खुलकर समर्थन करने वाले पाकिस्तान ने भी छोड़ा साथ, ईरान से अपने राजनयिकों को बुलाया वापस
खुलकर समर्थन करने वाले पाकिस्तान ने भी छोड़ा ईरान का साथ
पाकिस्तान सरकार ने ईरान की राजधानी तेहरान में हाल के हमलों के मद्देनज़र अपने सभी राजनयिक अधिकारियों को तत्काल वापस बुलाने का निर्देश दिया है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब क्षेत्र में तनाव बढ़ता जा रहा है और स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है.
israel-iran war: मिडिल ईस्ट में इजराइल और ईरान के बीच तनाव और बढ़ गया है. इस दौरान अजरबैजान और तुर्किए के बाद अब पाकिस्तान ने भी ईरान से अपने राजनयिकों को वापस बुलाने का फैसला किया है. यह कदम ईरान में बिगड़ते हालात और सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए उठाया गया है. पाकिस्तान और ईरान के बीच 909 किलोमीटर लंबी सीमा है, और दोनों देश लंबे समय से पड़ोसी और रणनीतिक साझेदार रहे हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान सरकार ने ईरान की राजधानी तेहरान में हाल के हमलों के मद्देनज़र अपने सभी राजनयिक अधिकारियों को तत्काल वापस बुलाने का निर्देश दिया है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब क्षेत्र में तनाव बढ़ता जा रहा है और स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है. सरकार का तर्क है कि यह फैसला पूरी तरह से सुरक्षा कारणों से लिया गया है.
ईरान के समर्थन में था पाकिस्तान
सबसे गौर करने वाली बात यह है कि कुछ समय पहले तक पाकिस्तान खुलकर ईरान के समर्थन में खड़ा था. ईरान पर इजराइल के हमले के बाद पाकिस्तान ने इस्लामाबाद स्थित ईरानी दूतावास से संपर्क कर अपना समर्थन जताया था.
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने स्वयं ईरानी राजनयिकों से मुलाकात कर सहयोग का आश्वासन दिया था. इतना ही नहीं, पाकिस्तान उन 21 मुस्लिम देशों में शामिल था जिन्होंने इजराइल के खिलाफ सामूहिक बयान जारी किया था. इस बयान में इजराइली हमलों की कड़ी निंदा की गई थी और हमलों को तत्काल रोकने की मांग की गई थी.
अब पीछे क्यों हट रहा है पाकिस्तान?
पाकिस्तान के इस कदम से कई सवाल खड़े हो रहे हैं, खासकर तब जब अतीत में ईरान ने पाकिस्तान का साथ दिया था. मई 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच जब हालात तनावपूर्ण हो गए थे, उस वक्त ईरान ने भारत से संपर्क कर पाकिस्तान के पक्ष में मध्यस्थता की थी. ईरान ने उस समय अपने दूतावास को खाली नहीं किया था.
इसके पीछे दो बड़ी वजहें
एक्सपर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के इस फैसले के पीछे दो मुख्य कारण हो सकते हैं:
1. अमेरिका का खुला हस्तक्षेप
अब तक अमेरिका क्षेत्रीय मामलों में परोक्ष रूप से शामिल था, जिससे पाकिस्तान को स्थिति संभालने में आसानी होती थी. लेकिन जैसे ही अमेरिका ने ईरान के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया, पाकिस्तान के लिए संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो गया. अमेरिका से घनिष्ठ संबंधों के चलते पाकिस्तान उसके खिलाफ खुलकर खड़ा नहीं हो सकता.
2. तेहरान में बढ़ता खतरा
तेहरान पर इजराइली हमले लगातार जारी हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक ने तेहरान के नागरिकों को शहर छोड़ने की सलाह दी है. ऐसे माहौल में पाकिस्तान अपनी राजनयिक टीम को जोखिम में नहीं डालना चाहता और यही कारण है कि दूतावास खाली करने का फैसला लिया गया.
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