एक राष्ट्र, एक चुनाव : एक सशक्त पहल
भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, अपनी विविधता और जटिल शासन व्यवस्था…
भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, अपनी विविधता और जटिल शासन व्यवस्था के लिए जाना जाता है। देश में हर साल विभिन्न स्तरों पर होने वाले चुनाव-लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय न केवल प्रशासनिक संसाधनों पर भारी बोझ डालते हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित करते हैं। इस संदर्भ में ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा ने हाल के वर्षों में व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। यह विचार न केवल चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने का प्रयास है, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ का तात्पर्य है कि देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ, एक निर्धारित समय पर कराए जाएं। वर्तमान में भारत में चुनाव चरणबद्ध और अलग-अलग समय पर होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बार-बार चुनावी प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य इन चुनावों को एक ही समय में आयोजित करना है ताकि प्रशासनिक और वित्तीय संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके।
बार-बार होने वाले चुनावों में भारी मात्रा में धन खर्च होता है। एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ कम होगा, जिसका उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकता है। लगातार चुनावों के कारण प्रशासनिक मशीनरी और सुरक्षा बल हमेशा व्यस्त रहते हैं। एक साथ चुनाव से प्रशासन को अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के लिए समय मिलेगा।
बार-बार होने वाले चुनावों के कारण सरकारें अल्पकालिक लोकलुभावन नीतियों पर ध्यान देती हैं। एक साथ चुनाव होने से दीर्घकालिक और स्थायी नीतियों को बढ़ावा मिलेगा। एक साथ होने वाले चुनावों से मतदाताओं का ध्यान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर एक साथ केंद्रित होगा जिससे उनकी भागीदारी और जागरूकता बढ़ेगी। हालांकि यह अवधारणा आकर्षक है लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं। पहली चुनौती है विभिन्न राज्यों के विधानसभाओं के कार्यकाल को समन्वयित करना। कुछ राज्यों में मध्यावधि चुनाव की स्थिति में क्या होगा? इसके लिए संवैधानिक संशोधन और सभी राजनीतिक दलों की सहमति आवश्यक है।
दूसरी चुनौती है क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों का टकराव। एक साथ चुनाव होने पर राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं जिससे छोटे और क्षेत्रीय दलों को नुक्सान हो सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए चुनाव प्रचार और मतदान प्रक्रिया में संतुलन बनाना होगा। तीसरी चुनौती है तकनीकी और लॉजिस्टिक व्यवस्था। इतने बड़े पैमाने पर एक साथ चुनाव कराने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम), सुरक्षा बलों और मतदान केंद्रों की पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी।
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए एक ठोस रोडमैप की आवश्यकता है। सबसे पहले सभी राजनीतिक दलों के बीच व्यापक सहमति बनानी होगी। इसके लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन किया जा सकता है जो इसकी व्यवहार्यता और कार्यान्वयन के लिए सुझाव दे। साथ ही जनता के बीच इस अवधारणा के लाभों को लेकर जागरूकता अभियान चलाना होगा।
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र को अधिक कुशल, पारदर्शी और समावेशी बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। हालांकि, इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, संवैधानिक सुधार और जनता का समर्थन आवश्यक है। यदि इसे सही दिशा में लागू किया जाए तो यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह समय है कि हम इस विचार को गंभीरता से लें और इसे वास्तविकता में बदलने के लिए मिलकर काम करें।