ओली का बीआरआई समर्थन : भारत के लिए चुनौती
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली का चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव…
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली का चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के प्रति झुकाव दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक बड़ा बदलाव है। इस कदम को नेपाल के विकास के लिए साहसिक निर्णय माना जा रहा है लेकिन इसके दूरगामी कूटनीतिक और आर्थिक प्रभाव भारत और व्यापक क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। यह नीति नेपाल की परंपरागत संतुलित विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है।
ओली की चीन समर्थक नीतियां भारत के साथ पारंपरिक घनिष्ठ संबंधों को कमजोर करने की दिशा में बढ़ रही हैं। 2020 में नेपाल के नए नक्शे में भारतीय क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को शामिल करने जैसे विवादास्पद निर्णयों ने भारत-नेपाल संबंधों में तनाव बढ़ाया। बीआरआई के तहत ‘ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क’ जैसी परियोजनाएं भारत की क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकती हैं, क्योंकि इससे हिमालयी क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ेगा। भारत को नेपाल के साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों का लाभ उठाते हुए अपनी उपस्थिति बढ़ानी होगी।
वैश्विक परिदृश्य पर प्रभाव नेपाल का चीन की ओर झुकाव अमेरिका के लिए भी एक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करता है। अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति जो चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन की गई है, काठमांडाै के बीआरआई में शामिल होने से कमजोर होती है। अमेरिका को नेपाल में निवेश, शैक्षिक सहयोग और बुनियादी ढांचे के विकास के जरिए चीन के प्रभाव को चुनौती देनी होगी।
बीआरआई के तहत नेपाल ने मुख्यतः जल विद्युत, सड़क निर्माण और हवाई अड्डा परियोजनाओं के लिए चीन से लगभग 3 बिलियन का ऋण लिया है। इसके विपरीत भारत ने नेपाल में स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के लिए 1.5 बिलियन की सहायता प्रदान की है। यह तुलना स्पष्ट करती है कि नेपाल को अपने हितों की रक्षा के लिए विवेकपूर्ण निर्णय लेने होंगे। क्षेत्रीय स्थिरता के लिए परीक्षा ओली का बीआरआई समर्थन न केवल नेपाल की आंतरिक राजनीति बल्कि दक्षिण एशिया की कूटनीति के लिए भी निर्णायक मोड़ है। यह निर्णय नेपाल की आर्थिक आकांक्षाओं को बढ़ा सकता है लेकिन इसके साथ आने वाले ऋण जाल, राजनीतिक ध्रुवीकरण और पर्यावरणीय जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत और अमेरिका के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि उन्हें नेपाल में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को पुनः परिभाषित करना होगा। प्रभावी निवेश, सांस्कृतिक कूटनीति और समय पर परियोजनाओं के कार्यान्वयन से ही वे चीन के प्रभाव को चुनौती दे सकते हैं।
नेपाल के लिए चुनौती यह है कि वह बीआरआई के लाभों का लाभ उठाते हुए अपनी तटस्थता और संप्रभुता को बनाए रख सके। नेपाल के लिए संभावित लाभ और चुनौतियां बीआरआई नेपाल को आर्थिक विकास के अवसर प्रदान कर सकता है, जिसमें बेहतर कनेक्टिविटी और वैश्विक बाजारों तक पहुंच शामिल है लेकिन इस पहल के साथ कई खतरे जुड़े हैं।
श्रीलंका और पाकिस्तान के अनुभव बताते हैं कि चीन के ऋण पर निर्भरता दीर्घकालिक वित्तीय समस्याओं का कारण बन सकती है। चीन के ऋण से नेपाल की स्वतंत्र विदेश नीति पर दबाव बढ़ सकता है। नेपाल के नाजुक पर्यावरण में तेजी से बुनियादी ढांचे का विकास स्थानीय समुदायों को विस्थापित कर सकता है और पारिस्थितिकी को नुक्सान पहुंचा सकता है। आंतरिक राजनीति पर असर नेपाल के भीतर, ओली की चीन समर्थक नीतियां राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकती हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत समर्थक रही नेपाली कांग्रेस ने बीआरआई का विरोध किया है जिससे गठबंधन सरकार में दरार पड़ सकती है। इसके अलावा, बीआरआई परियोजनाओं के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव नेपाल की आंतरिक स्थिरता को चुनौती दे सकते हैं।
दक्षिण एशिया में चीन की ऋण कूटनीति का प्रभाव चीन की “ऋण-जाल कूटनीति” का प्रभाव श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में स्पष्ट रूप से देखा गया है। नेपाल के कमजोर आर्थिक और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह जोखिम और भी गंभीर हो जाता है। नेपाल में चीनी घुसपैठ जैसे हुमला जिले में निगरानी टावरों का निर्माण चीन के विस्तारवादी एजेंडे को उजागर करता है। दक्षिण एशिया के लिए एक निर्णायक मोड़ के.पी. ओली का चीन के बीआरआई के साथ गठजोड़ केवल एक घरेलू नीति का निर्णय नहीं है-यह एक भू-राजनीतिक बयान है, जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। यह पहल नेपाल को आर्थिक परिवर्तन का एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान करती है लेकिन इसके साथ कर्ज पर निर्भरता, राजनीतिक ध्रुवीकरण और रणनीतिक असुरक्षा जैसी चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। भारत के लिए यह स्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण है। नेपाल के साथ ऐतिहासिक संबंधों का कमजोर होना उसके क्षेत्रीय नेतृत्व के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है। नेपाल इस महत्वपूर्ण मोड़ पर ऐसे विकल्प चुन रहा है जो न केवल उसके भविष्य को आकार देंगे, बल्कि व्यापक दक्षिण एशियाई भू-राजनीतिक परिदृश्य को भी पुनर्परिभाषित करेंगे। सभी हितधारकों के लिए चुनौती यह है कि वे प्रतिस्पर्धी हितों के बीच संतुलन बनाए रखें, संप्रभुता की रक्षा करें और सतत् विकास को बढ़ावा दें।
– के. एस. तोमर