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उइगर मुसलमानों पर पाकिस्तान का दोहरा मापदंड

03:45 AM Aug 11, 2025 IST | Editorial
उइगर मुसलमानों पर पाकिस्तान का दोहरा मापदंड

पाकिस्तान लंबे समय से कश्मीर से लेकर फिलिस्तीन तक के मामले में दुनियाभर में मुसलमानों के हितों के रक्षक के रूप में अपनी छवि बनाए हुए है और उत्पीड़न के शिकार लोगों के पक्ष में खड़ा होने का दावा करता है। हालांकि, शिनजियांग (पूर्वी तुर्किस्तान) में उइगर मुसलमानों पर चीन की सरकार द्वारा किए जा रहे व्यवस्थित अत्याचार पर उसकी गहरी चुप्पी को देखने पर उसकी यह स्वघोषित भूमिका खोखली नजर आती है। यूं तो वह भारत और अन्य जगहों पर होने वाले मानवाधिकारों के कथित उल्लंघनों की मुखर निंदा करता है लेकिन उइगारों के मुद्दे पर उसकी निष्क्रियता मुसलमानों के मानवाधिकारों के प्रति वास्तविक चिंता के बजाय भू-राजनैतिक स्वार्थों से प्रेरित उसके स्पष्ट दोहरे मापदंड को दर्शाती है।
चीन के शिनजियांग प्रांत में रहने वाले तुर्क मुस्लिम अल्पसंख्यक उइगर, निगरानी एवं नजरबंदी के आधुनिक दुनिया के सबसे व्यापक सरकारी अभियानों में से एक के शिकार हैं। वैश्विक मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टें, उपग्रहों से हासिल तस्वीरें और पीड़ितों के बयान एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं। कुल दस लाख से अधिक उइगर मुसलमान तथाकथित “पुनर्शिक्षा शिविरों” में बंद हैं, जहां उन्हें वैचारिक प्रशिक्षण, जबरन श्रम, यौन शोषण और उनकी धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान को व्यवस्थित रूप से मिटाने की कवायदों का सामना करना पड़ता है। मस्जिदें ढहा दी गई हैं, कुरान पढ़ने को अपराध घोषित कर दिया गया है, रमजान के दौरान रोजे रखने पर रोक लगा दी गई है और इस्लामी नामों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। फिर भी वैश्विक मुस्लिम समुदाय जहां चिंता व्यक्त कर रहा है, वहीं पाकिस्तान की सरकार अजीबोगरीब तरह से उदासीन बनी हुई है।
पाकिस्तान की चुप्पी के पीछे अरबों डॉलर वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) है। यह गलियारा चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की एक प्रमुख परियोजना है। आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए चीन से आने वाला निवेश एक जीवन रेखा के समान है। बुनियादी ढांचे के विकास से लेकर ऋण जैसे वित्तीय सहयोग और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक संरक्षण ने बीजिंग के प्रति इस्लामाबाद की वफादारी सुनिश्चित की है।
इस आर्थिक निर्भरता ने पाकिस्तान को मुसलमानों के अधिकारों के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेवारी को प्रभावी रूप से गिरवी रखने पर मजबूर कर दिया है। आर्थिक रिश्तों के खतरे में पड़ने के डर से, उसके द्वारा शिनजियांग में अपनायी जा रही बीजिंग की नीतियों की किसी भी आलोचना से परहेज किया जाता है। दरअसल, पाकिस्तान न केवल चुप रहा है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चीन द्वारा परोसी गई कहानियों का सक्रिय रूप से समर्थन और शिनजियांग में उसके ‘आतंकवाद-विरोधी’ उपायों की सराहना भी करता रहा है।
कश्मीर में भारत की कार्रवाइयों के खिलाफ उसके आक्रामक अंतर्राष्ट्रीय अभियान के बरक्स पाकिस्तान के इस रुख का विरोधाभास और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है। पाकिस्तान अक्सर संयुक्त राष्ट्र, ओआईसी और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में कश्मीर का मुद्दा उठाता रहता है और खुद को कश्मीरी मुसलमानों का पैरोकार बताता है लेकिन जब बात उइगर मुसलमानों की आती है तो पाकिस्तान के कूटनीतिक प्रयास गायब ही हो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के कई सत्रों में जब उइगरों के साथ किए जा रहे बुरे बर्ताव के लिए चीन की आलोचना की गई तो पाकिस्तान या तो अनुपस्थित रहा या फिर बीजिंग के समर्थन में विभिन्न पत्रों पर हस्ताक्षर करता रहा। यह दोहरापन एक खतरनाक संदेश देता है। मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा तभी जरूरी है जब राजनीतिक या रणनीतिक रूप से सुविधाजनक हो।
इस पाखंड में और बढ़ाैतरी करते हुए पाकिस्तान ने कथित तौर पर अपनी सीमाओं के भीतर उइगरों की दुर्दशा पर होने वाली चर्चाओं को हतोत्साहित किया है। पाकिस्तान में उइगर शरणार्थी व कार्यकर्ता डर के साये में जी रहे हैं। इनमें से कुछ का आरोप है कि अधिकारियों द्वारा उन्हें परेशान किया जा रहा है और उन पर चुप रहने का दबाव डाला जा रहा है। यह घरेलू दमन देश के बाहर बरती जाने वाली चुप्पी को प्रतिबिंबित करता है जिससे उइगरों की आवाजों को दबाने में पाकिस्तान की संलिप्तता और भी गहरी हो जाती है। विदेशों में मुसलमानों के उत्पीड़न से जुड़े मुद्दों पर आमतौर पर मुखर रहने वाली धार्मिक पार्टियां भी संभवतः राजनीतिक झुकाव या बाहरी दबाव के कारण इस मामले में काफी हद तक चुप्पी ही साधे रही हैं। असहमति के इस दमन से पता चलता है कि चीन के साथ पाकिस्तान का रणनीतिक गठजोड़ सार्वजनिक विमर्श में भी कितनी गहराई तक घुसपैठ कर गया है।
वर्ष 2021 में, पाकिस्तान ने अन्य देशों के साथ मिलकर उइगर मुसलमानों के साथ चीन के व्यवहार की निंदा करने के पश्चिमी देशों की अगुवाई वाले प्रयासों का विरोध किया। अक्तूबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में शिनजियांग में चीन द्वारा संभावित “मानवता के विरुद्ध अपराधों” का संकेत देने वाली संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पर औपचारिक बहस आयोजित करने के लिए पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इस प्रस्ताव के विरोध में 19 और पक्ष में 17 मत पड़े। मतदान में 11 देश अनुपस्थित रहे। पाकिस्तान और कतर जैसे अन्य मुस्लिम बहुल देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।

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