और चीन अपने एजैंडे पर काम कर रहे हैं।

12:11 AM Jul 20, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना का संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा। समूचा विश्व इस महामारी से जूझ रहा है। वहीं भारत के पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान और चीन अपने एजैंडे पर काम कर रहे हैं।

ओली का आत्मघाती कदम
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कोरोना का संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा। समूचा विश्व इस महामारी से जूझ रहा है। वहीं भारत के पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान और चीन अपने एजैंडे पर काम कर रहे हैं। चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के बल पर वैश्विक सरगना बन जाना चाहता है तो नेपाल और पाकिस्तान चीन की गोद में बैठकर भारत का विरोध कर रहे हैं। नेपाल की हिमाकत इतनी बढ़ गई है कि वह एक के बाद एक ऐसे कदम उठा रहा है जिससे भारत-नेपाल की वर्षों से चली आ रही मित्रता में कड़वाहट आ गई है। स्पष्ट है कि नेपाल की वर्तमान केपी शर्मा ओली सरकार चीन की चाल चल रहे हैं। विवादित नक्शा और भगवान श्रीराम पर प्रधानमंत्री ओली के विवादित बोल के बाद अब नेपाल भारत के सड़क निर्माण और बांध निर्माण का विरोध कर रहा है। नेपाल ने तर्क दिया है कि भारत में सड़क और बांध निर्माण से उसके क्षेत्र में बाढ़ की समस्या पैदा हो रही है। नेपाल की आपत्ति पूरी तरह से निराधार है। सच तो यह है कि नेपाल से आने वाले पानी की वजह से बिहार को हर साल बाढ़ का सामना करना पड़ता है। अब बिहार में गंडक और कोसी नदी का पानी उफान पर है और बिहार की काफी आबादी बाढ़ की चपेट में है। नेपाल विदेश मंत्रालय ने भारत को कूटनीतिक नोट भेजकर आपत्ति जताते हुए दोनों देशों के बीच हर साल बाढ़ और जल प्रबंधन की संयुक्त समिति की बैठक को जल्द कराने की मांग भी की है। कुछ दिन पहले नेपाल रौतहट के डीएम ने धमकी दी थी कि वह बांध को ढहा देंगे। बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित बिहार का कहना है कि नेपाल ने भारत-नेपाल सीमा पर ​बिहार में  नदी तटबंधों के सभी मरम्मत कार्य रोक दिए हैं। साथ ही प्रभावी ढंग से अपने निचले इलाकों में बाढ़ को रोकने के लिए भारत द्वारा किए जा रहे काम रोक दिए हैं। केपी शर्मा  ओली अपनी पार्टी के भीतर ही बगावत का सामना कर रहे हैं। पुष्प कमल दहल प्रचंड और अन्य नेता ओली को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी से हटाने को आमादा है्ं। नेपाल की जनता स्वयं ओली के भारत​ विरोधी रवैये से परेशान है और सड़कों पर उतर कर भारत से मदद की गुहार लगा रही है। भगवान श्रीराम को लेकर ओली द्वारा की गई अतार्किक और मूर्खतापूर्ण बयान से भारत में भी आक्रोश है। भारत की सभ्यता और संस्कृति को धूमिल करने का प्रयास सदियों से होता आया है लेकिन कुछ नहीं बदला तो वह है भारत की सनातनी संस्कृति। श्रीराम भारत की सांस्कृतिक विरासत है। श्रीराम भारत की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं। श्रीराम मानव की चेतना के प्रतीक हैं। ओली के बयान से भारतवासियों को बड़ी हैरानी हुई कि भारत के श्रीराम नेपाल के कैसे हो गए। आेली के शब्द भी किसी दूसरे के और दिमाग भी कोई दूसरा ही चला रहा है।
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ओली ने यह भी नहीं सोचा कि दुनिया भर में 75 लाख नेपालियों में से अकेले 50 लाख भारत में रहते हैं। नेपाली नागरिक  नौकरी और कारोबार के जरिये अपनी आजीविका कमाते हैं। इसका एक आश्चर्यजनक पहलु यह है कि कोरोना महामारी के पूर्व तक भारत में कामगारों के तौर पर रहने वाले नेपाली नागरिकों की सूची नेपाल सरकार के पास नहीं थी। नेपाल की आय का दूसरा बड़ा स्रोत नेपाल भ्रमण पर जाने वाले भारतीय तीर्थयात्री और पर्यटक हैं। यहां घरेलू पर्यटकों से भी अधिक अगर कोई जाता है तो वह भारतीय ही हैं। फिर भी वहां भारत विरोधी भावनाओं को उछाला जा रहा है। ओली को इतनी भी समझ नहीं है कि अगर भारत में कोई प्रतिक्रिया हुई तो उसका खामियाजा नेपाल को भुगतना पड़ सकता है। भारत ने हमेशा संयम से काम  लिया है लेकिन इतने बड़े देश में अपवाद स्वरूप प्रतिक्रिया की घटनाओं से इंकार भी नहीं किया जा सकता। वाराणसी में एक दक्षिणपंथी संगठन के कार्यकर्ताओं ने एक व्यक्ति को नेपाली नागरिक बताकर सिर मुंडवा दिया और उसे जय श्रीराम के नारे लगाने को विवश किया। केपी शर्मा ओली के खिलाफ नारे भी लगवाए गए। यद्यपि बाद में बताया गया कि जिस व्यक्ति का मुंडन कराया गया वह नेपाली नहीं है बल्कि वाराणसी का ही रहने वाला है। केन्द्र और राज्य सरकार को इस बात पर नजर रखनी होगी कि भारत में किसी नेपाली नागरिक को कष्ट न हो, कोई भी संगठन उनका अपमान नहीं करे।
अब नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल के बाद काफी परिवर्तन आ चुका है। नेपाल अब विश्व मानचित्र पर अपना अस्तित्व दिखाने को आतुर है। भारत को इस पर कोई आपत्ति भी नहीं। हर देश को अपना विकास करने का अधिकार है। दरअसल नेपाल की आबोहवा में पाकिस्तान के लिए मुहब्बत और चीन के प्रति दीवानगी दशकों से है, वह भी तब जब चीन ने बीते दिनों माउंट एवरेस्ट पर अपना अधिकार जताया था। यद्यपि कुछ सप्ताह पहले की बात करें तो चीनी नागरिकों द्वारा नेपाल के सत्ता प्रतिष्ठान सिंह दरबार के सामने नेपाली पुलिस बल के साथ हाथापाई की गई थी जिसमें एक डीएसपी स्तर का अधिकारी भी चोटिल हुआ था। यहां चीनी समुदाय के लोगों द्वारा एक बड़े साइबर अटैक को अंजाम दिया गया था, ​जिससे नेपाल के वित्तीय तंत्र को काफी नुक्सान पहुंचा था। नेपाल के पहाड़ों का राष्ट्रवाद काफी अजीब है। यहां भारत उनके ​लिए शैतान है तो चीन दयावान है। केपी शर्मा ओली इसी राष्ट्रवाद के सहारे अपनी राजनीति चला रहे हैं। आज नेपाल को सर्वमान्य नेता की जरूरत है जो भारत और चीन संबंधों को संतुलित कर शासन चला सके। नेपाल को भी सोचना होगा कि सैकड़ों सालों से चले आ रहे मधुर संबंधों के धागे को एक झटके से नहीं तोड़ा जा सकता। अंततः चीन की विस्तारवादी नीतियों के घातक परिणाम नेपाल कोे भुगतने ही पड़ेंगे। इसलिए नेपाल सम्भल जाए तो यह उसके अस्तित्व के लिए अच्छा ही होगा।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
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Adityachopra@punjabkesari.com
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