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बदहवास हुआ पाकिस्तान!

किराये की जमीन पर तामीर हुए नाजायज मुल्क पाकिस्तान की आज कश्मीर से धारा 370 को हटाये जाने पर बदहवासी भरी फड़फड़ाहट बता रही है कि उसके सारे नापाक इरादों का जनाजा निकल चुका है।

04:26 AM Aug 09, 2019 IST | Ashwini Chopra

किराये की जमीन पर तामीर हुए नाजायज मुल्क पाकिस्तान की आज कश्मीर से धारा 370 को हटाये जाने पर बदहवासी भरी फड़फड़ाहट बता रही है कि उसके सारे नापाक इरादों का जनाजा निकल चुका है।

बदहवास हुआ पाकिस्तान
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किराये की जमीन पर तामीर हुए नाजायज मुल्क पाकिस्तान की आज कश्मीर से धारा 370 को हटाये जाने पर बदहवासी भरी फड़फड़ाहट बता रही है कि उसके सारे नापाक इरादों का जनाजा निकल चुका है। यही वजह है कि वह दुनिया का भिखमंगा मुल्क होने के बावजूद भारत से वाणिज्यिक सम्बन्ध समाप्त करने की घोषणा करने के साथ राजनयिक सम्बन्धों का स्तर इकतरफा कम करने का ऐलान कर रहा है और दोनों देशों के बीच में चलने वाली ट्रेन समझौता एक्सप्रेस को अपनी सरहदों तक ही महदूद रखकर भारत से अपने मुसाफिरों को ले जाने के लिए कह रहा है। अब पाकिस्तान ने भारतीय फिल्मों, ड्रामों और अन्य सभी सांस्कृतिक संबंधों से भी भारत से नाता तोड़ लिया है। पाकिस्तान शायद नहीं जानता कि हिन्दोस्तान के टुकड़े करके ही वह वजूद में आया है और ऐसा हुए केवल 72 वर्ष ही हुए हैं।
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अपनी नामुराद फौज की काली करतूतों के बूते पर उसने जम्मू-कश्मीर में शुरू से लेकर अब तक जिस तरह कहर ढहाया है उसकी गवाह खुद कश्मीरी जनता ही है जिसे पाकिस्तानी हुक्मरानों ने 1947 से अपने कब्जाये गये कश्मीर घाटी के हिस्से में जुल्मों-सितम का शिकार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हक की बात तो यह है कि पाकिस्तानी कब्जे में रहने वाले कश्मीर के बाशिन्दे भी भारत सरकार की वफाओं के मुन्तजिर हैं और उस जम्मू-कश्मीर रियासत का ही हिस्सा हैं जिसे महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ जोड़ा था। इसलिए अपने सूबे जम्मू-कश्मीर के बारे में केन्द्र की मोदी सरकार ने जो भी फैसले किये हैं वे पूरी तरह भारतीय संघ की सरहदों के भीतर किये गये हैं और दुनिया की कोई भी ताकत भारत को ऐसा करने से नहीं रोक सकती।
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धारा 370 जब बनाई गई थी तो वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजाद हुए उस भारत में बनाई गई थी जिसे अंग्रेजों ने दो हिस्सों में बांटकर सोचा था कि इसमें मौजूद 562 देशी रियासतें नव स्वतन्त्र भारत के लिए हमेशा सिरदर्द बनी रहेंगी और जिस लोकतन्त्र व गणतन्त्र की दुहाई आजादी के दीवाने देते फिरते हैं उसे उनके द्वारा खुद मुख्तार बनाये गये राजे-महाराजे और नवाब अपनी शाही शानो-शौकत की चमक से बेआबरू कर देंगे मगर सरदार वल्लभ भाई पटेल के गृहमन्त्री रहते इन सभी राजे-महाराजों की घिग्घी इस तरह बन्धी कि पूरा मुल्क एक डोर में बन्धता चला गया और राजनीति के उस कुशल खिलाड़ी ने देखते-देखते ही पूरे भारत की जनता को लोकतन्त्र की सौगात की खुशबू में भर दिया।
लौह पुरुष के नाम से विख्यात सरदार पटेल ने सिर्फ कलम के जोर से ही बड़े-बड़ेे किलों में रहने वाले रजवाड़ों की दीवारों को आम हिन्दोस्तानी के कच्चे-पक्के घरों की ​दीवारों की ताकत का दीदार करा दिया मगर जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा को हिन्दोस्तान की अजीम ताकत का इल्म थोड़ा देर से तब हुआ जब पाकिस्तान के वहशी दरिन्दों ने उनकी रियासत की सरहदों को रौंदना शुरू कर दिया और तब वह हिन्दोस्तान की पनाह में आये और तब अहिंसा के पुजारी रहे महात्मा गांधी ने भी कहा कि भारत की फौजों को कश्मीर में जाकर अपना सैनिक धर्म निभाना चाहिए लेकिन क्या गजब हुआ कि आजाद हिन्दोस्तान का संविधान लिखने वाले बाबा साहेब अम्बेडकर की सख्त मुखालफत के बावजूद ऐसा कानून 370 का अनुच्छेद बनाकर भारत के संविधान के साथ जोड़ा गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान, प्रधान और निशान (झंडा) होना था।
मैं फिलहाल इसे लागू होने के पूरे इतिहास में नहीं जा रहा हूं मगर संसद में गृहमन्त्री श्री अमित शाह द्वारा दिये गये उस ऐतिहासिक दस्तावेज का हवाला देना चाहता हूं जिसमें उन्होंने कहा था कि 1989 में जब जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध की शुरूआत आतंक फैलाकर पाकिस्तान के तत्कालीन फौजी हुक्मरान जनरल जिया-उल-हक ने की थी तो उसमें भी धारा 370 का जिक्र यह कहते हुए किया गया था कि इस खास कानून की वजह से कश्मीरी अवाम कभी भी भारत के साथ पुख्ता तरीके से नहीं जुड़ सकता है। अतः अलगाव पैदा करने की जमीन तैयार करने में मदद मिलेगी। कोई पूछे अगर पाकिस्तान जैसा मुल्क धारा 370 को अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए मुफीद मानता है तो इसे लागू करने की क्या तुक हो सकती है।
यही वजह है कि पाकिस्तान की इमरान सरकार और वहां की फौज बुरी तरह बौखला गई है और झुंझलाहट में उलटे-सीधे फैसले कर रही है और धमकी दे रही है कि वह राष्ट्रसंघ में इस मसले को उठायेगी। पाकिस्तान के हुक्मरान किस कदर परेशान हो चुके हैं कि वे उस मसले को फिर से राष्ट्रसंघ में रखना चाहते हैं जिसे खुद राष्ट्रसंघ ने ही 2010 के करीब कह दिया था कि यह मसला अंतर्राष्ट्रीय समस्या नहीं है और भारत और पाकिस्तान के बीच का मसला है। इसलिये अब मसला यह है कि पाकिस्तान किस दिन अपने कब्जे में लिये गये कश्मीर वादी के हिस्से को खाली करेगा। कश्मीरी जनता को वे ही हुकूक दिये गये हैं जो हिन्दोस्तान के किसी भी सूबे के लोगों को मिले हुए हैं।
धारा 370 अगर इसमें बीच में आ रही थी तो उसे खत्म कर दिया गया है और मानवीय अधिकारों की बहाली हुई है क्योंकि जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत दलितों, पिछड़ों व महिलाओं के अधिकारों को सीमित कर दिया गया था। जो पाकिस्तान अपने सूबे बलूचिस्तान के लोगों के मौलिक अधिकारों को सरेआम फौजी बूटों के तले कुचल कर बलूची अवाम को भेड़-बकरियों की तरह हांकता है वह भला क्या मुंह लेकर राष्ट्रसंघ में जायेगा? दरअसल कश्मीर पाकिस्तान के लिए अपने वजूद को बनाये रखने की ऐसी शर्त थी जिसकी आड़ में यहां के हुक्मरानों ने पाकिस्तानी अवाम को ही भूखा-नंगा बनाये रखने की तजवीज ढूंढी थी और मजहब के नाम पर जेहाद छेड़ने की हिमाकत दहशतगर्दों की मार्फत की थी। अब यह कारोबार बन्द हो जायेगा। इसलिए पाकिस्तान अपनी खैर मनाये मगर एक बात याद रखे कि बाप के आगे बेटा हमेशा छोटा ही रहता है।
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Ashwini Chopra

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