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ऑपरेशन सिन्दूर और विपक्ष

संसद में विशेष सत्र की मांग कर रहा विपक्ष…

06:45 AM Jun 03, 2025 IST | Aditya Chopra

संसद में विशेष सत्र की मांग कर रहा विपक्ष…

ऑपरेशन सिन्दूर और विपक्ष

निश्चित रूप से यह तथ्य है कि लोकतन्त्र तभी स्वस्थ रह सकता है जब इसमें एक मजबूत प्रतिपक्ष या विपक्ष भी हो परन्तु लोकतन्त्र में एक तीसरा पक्ष भी होता है जिसे ‘लोकपक्ष’ कहा जाता है। यह लोकपक्ष ही सत्ता व विपक्ष को सदैव सावधान रखता है और सबसे मजबूती का प्रदर्शन भी करता है जिसके ऊपर दोनों ही पक्ष निर्भर करते हैं। लोकपक्ष ही लोकतन्त्र में सत्ता का परिवर्तन सत्ता व विपक्ष के बीच करता रहता है परन्तु जब राष्ट्र पर संकट आता है तो सत्ता व विपक्ष के दोनों पक्ष ‘जन चेतना’ में समाहित हो जाते हैं और दोनों की ही सामूहिक जिम्मेदारी हो जाती है कि वे राष्ट्रहित में जन चेतना को जागृत करें। पाकिस्तान के खिलाफ शुरू किये गये ऑपरेशन सिन्दूर में हमने देखा कि पूरा विपक्ष सरकार के समर्थन में खड़ा हो गया और उसने राष्ट्र पर आये इस संकट का मुकाबला करने के लिए मिलजुल कर आगे बढ़ने की कसमें खाईं। बेशक लोकतन्त्र में विपक्ष का कार्य लोकहित में सत्ता पक्ष से सवाल पूछने का होता है मगर जब राष्ट्र पर संकट आता है तो ये सभी सवाल जन चेतना में समाहित हो जाते हैं और राष्ट्र चेतना व जन चेतना आपस में मिलकर एक हो जाती हैं।

इस दृष्टि से हम देखें तो पाकिस्तान के मुद्दे पर विपक्ष ने खरा उतरने की कोशिश की और अपने सवालों को शुरू में संयमित रखने का प्रयास भी किया परन्तु यह प्रयास बहुत जल्दी हमने टूटते हुए भी देखा जब लोकसभा व राज्यसभा में विपक्ष के नेताओं क्रमशः श्री राहुल गांधी व मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऑपरेशन सिन्दूर के बारे में सवाल उछालने शुरू किये। ऑपरेशन सिन्दूर की सैनिक कार्रवाई के दौरान भारत को हुए नुक्सान का सवाल बिल्कुल नहीं था, बल्कि शत्रु देश पाकिस्तान को हुए नुक्सान का मसला दीगर था। हमारी वीर सेनाओं को यदि कोई नुक्सान हुआ भी है तो वह युद्ध का स्वाभाविक नुक्सान ही कहा जाएगा क्योंकि जब दो देशों की सेनाएं मोर्चा लेती हैं तो कुछ न कुछ नुक्सान विजयी पक्ष को भी होता ही है। उदाहरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र देशों यथा अमेरिका, रूस, ब्रिटेन व फ्रांस आदि को जर्मनी पर विजय अवश्य मिली मगर इस युद्ध में सबसे ज्यादा नुक्सान सोवियत संघ को हुआ और उसके 25 लाख सैनिक मारे गये। खैर यह तो विश्व युद्ध था।

अगर हम 1965 के भारत-पाक युद्ध की भी बात करें तो इसमें भारतीय सेनाओं द्वारा पाकिस्तान के जीते हुए भू-भागों को भारत को ताशकन्द समझौता हो जाने के बाद खाली करना पड़ा। इस युद्ध में तो भारत की सेनाएं लाहौर शहर के ‘बाटा चौक’ से कुछ सौ मीटर की दूरी तक ही रह गई थीं। इस युद्ध के बाद भारत की अर्थव्यवस्था इतनी जर्जर हो गई थी कि इसके पास मुश्किल से कुछ सप्ताहों तक की आयात जरूरतें पूरी करने के लिए भी विदेशी मुद्रा नहीं बची थी। इसी वजह से इस युद्ध के महानायक प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद प्रधानमन्त्री बनीं श्रीमती इंदिरा गांधी को स्वतन्त्र भारत में पहली बार डालर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन करना पड़ा था। मगर ऑपरेशन सिन्दूर में भारत-पाक के बीच अभी तक केवल चार दिन का ही युद्ध हुआ है और उस पर विपक्ष ने युद्ध के मुल्तवी होते ही यह पूछना शुरू कर दिया कि बताओ इस युद्ध में भारत के कितने विमान गिरे हैं? यह सवाल पाकिस्तान द्वारा किये जा रहे दावों का पुष्टिपूरक ही है जिससे विपक्ष को बचना चाहिए था।

विपक्ष यह भी मांग कर रहा है कि ऑपरेशन सिन्दूर पर चर्चा करने के लिए संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया जाना चाहिए और सरकार को बताना चाहिए कि भारत की स्थिति क्या रही है। इस सन्दर्भ में यह सवाल तो मौजूद है कि विगत छह मई की अर्ध रात्रि को शुरू हुआ ऑपरेशन जब 10 मई को मुल्तवी हुआ तो इसकी घोषणा पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कैसे की मगर विपक्ष द्वारा इसे सार्वजनिक विमर्श में तब्दील करना इसलिए न्यायोचित नहीं है क्योंकि सरकार कह रही है कि ऑपरेशन सिन्दूर अभी जारी है। जाहिर है कि अपने इस सवाल का उत्तर विपक्ष सरकार से संसद में लेना पसन्द करेगा क्योंकि इसमें बोला गया हर शब्द पत्थर की लकीर होता है। बेशक लोकतन्त्र में विपक्ष को संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करने का अधिकार होता है और ऐसा 1962 में भारत पर चीन के हमले के समय हुआ भी था।

आज की विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसी का उदाहरण देकर विशेष सत्र बुलाने की मांग भी कर रही है। 1962 में भारत-चीन के युद्ध के दौरान ही जनसंघ के नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की मांग पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. प. जवाहर लाल नेहरू विशेष सत्र बुलाने को राजी हो गये थे। बाद में उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी आचार्य कृपलानी ने रखा था जो गिर गया था। मगर यह याद रखा जाना चाहिए कि यह पूर्ण युद्ध था और भारत इसमें हार गया था। तब नेहरू जी को अपने रक्षामन्त्री स्व. वी.के. कृष्णामेनन का इस्तीफा भी लेना पड़ा था। मगर ऑपरेशन सिन्दूर में तो भारत ने पाकिस्तान के होश उड़ा कर रख दिये हैं और उसके नौ आतंकवादी अड्डों व 11 वायुसैनिक अड्डों को खाक में मिला दिया है। यह सब बिना अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार किये हुए ही किया गया। इसके लिए विपक्ष क्या भारतीय सेनाओं को बधाई नहीं देगा? आज का लोकपक्ष यही है जिसे सही-सही पढ़ने में विपक्ष सफल नहीं हो पा रहा है।

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