महंगाई की आग में ताड़
युद्ध हो, जलवायु परिवर्तन हो या फिर अन्य प्राकृतिक आपदाएं समय-समय पर आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ता है।
12:57 AM Apr 25, 2022 IST | Aditya Chopra
युद्ध हो, जलवायु परिवर्तन हो या फिर अन्य प्राकृतिक आपदाएं समय-समय पर आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ता है। इस समय वैश्विक परिस्थितियां कुछ इस तरह की हैं कि हमारे चाहने न चाहने से कुछ नहीं होगा, बल्कि हमें विषम परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा। महंगाई के आंकड़े चिंता बढ़ा रहे हैं। थोक और खुदरा महंगाई भी जिस उच्चतम स्तर पर है उससे लगता नहीं कि आने वाले दिनों में कोई राहत मिलेगी। आशंकाएं गहरी हो रही हैं कि आने वाले दिनों में महंगाई कहीं पिछले रिकार्ड न ध्वस्त कर दे। लम्बे समय से महंगाई का दो अंकों में बने रहना हालात की गम्भीरता को दिखाता है।
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आंकड़ों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। इसका असर तो रोजाना की जिन्दगी पर साफ दिख रहा है। पैट्रोल, डीजल, घरेलू गैस, सीएनजी, पीएमजी और दूध के दामों समेत खाने-पीने की कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके दाम न बढ़े हाे। महंगाई का सबसे बड़ा कारण उत्पादन लागत का बढ़ना भी है। क्योंकि कच्चा माल महंगा हो रहा है और इसके अलावा बिजली और परिवहन लागत के बढ़ जाने से कारखानों, फैक्ट्रियों से सामान महंगा होकर ही बाहर आ रहा है और इन सबका बोझ आखिरकार उपभोक्ता पर ही पड़ता है। अभी तक महंगाई का कारण कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में मंदी विकास दर में कमी और लोगों के पास पैसा नहीं होना जैसे कारण बने हुए थे लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है। अब एक और नई मुसीबत का सामना हमें करना पड़ेगा।
जंग के कारण रिफाइंड, सोया और सनफ्लावर ऑयल की कीमतों में पहले से ही बढ़ौतरी हो रही थी। अब खबर यह है कि इंडोनेशिया ने पाम ऑयल का निर्यात बंद करने का फैसला कर लिया है। इंडोनेशिया पाम आयल का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है लेकिन पिछले कुछ समय से वह भी पाम आयल की कमी से जूझ रहा है और वहां कारोबार से जुड़े लोगों ने सरकार को इसके शिपमैंट पर मूल्य नियंत्रण और कुछ प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। पाम आयल उत्पादन में इंडोनेशिया बहुत बड़ा खिलाड़ी है। उसके यहां पाम के कुल वैश्विक उत्पादन का 60 फीदी उत्पादन होता है और यह आंकड़ा दूसरे सबसे बड़े उत्पादक मलेशिया से कई गुणा ज्यादा है। मार्च 2021 और मार्च 2022 के बीच इंडोनेशिया ने ब्रांडेड कुकिंग आयल की घरेलू कीमतों में 14000 इंडोनेशियाई रुपए (आईडीआर) से 22000 आईडीआर प्रति लीटर तक बढ़ौतरी देखी गई। इंडोनेशिया के पाम आयल संकट के पीछे तीन बड़े कारण हैं। रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद सनफ्लावर रिफाइंड आयल और सोयाबीन आयल की कमी हुई तो लोगों ने पाम आयल का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
दूसरा बड़ा कारण दक्षिण अमेरिका में शुष्क मौसम के कारण सोयाबीन आयल की सप्लाई प्रभावित हुई। ब्राजील, अर्जेंटीना और पराग्वे के संयुक्त सोयाबिन
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उत्पादन में 10 प्रतिशत से भी ज्यादा की कमी आई। पाम आयल संकट की एक बहुत बड़ी वजह यह भी है कि इंडोन ऐशिया सरकार ने 2020 में जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करने के लिए पाम आयल के साथ डीजल के 30 प्रतिशत हिस्से को मिलाना अनिवार्य कर दिया था। वहां पाम आयल की घरेलू खपत 17.1 मिलियन टन होने का अनुमान है जिसमें से 7.5 मिलियन टन बायोडीजल के लिए और बाकी 9.6 मिलियन टन घरेलू और अन्य उपयोग के लिए है। पाम आयल को बायोडीजल के लिए तेजी से डायवर्ट किया जा रहा है जबकि खाद्य तेल के अन्य विकल्पों की भी कमी चल रही है।
पाम आयल संकट से भारत भी अछूता नहीं रह पाएगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा वनस्पति तेल आयातक देश है। भारत साल में 14-15 मिलियन टन आयात करता है। इसमें पाम आयल का हिस्सा 8-9 मिलियन टन है। इसके बाद सोयाबीन तेल के आयात की मात्रा 3.5 मिलियन टन और सनफ्लावर आयल की मात्रा 2.5 मिलियन टन है। भारत में खाद्य तेल में महंगाई ने पहले ही रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवार खाद्य तेलों की महंगाई से चिंतित हैं। वर्ष 2019 में सोयाबीन का एक लीटर का पैकेट 80-85 रुपए में मिल जाता था। अब वही पैकेट 170 रुपए में मिल रहा है।
बीते 2 सालों में सबको मूंगफली और सनफ्लावर तेल की कीमतों में भी दो गुणा बढ़ौतरी हुई है। भारत में पाम काे ताड़ कहा जाता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने घरेलू स्तर पर भी ताड़ का उत्पादन बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश की। सरकार का लक्ष्य है कि देश में बड़े पैमाने पर ताड़ की खेती हो और पाम आयल का आयात कम किया जाए। सरकारी प्रयासों के परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं आए। पानी की कमी और भूजल पर इसके बुरे प्रभाव, छोटी जोत और आमदनी के लिए छोटे और मंझाैले किसानों काे लम्बा इंतजार करना पड़ता है। इन सब कारणों से किसान ताड़ की खेती में समय और पूंजी लगाने से झिझकता है। ताड़ की खेती के विस्तार से पर्यावरण और स्थानीय लोगों के लिए मुश्किलें पैदा करने का खतरा भी है। ताड़ की खेती से पानी की समस्या, वनों की कटाई और खाद्य असुरक्षा बढ़ने की सम्भावनाएं बनी रहती हैं। भारत में पिछले वर्ष सरसों की फसल के अच्छे दाम मिले थे, जिसके परिणामस्वरूप किसानों ने इस बार सरसों की बम्पर फसल पैदा की है। सरसों की फसल ठीक होने से यद्यपि खाद्य तेलों के संकट में राहत मिलेगी लेकिन इस वर्ष हमें ताड़ की कमी के कारण महंगाई की आग का सामना करना ही पड़ेगा।
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