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ज्ञानवापी पर हिन्दुओं का ही अधिकार

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को देखकर जो विवाद चल रहा है वह भारत की संस्कृति और इतिहास को अनदेखा करके चलाया जा रहा है।

01:47 AM May 16, 2022 IST | Aditya Chopra

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को देखकर जो विवाद चल रहा है वह भारत की संस्कृति और इतिहास को अनदेखा करके चलाया जा रहा है।

ज्ञानवापी पर हिन्दुओं का ही अधिकार
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को देखकर जो विवाद चल रहा है वह भारत की संस्कृति और इतिहास को अनदेखा करके चलाया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि आठवीं शताब्दी के बाद से भारत में मुस्लिम आक्रांताओं की जो शुरुआत हुई उसने अपने जुल्म और जबर से भारत के हिंदू राजाओं को परास्त करने की मुहिम इसलिए चलाई क्योंकि यह राजा आपस में संगठित नहीं थे और इन राजाओं के जो भी राज्य थे उन में बने मंदिर उनकी शान ओ शौकत और वैभव की अनुभूति इस तरह कराते थे ​कि इन मंदिरों की स्थापत्य कला बहुत शास्त्रीय होने के साथ इन में स्थापित मूर्तियों के मूल्यांकन का कोई पैमाना नहीं था क्योंकि कोई राजा ही नहीं पूर्ण से है सोने की बनवा तथा और कोई इनमें हीरे मोती या अन्य वस्तु जड़वा कर अपने वैभव का प्रचार करता था। इससे मुसलमान आक्रांत जोकि मूलतः लुटेरे ही थे और जिनका उद्देश्य अपनी भूखी नंगी रियासतों को भारतीय संपत्ति से भरना होता था वह इन हिंदू राजाओं पर आक्रमण करते थे और युद्ध में स्थापित सभी हिंदू नियमों या राजपूत क्षत्रिय नियमों का पालन नहीं करते थे और इन्हें आसानी से पराजित कर देते थे। लेकिन बाद में मुगलों का शासन स्थापित होने के बाद केवल अकबर के शासन को छोड़कर शेष सभी अन्य मुगल बादशाहों ने हिंदू संस्कृति के मांगों के प्रति वह आदर भाव नहीं दिखाया जोकि अपेक्षित था परंतु उन्होंने अपना शासन मजबूत बनाने के लिए हिंदुओं की मदद ली और नाम चारे के लिए हिंदू विद्वान भी भास्कर संस्कृत विद्वान अपने दरबारों में रखें। यह अपने शासन के स्थायित्व देने का एक रास्ता था जो मुगलों ने किया परंतु ऐसा हमें एक भी उदाहरण नहीं मिलता है कि जब किसी मुगल शासक नहीं भारत के किसी हिंदू मंदिर या हिंदू मत के प्रभात संस्थान को कोई राजकोषीय मदद भी हो जबकि यह मुगल बादशाह मुसलमानों के पवित्र स्थान मक्का और मदीना में हर साल जकात भेजा करते थे और जब तक मुगल शासक भारत में रहे मक्का को हर साल चढ़ावा या जकात भेजा जाता रहा इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत में जो मुगल काल रहा वह हिंदू मुस्लिमों में समानता कम और शासन की मजबूरियां ज्यादा बताता था। लेकिन लेकिन मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान और बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर के अंग ज्ञानवापी मस्जिद पर जिस तरह कानूनी दांव पर चल रहे हैं उससे भारत की वास्तविकता नहीं बदली जा सकती और हजारों वर्षों से भारत की उन मान्यताओं को नहीं बदला जा सकता जिसमें कहा गया है ​कि मथुरा में भगवान कृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ और काशी नगरी को स्वयं भगवान शंकर ने बनाया। होना तो यह चाहिए भारत के सभी मुसलमानों को एक स्वर से काशी को हिंदू तीर्थ स्थल घोषित करते हुए यहां के सभी धर्म स्थानों को हिंदू मठों को दे देना चाहिए और मथुरा श्री कृष्ण जन्मस्थान जो 1 जिले में है और इसे औरंगजेब के बाद अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करके रोहिल्ला सरदार नवाब नजीब उद दौला की मदद से तहस-नहस करते हुए एक ईदगाह में तब्दील किया इतिहास को हमें पलट देना है मगर मुसलमानों के खिलाफ नफरत के साथ नहीं क्योंकि आज के मुसलमानों का इसमें कोई दोस्त नहीं है 100 साल पहले जो मुसलमान शासन कर रहे थे उनकी यह भारतीयों पर अपना रौब गालिब करने की एक नीति थी।
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Aditya Chopra

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