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पाक : आइन पर भी दहशतगर्दी

पाकिस्तान की राष्ट्रीय एसेम्बली में आज जो नजारा पेश हुआ है उससे यही साबित होता है कि इस मुल्क में इसका आइन ( संविधान) भी दहशतगर्दी की जद में आ चुका है।

01:20 AM Apr 04, 2022 IST | Aditya Chopra

पाकिस्तान की राष्ट्रीय एसेम्बली में आज जो नजारा पेश हुआ है उससे यही साबित होता है कि इस मुल्क में इसका आइन ( संविधान) भी दहशतगर्दी की जद में आ चुका है।

पाक   आइन पर भी दहशतगर्दी
पाकिस्तान की राष्ट्रीय एसेम्बली में आज जो नजारा पेश हुआ है उससे यही साबित होता है कि इस मुल्क में इसका आइन ( संविधान) भी दहशतगर्दी की जद में आ चुका है।  तहरीके इंसाफ पार्टी के सर्वेसर्वा और वजीरे आजम इमरान खान ने आज जिस तरह एसेम्बली के उपाध्यक्ष कासिम खां सूरी की मार्फत इसके भरे इजलास में संविधान पर ही बम गिरवाया उससे इस मुल्क की 22 करोड़ अवाम का यह ख्वाब टूट गया कि वे किसी कानून की अलम्बरदारी करने वाले जम्हूरी मुल्क में रहते हैं। कासिम खां सूरी ने आज दुनिया भर की संसदों को शर्मसार करते हुए ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान की संसद पर भी दहशतगर्दी के ही नियम लागू होते हैं। लोकतन्त्र या जम्हूरियत किसी भी मुल्क को तहजीबयाफ्ता या सभ्य लोगों का मुल्क घोषित करता है मगर पाकिस्तानी संसद मे कासिम खां सूरी ने अपने एक ही फैसले से ऐलान कर दिया कि पाकिस्तान का ईमान सिर्फ हर इदारे में दहशतगर्दी का ही पैगाम देने का है। क्या कयामत है बरपा हुई एसेम्बली के इजलास में कि जिस मुद्दे पर वोट डालने के लिए यह जुड़ा था उसे ही बरतरफ करके ऐसे  मुद्दे पर इजलास को मुल्तवी कर दिया जिस पर गौर करने का हक सिर्फ कानूनी अदालतों को ही होता है। कासिम खां ने पहले से ही तैयार किये गये एक फैसले को किसी तोते की तरह भरे इजलास में पढ़ दिया और आनान-फानन में इसकी कार्यवाही को मुल्तवी कर डाला।
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दरअसल इजलास इमरान खान की सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा रखे गये अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करने के लिए बुलाया गया था। पाकिस्तान के संसदीय कानून के तहत अगर एक बार विश्वास प्रस्ताव संसद में विचार के लिए मंजूर हो जाता है तो सात दिन के भीतर उस पर मतदान कराना जरूरी होता है। इसे देखते हुए आज सातवां दिन था अतः संसद की बैठक बुलाई गई थी। मगर इमरान खान की पार्टी तहरीके इंसाफ ने संसद के अध्यक्ष के साथ सांठ-गांठ करके एसा माहौल पैदा करने की साजिश रच दी थी कि संसद की कार्यवाही शुरू होने पर अफरा-तफरी का माहौल बना दिया जाये जिससे सदन के भीतर गफलत का माहौल पैदा हो जाये। इसकी भनक जब विपक्ष को मिली तो उसने अध्यक्ष के खिलाफ  भी अविश्वास प्रस्ताव रख दिया जिससे उपाध्यक्ष सदन की कार्यवाही का संचालन करे। मगर उपाध्यक्ष सूरी ने ‘बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह’ पर खरे उतरते हुए इमरान खान के पहले से ही बनाये हुए फार्मूले पर इस तरह अमल किया कि पूरी दुनिया के लोकतान्त्रिक देश नजारा देख कर ‘लिलिल्लाह’ की फरियाद करने लगे । कासिम खां सूरी ने सदन की स्वीकृत एजेंडे से हट कर कानून मन्त्री फवाद चौधरी को अपना विषय रखने की इजाजत दे दी और उन्होंने फरमाया कि हुजूर जो ये अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है वह एक विदेशी मुल्क की हिमायत से लाया गया है और पाकिस्तान के संविधान के अनुसार मुल्क के साथ वफादारी करने का अहल सबसे ऊपर है इसलिए हुजूर सबसे पहले इस अविश्वास प्रस्ताव को ही  नामंजूर करें। कासिम खां सूर ने पहले से ही तैयार एक फैसला हूबहू पढ़ कर सुना दिया और इजलास खत्म हो गया। क्या किसी भी लोकतान्त्रिक देश की संसद में ऐसा  फैसला किया जा सकता है कि केवल एख पक्ष की बात सुन कर ही अध्यक्ष के आसन पर बैठा हुआ व्यक्ति अपना फैसला सुना दे।
भारत की संसद में लोकसभा या राज्यसभा के अध्यक्ष की कुर्सी को विक्रमादित्य का सिंहासन कहा जाता है जिस पर बैठे हुए व्यक्ति का धर्म केवल न्याय करना होता है। बेशक इस आसन पर बहुत बार विपक्ष के सदस्य भी बैठते हैं मगर कुर्सी पर ही बैठते ही वे भूल जाते हैं कि उनकी कौन सी पार्टी है अतः अक्सर देखा जाता है कि अध्यक्ष के आसन पर विराजमान विपक्ष का संसद ही विपक्षी सांसदों के शोर मचाने या नियम तोड़ने पर उन्हें चेतावनी देना लगता है या संसदीय नियमों का हवाला देने लगता है। लोकतन्त्र इसे ही कहते हैं। परन्तु पाकिस्तान की संसद में तो खुल्लमखुल्ला सत्ता पक्ष के उपाध्यक्ष ने तो दहशतगर्दी का नजारा पेश कर डाला । लेकिन संसदीय मामलों में पाकिस्तान की नेशनल एसेम्बली के नियम प्रायः भारत की संसदीय प्रणाली से ही लिये गये हैं अतः उपाध्यक्ष के फैसले को इस देश के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई है। परन्तु इसके बावजूद इस मुल्क में संवैधानिक संकट खङा हो चुका है क्योंकि इजलास खत्म होते ही इमरान खान ने अपने देश के राष्ट्रपति को एसेम्बली या संसद भंग करने की सलाह दे दी जिसे इस मुल्क के सदर अलवी साहब ने मंजूर भी कर लिया। अब इमरान खान और उनकी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि नये चुनावों के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
बेशक लोकतन्त्र में राजनैतिक संकट खड़ा होने पर जनता से नया जनादेश लेना ठोस विकल्प होता है मगर इसके लिए संविधान का कत्ल करना जरूरी नहीं होता। इमरान खान ने इस्लाम में बरत का महीना कहे जाने वाले रमजान के महीने के पहले दिन ही जम्हूरियत का कत्ल करके खुद को ‘सादिक’ दिखाने का ढोंग रचा है और ‘जकात’ में अपने मुल्क की अवाम को ‘मुफलिसी’ की सौगात बख्शी है इसलिए अल्लाह इस मुबारक महीने में उन्हें किस दर्जे में  रखेगा इसे मुस्लिम आलिम और उलेमा जाने मगर इतना जरूर है कि जम्हूरियत के पैरोकार मुल्कों की अवाम उन्हें सिर्फ ‘सत्ता का सौदागर’ ही कहेगी।
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Aditya Chopra

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