बिकते रहना ही पाकिस्तान की तकदीर !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की जगह सेना अध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को लंच पर बुलाया तो यह चर्चा होने लगी कि यदि ट्रम्प को भारत के साथ बात करनी होती तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाते। यह भी चर्चा हुई कि ट्रम्प भारत को दोस्त मानते हैं तो लंच पर मुनीर को क्यों बुलाया? ईरान पर हमले के बाद समझ में आया कि यह तो षड्यंत्र से भरा लंच था। अमेरिका ने टुकड़े दिखाए और मुनीर दौड़े चले गए। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है। ईरानी मीडिया तो बड़े स्पष्ट शब्दों में आरोप लगा रहा है कि मई के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तानी सेना अध्यक्ष मुनीर ने ईरान के टॉप कमांडर मोहम्मद हुसैन बकरी से मुलाकात की थी और उन्हें एक स्मार्ट वॉच भेंट की थी। उस स्मार्ट वॉच में जीपीएस ट्रैकर लगा था। मुनीर ने उस जीपीएस ट्रैकर का एक्सेस इजराइल को दे दिया और तीन सप्ताह में ही इजराइल ने मोहम्मद हुसैन बकरी को मार गिराया।
बकरी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस्लाम का झंडा लेकर घूमने वाला पाकिस्तान इतना बड़ा धोखा देगा या फिर मुनीर इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद के एजेंट की तरह काम करेंगे। बकरी ने इतिहास से सबक नहीं सीखा कि दुनिया में पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जिस पर भरोसा करने वाले हमेशा ही धोखा खाते हैं, ऐसे ढेर सारे और भी प्रसंग हैं जो इजराइल-ईरान की जंग में पाकिस्तान की भितरघाती भूमिका को दर्शाते हैं। पाकिस्तान एक तरफ तो ईरान पर हमले की निंदा करता है और दूसरी तरफ वो सारी हरकतें करता है जो ईरान में तबाही बरपा सके। वैसे जनरल मुनीर वही कर रहे हैं जो उनके पूर्ववर्ती सेना अध्यक्ष करते रहे हैं। सेना ने पाकिस्तान की तासीर ही ऐसी बना दी है कि जो टुकड़े दिखाए, बेहतर कीमत दे उसके हाथ बिक जाओ। कल को कोई और बड़ी बोली लगा दे तो उसके गले लिपट जाओ, जब अमेरिका को अफगानिस्तान में सोवियत रूस को परास्त करने के लिए पाकिस्तान की जरूरत थी तो अमेरिका ने अपनी थैली खोल दी और पाकिस्तान उसकी गोद में जा लेटा और जब चीन ने दौलत की पोटली खोली तो बिना देर किए चीन की गोद में जा बैठा।
पाकिस्तान जब आजाद हुआ था तब लेटने के लिए उसके पास केवल अमेरिका की गोद थी फिर भी वह गद्दारी से बाज नहीं आता था। अफगानिस्तान के एवज में वह अमेरिका से खूब धन-दौलत बटोरता रहा और इधर ओसामा बिन लादेन को अपने घर में छिपाता भी रहा। अमेरिका इस गद्दारी को समझ रहा था लेकिन वह भी कम बड़ा खिलाड़ी थोड़े ही है। उसने भी पाकिस्तान का खूब इस्तेमाल किया लेकिन अब पाकिस्तान के पास चीन की भी एक गोद है, अब गोद दो हैं तो उसकी बेवफाई भी बढ़ गई है। एक गोद नाराज हो जाए तो दूसरी गोद का सहारा मिल जाएगा। दोनों गोदें जानती हैं कि ये बेवफा है लेकिन क्या करें, कई बार बेवफाई भी बड़े काम की होती है। बेवफाई को थोड़ा बर्दाश्त करना वक्त की जरूरत बन जाती है। दोनों गोदों को पता है कि ये माल बिकाऊ है, जब कीमत लगाएंगे, अपनी गोद में बिठा लेंगे।
लेकिन पाकिस्तान की इस बदनसीबी पर बहुत रोना आता है। मुझे तीन बार पाकिस्तान जाने का मौका मिला है, वहां की अवाम से बातचीत और मीडिया से रूबरू होने का मौका मिला है, अब भी परदेस में रह रहे पाकिस्तानियों से मुलाकात और बातचीत होती रहती है। मैं जानने-समझने की कोशिश करता हूं कि पाकिस्तान में हालात इतने बुरे क्यों हैं? पाकिस्तानी मूल के लोग जो दर्द बयां करते हैं, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला होता है, अभी-अभी मैं कनाडा में जिस कार में सफर कर रहा था उसके मालिक जनाब वसीम अहमद की पीड़ा बिल्कुल अलग है। वे अहमदिया समुदाय से आते हैं। मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में पंजाब के गुरदासपुर जिले के कादियान में इस समुदाय की नींव रखी थी। आजादी के बाद बहुत से अहमदिया पाकिस्तान चले गए लेकिन उनके साथ बहुत बुरा सलूक हुआ, जब जुल्फिकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री थे तो संसद में उन्होंने एक प्रस्ताव पारित करा दिया कि अहमदिया समुदाय को मुसलमान नहीं माना जाएगा।
अहमदिया कोर्ट में गए लेकिन इसी तरह का फरमान तानाशाह जिया-उल-हक ने भी सुना दिया, अब इस अहमदिया समुदाय को पाकिस्तान में न मस्जिदों में नमाज पढ़ने की इजाजत है और न ही चुनावों में वोट डालने का अधिकार है। हजारों लोग जेल में ठूंस दिए गए हैं। खैबर पख्तूनख्वा जैसी जगह में तो मुल्लाओं ने जैसे अहमदिया समुदाय का नरसंहार किया है, वहां अहमदिया की संख्या कभी 40 हजार थी जो अब केवल 900 रह गई है। कहां गए अहमदिया समुदाय के लोग? यहां तक कि वर्तमान धर्मगुरु मिर्जा मसरूर अहमद लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। उनका पासपोर्ट कैंसिल है।
इस समुदाय का स्लोगन बहुत प्यारा है...सबके लिए प्यार, नफरत किसी के लिए नहीं। मगर दुर्भाग्य देखिए कि इस समुदाय के खिलाफ इतनी नफरत पाकिस्तानी शासकों में है कि पाकिस्तान को पहला और विज्ञान का एकमात्र नोबेल पुरस्कार दिलाने वाले प्रो. अब्दुस सलाम के नाम को ही मिटा दिया क्योंकि वे अहमदिया समुदाय से थे। पाकिस्तान में हिंदुओं और ईसाइयों की प्रताड़ना के किस्से सभी जानते हैं, दरअसल पाकिस्तान तीन तबकों में बंटा नजर आता है। एक तबका सेना और आईएसआई का है जिसने मुल्क पर कब्जा कर रखा है। दूसरा तबका डरपोक और चापलूस नेताओं का है। दगाबाजी इन दोनों की फितरत है और तीसरा तबका वो बदनसीब अवाम है जो देश को बिकाऊ माल बनने से रोकने के लिए कोशिश भी करे तो उसे फौजी बूटों तले रौंद दिया जाता है। हमारी सहानुभूति है उनसे लेकिन क्या करें? पाकिस्तान की फिलहाल यही तकदीर है। खुदा खैर करे !