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आतंक की खेती करता पाकिस्तान

पाकिस्तान में सरकार बदली, निजाम बदला लेकिन पाकिस्तान के हालात नहीं बदले। पाकिस्तान में आर्थिक संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा।

02:27 AM May 31, 2022 IST | Aditya Chopra

पाकिस्तान में सरकार बदली, निजाम बदला लेकिन पाकिस्तान के हालात नहीं बदले। पाकिस्तान में आर्थिक संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा।

आतंक की खेती करता पाकिस्तान
पाकिस्तान में सरकार बदली, निजाम बदला लेकिन पाकिस्तान के हालात नहीं बदले। पाकिस्तान में आर्थिक संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा। पाकिस्तान का खजाना खाली हो चुका है, विदेशी मुद्रा भंडार भी मामूली रह गया है। पाकिस्तान के आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ तो यह कह रहे हैं कि पाकिस्तान अब श्रीलंका की राह पर है यानि पाकिस्तान में लंका कांड होने वाला है और वह जल्द ही दीवालिया हो सकता है। पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज बढ़कर 90 अरब डॉलर हो गया है। इसमें सिर्फ चीन का कर्ज ही 20 फीसदी का है। हालात ये हैं कि चीन की जीडीपी में विदेशी कर्ज की हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी की हो गई है। हाल ही में पाकिस्तान ने चीन से उसे चुकाए जाने वाले करीब 4 अरब डॉलर के कर्ज के लिए कुछ दिनों की मोहलत भी मांगी थी। संसद में एक लिखित जवाब में सरकार ने बताया था कि जुलाई 2018 जब इमरान खान सत्ता में आए से लेकर जून 2021 तक पाकिस्तान का कर्ज करीब 14.9 लाख करोड़ रुपए बढ़ा है।
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इस बार भी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरकरार रखा है। एफएटीएफ ने कहा है कि पाकिस्तान ने टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर कमियों को पूरा नहीं किया है। एफएटीएफ पूरी दुनिया में मनी लॉन्ड्रिंग, सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार और टेरर फाइनेंसिंग पर निगाह रखती है। इसका भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर बुुरा असर पड़ रहा है, जिसके चलते विदेश से निवेश मिलना मुश्किल हो जाता है। जिस देश ने आतंकवाद को राष्ट्रीय नीति बना लिया हो, जो देश लगातार ‘आतंक’ के बीज बो रहा हो उसका हश्र ऐसा ही होता है। आज तक जितना धन पाकिस्तान ने आतंक की खेती पर खर्च किया है अगर उतना धन उसने गरीबी, अनपढ़ता और देश को आत्मनिर्भर बनाने पर खर्च किया होता तो आज उसकी स्थिति काफी मजबूत होती लेकिन पड़ोसी देश की विडम्बना रही कि उसने अवाम की भलाई के लिए कुछ नहीं किया। पाकिस्तान की राजनीति भारत के विरोध और घृणा पर केन्द्रित है। इसलिए कोई भी हुकमरान भारत विरोध छोड़ कर सत्ता में रह ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का कश्मीर पर पुराना राग अलापना मजबूरी है। पाकिस्तान के हुकमरान, खुफिया एजैंसी आईएसआई और अन्य पाक प्रायोजित आतं​कवादी संगठनों के आका इसकी आड़ में धन ही लूट रहे हैं। पाकिस्तान के हर लीडर की विदेशों में अकूत सम्पत्तियां हैं।
अब पाकिस्तान को लेकर संयुक्त राष्ट्र निगरानी दल ने नया खुलासा किया  है कि भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा में 180 से 400 लड़ाके हैं ​जिसमें भारत, बंगलादेश, म्यांमार और पाकिस्तान के नागरिक शामिल हैं। यह लोग अफगानिस्तान के गजनी, हेलमंद, कंधार, निमरूज, पक्तिका और काबुल प्रांत में स्थित है। इन्हें आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जा रही है। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गिरोह लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद अफगानिस्तान के तालिबान नियंत्रित हिस्सों में प्रशिक्षण शिविर चलाये जा रहे हैं। दोनों संगठनों का शीर्ष स्तर के अफगान नेताओं सहित सत्तारूढ़ शासन के साथ गहरे संबंध हैं। अलकायदा को नए अफगान शासन के तहत स्वतंत्रता प्राप्त है। पाकिस्तान का इरादा भारत और अन्य देशों को निशाना बनाना ही है। फिलहाल क्षमता की कमी और तालिबान शासन के संयम के चलते हमलों को रोका गया है। संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में कहा गया है कि जैश के नंगरहार में 8 ट्रेनिंग कैम्प हैं, जिनमें से तीन सीधे तालिबान के नियंत्रण में हैं। जबकि लश्कर के कुनार और नंगरहार में तीन  कैम्प हैं जो कि पहले तालिबान के संचालन को आर्थिक और प्रशिक्षण विशेषज्ञता प्रदान करते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के सदस्यों के बीच प्रसारित रिपोर्ट अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र की भविष्य की रणनीति के लिए दिशा दिखाती है। भारत अफगानिस्तान के साथ संकट की घड़ी में भी खड़ा हुआ है लेकिन उसे यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत में आतंकवादी हमले को अंजाम देने के लिए न कर पाए। सवाल यह भी उठता है कि क्या शहबाज शरीफ का निजाम पाकिस्तान की तस्वीर बदलने का करिश्मा कर सकता है।
पाकिस्तान की हालत अभी ऐसी है कि अगले निजाम से भी किसी करिश्मे की उम्मीद करना सही नहीं होगा अगर पाकिस्तान को बेहतर बनना है तो इसके लिए सबसे पहले तो जरूरत होगी बड़े ​ विजन की। इतना ही नहीं, अगले निजाम को सेना से लेकर जनता तक के साथ की जरूरत भी होगी। साथ ही पाकिस्तान को आतंकवाद से पूरी तरह किनारा करना होगा ताकि एफएटीएफ में उसकी रैंकिंग सुधरे और विदेशी निवेश आ सके। इसके अलावा राजनीति में अधिक उथल-पुथल भी नहीं होनी चाहिए। अगर ये सारी शर्तें पूरी होती हैं तो भी पाकिस्तान के हालात बेहतर होने में एक लम्बा वक्त लगेगा जिसका सब्र के साथ इंतजार करना होगा। हालांकि, पाकिस्तान का इतिहास देखें तो वहां सेना और राजनीति के बीच मुनमुटाव होते रहे हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान में 74 सालों का इतिहास रहा है कि कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी है। खैर, ये देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान का अगला निजाम अर्थव्यवस्था को बेहतर करने की कि​तनी कोशिश करता है।
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आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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